कला क्या है | कला का अर्थ, कला के प्रकार

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कला क्या है, कला का अर्थ, कला की पद्धतियां, कला की परिभाषा और कला के प्रकार

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कला क्या है, कला का अर्थ, कला की पद्धतियां, कला की परिभाषा और कला के प्रकार

कला : एक परिचय

कला का अर्थ

एक ऐसी अभिव्यक्ति जिसके द्वारा मनुष्य अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करता है कला कहलाती है अर्थात कला से तात्पर्य ऐसे भावों से है, जो मनुष्य द्वारा उत्पन्न किया जाता है।

दूसरे शब्दों में कला शब्द का अर्थ ऐसे समस्त भाव प्रदर्शन से है. जो वास्तविक रूप से भावनाओं का प्रदर्शन करते हैं इसका प्रकाशन किसी भी रूप में किया जा सकता है।अतः इसके अन्तर्गत कविता संगीत नाटक नृत्य आदि भी आते है। यह कला का भाव रूप में प्रकाशन है।

इससे हमारा तात्पर्य यह है कि संसार की ये समस्त वस्तुएँ जिन्हें मनुष्य ने अपने जीवन को सुन्दर बनाने के लिए भाव प्रकाशन का रूप दिया है ये सब कला है।

इनका अंकन चाहे पेन्सिल कागज द्वारा शब्दों द्वारा, कविता द्वारा नाट्य द्वारा तथा लेखों द्वारा ही क्यों न किया गया हो वह कला है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं “मानव की कल्पना द्वारा निर्मित अद्भुत रचना जो सबको चकित कर दे कला है।”

कला की परिभाषा

समयानुसार कला की परिभाषा बदलती रही है। अतः कला की परिभाषा किन्हीं विशेष शब्दों में नहीं दी जा सकती है। यहाँ यह कहना उचित प्रतीत होता है कि ऐसी समस्त मानवीय कृति जो आनन्द की अनुभूति कराती है, यही कला है

अर्थात “जीवन के प्रत्येक अंगों को नियमित रूप से निर्मित करने को ही कला कहते हैं।” समय-समय पर कुछ विद्वानों ने अपने विचार कला की परिभाषा के प्रति व्यक्त किए हैं, कुछ जो निम्न है

“समतल परातल पर तीन ठोस ज्यामितिक आकृति का अनुकरण कला है।” -प्लेटो

प्लेटो की इस परिभाषा से हमें ज्ञात हो जाता है कि उस समय कला का क्या क्षेत्र था ? कला की कसौटी पर यही वस्तु कसी जाती रही होगी, जिसकी तीन भुजाएँ ड्राइंग पेपर पर प्रदर्शित की जाती रही हो, जैसे एक क्यूब एक विद्वान ने कला की परिभाषा इस प्रकार दी है- “कला जीवित रखने के लिए ही है।”

“एक तल पर चाहे वह सम हो या असम, पानी, तेल या सूखे रंगों में से एक अथवा एक से अधिक रंगों से आलेखन करके आकृति में लम्बाई चौढ़ाई मोटाई दर्शाने को कला कहते हैं।”- रायकृष्ण दास

यह परिभाषा प्लेटो की आर्ट की परिभाषा से मिलती-जुलती है। यद्यपि यह भारतीय कला के विज्ञान की परिभाषा है।

औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात कला की परिभाषा मनोवैज्ञानिक ढंग से होने लगी तथा इसके द्वारा पूर्ण परख की जाने लगी कला की नई परिभाषा मनोवैज्ञानिक आधार इस प्रकार दी गई “कला कल्पनात्मक जीव की अनुभूति है।

संगीत की भावना पर जो आधारित तो वह कला है। -स्कोपन डीवर

कला हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति है। -टालस्टाय

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कला के प्रकार

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प्राचीन भारतीय कला की जानकारी हमें प्राचीन वैदिक सहिताओं एवं सूत्र साहित्यों ग्रंथों एवं महाभाष्यों के अध्ययन से मिल जाती है।

इन समस्त साहित्यिक सामग्रियों का अध्ययन करने के पश्चात् यह जानकारी प्राप्त होती है कि “प्राचीन भारत में चौसठ प्रकार की कलाओं से लोग परिचित थे।” यह अलग बात है कि समय के साथ-साथ इन कलाओं में भी परिवर्तन होता गया।

कालान्तर में इनकी संख्या घटती गई। मनुष्य इनको भूलता गया। चौसठ से उनकी संख्या अडतालिस हो गई और फिर कुछ समय के पश्चात बत्तीस, सोलह तथा आठ रह गई. जो आज भी कला के आठ अंगों के नाम से प्रसिद्ध है।

औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात 18वीं सदी में कला की परिभाषा सीमित हो रह गई तथा आठ अंगों से घट कर केवल निम्नलिखित छ ही रह गए –

(1) संगीत

(2) नृत्य

(3) कविता

(4) मूर्तिकला

(5) चित्रकला अथवा रंजना कला तथा

(6) भवन निर्माण कला |

उपर्युक्त कलाओं को पुनः दो भागों में विभाजित किया गया-

(1) गतिशील तथा

(2) स्थिर

संगीत, नृत्य तथा कविता गतिशील कला के अन्तर्गत तथा शेष तीन की गिनती स्थिर कला में होने लगी। गतिशील कलाएँ प्राचीन कला से ही अपना अलग स्थान ग्रहण करती चली आ रही है किन्तु स्थिर के तीनों अंगों की शाखाएँ बहुत समय तक एक साथ फलती फूलती रही है।

परन्तु यह भी अलग-अलग स्थान प्राप्त कर चुकी है। अलमार वर्तमान अध्ययन में केवल रंजनकला अथवा कला ही रह गई।

कला के प्रकार

1) संगीत कला

वास्तुकला, मूर्तिकला तथा चित्रकला की अपेक्षा संगीत कला अधिक उत्कृष्ट रूप में देखी जा सकती है, जिसका आधार नाद या स्वर होता है। इस कला के द्वारा व्यक्त भाव अधिक सूक्ष्म तथा स्पष्ट होते हैं। संगीत कला का विशेषज्ञ अपनी कला से श्रोता को रुला भी सकता है और हँसा भी इसमें पूर्वोक्त कलाओं की भीति गतिमान नहीं होते हैं।

2) नृत्य कला

नृत्यकला की गणना भी कला के अच्छे रूप में होती है। नृत्य के द्वारा कला की उन्नति होती है।

3) कविता या काव्यकला

काव्य का स्थान ललित कलाओं में सर्वश्रेष्ठ है। इसके आधार शब्द और अर्थ हैं। जहाँ संगीत कला में केवल स्वरों का प्रयोग होता है, वहाँ काव्य कला में स्थर और व्यंजन दोनों ही प्रयुक्त होते हैं। संगीत विशेषज्ञ एक दो स्वरों के आरोह और अवरोह के द्वारा श्रोता को भाव-विभोर कर सकता है किन्तु यह भाव विभोर की स्थिति स्थायी नहीं होती, जबकि कवि व्यंजनों और स्वरों के प्रयोग तथा उनके अर्थ के द्वारा चिरस्थायी प्रभाव डाल सकता है।

4) मूर्तिकला

वास्तु कला के मुकाबले में मूर्तिकला अधिक विकसित एवं उन्नत कला है। इसमें रूप, रंग तथा आकार होता है। लम्बाई, चौडाई और मोटाई भी होती है। यह कला वास्तु की अपेक्षा अधिक रूप में उत्कृष्ट है क्योंकि इसके साधन अपेक्षाकृत अधिक सूक्ष्म है, यह कला वास्तुकला की अपेक्षा उत्कृष्ट मनोभावों को व्यक्त कर सकती है।

5) भवन निर्माण कला या वास्तुकला

वास्तुकला को स्थापत्य कला के नाम से भी पुकारते हैं। इस कला के अन्तर्गत भवन निर्माण मंदिर, मस्जिद, बांध, पुल आदि के निर्माण का कार्य होता है। वास्तुकला के आधार के रूप में इंट पत्थर, सीमेंट लोहा, लकड़ी आदि है और साधन के रूप में कभी वसूली कुदाल आदि। वास्तुकला में लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई तीन तत्व होते हैं। वास्तुकला द्वारा व्यक्त भावों की अपेक्षा अन्य कलाओं द्वारा व्यक्त भाव अधिक आकर्षक होते हैं। सूक्ष्मता उनकी विशेषता है।

6) रंजन कला या चित्रकला

मूर्तिकला के मुकाबले में चित्रकला अधिक उत्कृष्ट तथा कला है। यद्यपि वास्तु तथा मूर्तिकला के समान रूप रंग और आकार इसमें होता है किन्तु इस कला के मान तीन-लम्बाई चौड़ाई और मोटाई न होकर केवल दो लम्बाई और चौड़ाई ही होते हैं रंग बुश के साधन है। वास्तु एवं मूर्ति को अपेक्षा चित्रकला मनोभावों को अधिक स्पष्ट करती हैं।

कला के अन्य विभेद

ललित कला

ऐसी कलाएँ जिनके द्वारा कलाकार को अपनी स्वतंत्र प्रतिमा से सृजनात्मक कृति निर्माण करने का अवसर मिले जैसे चित्रकला, वास्तुकला, संगीत नृत्य नाटक साहित्य।

शास्त्रीय कला

जब निश्चित सिद्धान्तों व उच्च आदर्श को लेकर कला निर्मित की जाती है तो यह शास्त्रीय कला कहलाती है। भारतीय कला में वात्सायन के कामसूत्र में चित्रकला के छ अंगों का एवं मानसार में स्थापत्य रचना के सिद्धान्तों का विवरण है। नृत्य के विविध रूपों जिनमें ताण्डव, लास्य कथक, मणिपुरी रास, भरतनाट्यम कुचिपु आदि आते हैं एवं संगीत में छः राग व छत्तीस रागिनियों का सिद्धान्तों पर आधारित विकास भारतीय शास्त्रीय कला के उदाहरण हैं।

लोक कला

दैनिक जीवन में व्याप्त परम्परागत रूप की कला लोक कला कहलाती है। लोक कला में परम्परागत रूपों, रीति-रिवाजों व धार्मिक विश्वासों को महत्व दिया जाता है। यह प्रशिक्षित कलाकारों की कला न होकर सामान्य व्यक्तियों की कला होती है जिसके पीछे परम्परागत रूप का अनुकरण निहित है और कालान्तर में यह जातिगत आचरण से जुड़कर लोक जीवन की धड़कन बन जाती है। लोक कलाएँ लोक जीवन में आनन्द उल्लास व उत्साह का संचार कर रीति-रिवाजों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित कर सामाजिक जीवनधारा को अखण्ड प्रवाहित रखती है। सहज स्वच्छन्द आकार व स्वाभाविक लय लोककला के गुण होते हैं। इसमें सृजनशील कलाकार की प्रतिमा व कौशल की सूक्ष्मता के स्थान पर सामान्य मोटा रूप व स्वाभाविक लय मुख्य तत्व होते हैं। लोक कला के अनेक रूप मिलते हैं जैसे अल्पना रंगोली माण्डणे महदी रचाना होई. गीत-संगीत, नृत्य विवाहादि अवसरों पर दीवारों पर चित्रण आदि।

अकादमिक कला, स्थापित कला

ऐसी कला, जिसमें नवीनता या प्रयोगशीलता का स्थान नहीं होता।

भारतीय कला की प्रमुख विशेषताएँ

कला की अपनी एक देशगत विशेषताएँ होती है जो उसकी मौलिकता को बनाए रखती है। ये विशेषताएँ उसे एक स्वतंत्र व्यक्तित्व प्रदान करती है। भारतीय कलाकारों ने भी सौंदर्य निपुणता एवं बारीकी के साथ वास्तुकला मूर्तिकला चित्रकला एवं शिल्पकला के क्षेत्र में उत्तम कृतियों का निर्माण किया। कला के माध्यम से भारतीय कलाकारों ने भारतीय आस्या विश्वास एवं संस्कृति का स्पष्ट वर्णन किया है। इनकी कृतियों में गति लयपूर्णता एवं संवेदनशीलता दिखाई पड़ती है। भारतीय कला को कतिपय विशेषताएँ भी हैं जो इस प्रकार है

प्राचीनता

भारतीय कला के साक्ष्य सैन्य काल से ही मिलने लगते है। अतः इनकी प्राधीनता स्वयं सिद्ध है।

धार्मिकता

भारत एक धर्म प्रधान देश है जिसका प्रभाव कला पर भी दिखाई पड़ता है। भारतीय कला में समस्त धर्मों का समावेश था जिसका प्रमाण प्राप्त मूर्तियों से मिलता है।

पारंपरिकता

भारतीय कलाकारों ने अपनी कृतियों में प्राचीन कला शैली की परम्पराओं का सुन्दर समन्वय किया है।

प्रतीकात्मकता

भारतीय कला में प्रतीकात्मकता का बड़ा महत्व है। प्रारम्भिक बौद्ध एवं जैन धर्म की प्रतिमाएँ प्रतीकात्मक रूप में निर्मित किये जाते थे।

अनामता

भारतीय कला कृतियों में उसके कर्ता के नाम का सर्वथा अभाव है।

भावात्मकता

भारतीय कला भावना प्रधान भारतीय कलाकारों ने अपनी भावनाओं को प्रस्तर मूर्तियों में पुरो दिया है। ये भावनाएँ बाह्य एवं आन्तरिक दोनों रूपों में इनकी कृतियों में दिखाई पड़ती है।

विभिन्न कला पद्धतियाँ

मन में आये हुए विचारों को कला के माध्यम से प्रदर्शित करने के लिए निम्न प्रकार की कला पद्धतियाँ अपनायी जाती है. जो इस प्रकार है-

धूलि चित्रण

रंगों के चूर्ण या पाउडर द्वारा चित्र रचना करना पूर्ति चित्रण कहलाता है। जैसे-रंगोली सांझी. चौक पूरना आदि।

इसमें चूर्णित रंगों को बुरक कर रेखांकन की विधि से चित्र का बाह्याकार अंकित कर लिया जाता है, उसके पश्चात् आवश्यकतानुसार अलग-अलग क्षेत्रों को विभिन्न रंगों से भर देते हैं।

पेस्टल चित्रण

पेस्टल विशुद्ध और साधारण चित्रण माध्यम है पेस्टल चित्रण हेतु खुरदुरा व कढ़ा घरातल अधिक उपयुक्त होता है। प्रायः विभिन्न धूमिल रंगलों की भूमि पर पेस्टल रंगों से चित्रण किया जाता है। पेस्टल रंग गोल या चौकोर बत्तियों के रूप में मिलते हैं। इनसे छोटे स्ट्रोक से लेकर बड़े स्ट्रोक तक बारीक से बारीक सभी प्रभाव देना समय है। चित्र में रंग भरते समय मंग का चूर्ण भी बनता रहता है अतः उसे या तो हल्की से उड़ा देना चाहिए या कागज पर से धीरे से देना चाहिए।

टेम्परा चित्रण

टेम्परा का माध्यम जलीय द्रव में तैलीय अथवा मोम पदार्थ के मिश्रण से निर्मित किया जाता है। जिस समय इस माध्यम का प्रयोग किया जाता है तो इसमें जल भी मिलाया जा सकता है किन्तु सूखने पर इसका तैलीय अंश चित्र पर एक चमकदार एवं पारदर्शी पतली झिल्ली का निर्माण कर देता है टेम्परा का माध्यम अण्डे की जर्दी (yolk) सम्पूर्ण अण्डा अण्डे की सफेदी आदि रहे हैं। गोद, ग्लेसरीन तथा अलसी के तेल से भी इस प्रकार के माध्यम का निर्माण हो सकता है। दूध की रेसीन का भी प्रयोग किया जाता रहा है।

चित्रकला

प्रायः मोटा और कड़ा कागज इसके हेतु उपयुक्त रहता है जो पानी को न सोखे चिकना, मध्यम खुरदुरा अथवा अधिक खुरदुरा कई प्रकार के धरातलों में निर्मित व्हाटमैन (Whatman) मार्का कागज इसके हेतु अच्छा माना जाता है। आजकल हाथ से बना कागज भी उपलब्ध है। यह काटमैन कागज के समान उत्तम नहीं है।

जल रंग चित्रण हेतु प्रायः सेबल हेयर के श उपयुक्त रहते हैं। छोटे हैण्डल वाले गोल ब्रश ही अधिकांशतः प्रयोग में लाये जाते हैं किन्तु मोटे कार्य के लिए फ्लैट का भी प्रयोग किया जाता है।

वाश तकनीक

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यह तकनीक बंगाल शैली के चित्रकारों व जापानी चित्रकारों के सहयोग से विकसित हुई। इस चित्रण हेतु सबसे उपयुक्त कागज सफेद कैण्ट पेपर व हैण्डमेड पेपर है।

जल रंगों से वाश लगाने की दो विधियों है एक स्थानीय वाश और दूसरा सम्पूर्ण वाश स्थानीय वाश में किसी आकृति के एक खण्ड में पतला पतला रंग बार-बार लगाया जाता है एक बार का रंग सूख जाने पर चित्र को धोकर ब्लाटिंग पेपर से सुखा लेते हैं और पुनः रंग भरते है।

इस क्रिया को तब तक दुहराते रहते हैं जब तक कि इच्छित प्रभाव उत्पन्न न हो जाय। सम्पूर्ण वाश की पद्धति में सम्पूर्ण चित्र में अलग-अलग स्थानीय रंग भरकर सुखा लेते हैं।

इसके पश्चात् चित्र को पानी से भिगोकर पुनः सुखाते हैं। ऐसा करने से पहले भरे हुए रंग पक्के हो जाते है और यदि कहीं अधिक गाढ़े रंग लग गये हो तो ये पुल सम्पूर्ण चित्र पर वाश लगाते हैं।

जब वाश का रंग सूख जाता है तो प्रकाश वाले स्थानों को तूलिका से गीला करके रंग उठा लेते हैं। शेष कार्य को रंग लगाकर तथा सीमा रेखांकन के द्वारा पूर्ण करते हैं। यदि एक बार में वाश अच्छा न लगे तो उसे तुरन्त धो देते हैं और सूख जाने पर पुनः वाश लगाते हैं।

जाते हैं। सूख जाने पर इच्छित रंगों के पतले घोल से लाइनोकट, लिनोलियम कट-लिनोलियम के टुकड़े पर चित्र या आकृति काटकर छापने की कला वाश के अतिरिक्त अलग-अलग क्षेत्रों में पतला रंग आवश्यकतानुसार हल्का-गहरा करके अथवा छाया- प्रकाश का प्रभाव उत्पन्न करते हुए भी लगाया जाता है।

इसमें बाह्य सीमांकन की आवश्यकता नहीं है। शीघ्रतापूर्वक यथार्थमूलक आकृतियों चित्रित करने अथवा दृश्य-चित्रण में यह विधि बहुत उपयोगी है।

कोलाज

कागज अथवा कपड़े के टुकड़ों को चित्र तल पर चिपका कर तैयार की गई चित्र कृतियों कोलाज कृतियाँ कहलाती है।

पेपरमेसी

कागज की लुगदी के साथ गोंद मेथी व खड़िया मिश्रित करके सीधे में दबा कर प्रतिकृति निकालने की विधि को पेपरमेसी कहते हैं।

माण्डणा

राजस्थान मांगलिक अवसरों पर आग चौक, फर्श या दीवार को सजाने के लिए माण्डमा रचने की परम्परा है। गोबर व पीली मिट्टी में हरमध (हिरमिजी) या झीकरे का पानी मिलाकर चबूतरों आगन व कच्चे मकानों की दीवारों को लीपा जाता बाद में खड़िया मिट्टी तथा लाल झीकरे द्वारा माण्डणा लिखा जाता है।

थापा

हाथ का छाप विधि को थापा कहते हैं। विवाह द मांगलिक अवसरों पर ईश्वरीय आशीर्वाद के प्रतीक के रूप में व अलंकारिकता की अभिवृद्धि के उद्देश्य से हाथ का छाप दीवार या अन्य धरातल पर अफित करके उसकी पूजा की जाती है।

घर्षणचित्र-फ्रोताज

एक अतियथार्थवादी चित्रण पद्धति है। इसमें लकड़ी ईंट व पत्थर जैसे पदार्थों की खुरदरी सतह पर कागज रखकर उस पर पेंसिल कोयला या क्रेयान से रगड़ा जाता है जिससे कागज पर अनपेक्षित आकारों का निर्माण होता है। इससे कई अद्भुत दृश्य या आकृतियों नजर आती हैं जैसे कि वनस्पति सागर, काल्पनिक प्राणी आदि। इसका आविष्कार अतियथार्थवादी चित्रकार माक्स एन्स्ट ने किया। 1926 में उन्होंने इस पद्धति से बनाये चित्रों की मालिका को “निसर्ग का इतिहास” नाम से प्रकाशित किया।

मोम चित्रण

मोम के रंगों से चित्रण की प्राचीन विधि जो अब अप्रचलित है। इसमें गोम में मिलाये हुए रंगों को पिघलाकर लगाया जाता था। प्राचीन ग्रीस व रोम में इस विधि से दीवारों व फलको पर चित्रण किया जाता था। ग्रीक मोमचित्र उपलब्ध नहीं है, किन्तु मिस्र में प्राप्त अनेक शव पेटिकाओं पर ऐसे मोमचित्र सुरक्षित है।

पट-चित्र

कपड़े पर बनाया चित्र जिसे लपेट कर रखा जा सकता है। प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षु धर्म प्रचार के लिये पट-चित्र बनाकर देश-विदेश की यात्राओं में अपने साथ ले जाते थे। आज पट चित्र के पिछवई, फड़ जैसे अनेक आधुनिक स्वरूप मिलते हैं।

छींट, बातिक

कपड़े पर अलंकारिक आकृति या चित्र बनाने की एक विधि इस विधि में प्रथम कपड़े पर पिछले ए मोम से आकृति बनायी जाती है। शेष हिस्से को लाख के रंगों से रंजित करने के पश्चात मोम को हटाया जाता है।

फड़ (पट-चित्र)

प्राचीन काल में ये चित्र काष्ट के पटरों पर बनाए जाते थे और अब पर-पत्री के रूप में बनाये जाते हैं। इन पर किसी महानायक का जीवन चित्रित होता है या किसी धार्मिक या पौराणिक कथा को चित्रित किया जाता है। फड़ को एक ओर से खोलकर दूसरी ओर लपेटते जाते हैं और सामने आये चित्र की भोपाओं द्वारा माकर व वाद्यपत्रों पर संगीत देकर प्रभावी ढंग से व्याख्या की जाती है। राजस्थान में विशेषकर भीलवाड़ा क्षेत्र में इस पद्धति का बहुतायत उपयोग होता है। पाबूजी की कथा को फड़ पर लाल व हरे रंगों चित्रित किया जाता है और मोपा लोग उस कथा को लोकवाद्य सवनहत्ता पर गाकर वर्णन करते हैं।

पच्चीकारी

आधुनिक युग में अलंकरण व चित्र रंगीन पत्थर कांच या मार्बल के टुकड़ों को मसाले में बिठाकर बनाया जाता है। प्राचीन काल में मिस्रमेसोपोटामिया में छोटे पैमाने पर इस पद्धति से अलंकरण किया जाता था। बाइजेंटाइन साम्राज्य में जस्टिनियन के शासनकाल में सर्वोत्कृष्ट दर्ज के बड़े आकारों के व चमकीले पच्चीकारी चित्र बनाये गये। वर्तमान समय में मार्बल के अतिरिक्त नवीन आविष्कृत सामग्री का उपयोग करके दीवारों व फर्श पर पच्चीकारी की जाती है।

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लिपि-लेखन कला

विश्य की भिन्न कलाओं के अन्तर्गत विविधता लिए हुए लिपि लेखन कला भी आती है जिसका प्रमुख उद्देश्य अक्षरों के वस्तु-निरपेक्ष सूक्ष्म सौंदर्य को विकसित कर चित्ताकर्षक रूप में विषय को प्रस्तुत करना होता है। अनेक विदेशी भाषाओं में लिपि-लेखन के विभिन्न आकर्षक रूप मिलते हैं।

चीन में चित्रलिपि पर आधारित लेखन कला का प्रयोग आज भी विद्यमान है जिसके प्रभाव से यूरोपीय आधुनिक वस्तुनिरपेक्ष कला के विकास की गति को बढ़ावा मिला है। यूरोप में गोधिक, इंटेलिक, रोमन जैसी लिपियों का अपना विशेष सौंदर्य है और इस सुन्दरता को लिए हुए लिपियों के साथ चित्रित बाइबल की आइरिश, रोमानेका कैरोलिंजियन मध्ययुगीन पाण्डुलिपियाँ इतिहास प्रसिद्ध है।

भारतीय अपभ्रंश शैली की पोथियों की सुन्दर लिपि लेखन के साथ सचित्र रचना हुई। मुगल व ईरानी कला में फारसी लिपि के विविध रूप मिलते हैं जैसे कूफी नख, नस्तालिख व शिकिस्त प्रस्तर–स्तम्भों एवं शिलाओं पर भी उभारदार एवं नतोदार लिपिका अलंकारिक लेखन हुआ है।

सौन्दर्य लिपि-लेखन से कलाकार को आत्मिक अभिव्यक्ति का आनन्द ते मिलता ही है, उसके साथ निर्मित कृति के सौन्दर्य की अभिवृद्धि से यह पाठक को प्रेरित कर विषय को अधिक ग्राह्य बनाती है। लिपि-लेखन कला स्वर्ण-चूर्ण का भी प्रयोग हुआ है, जिससे कृति को आकर्षक व दुर्लभ स्वरूप प्राप्त हुआ है।

फ्रेस्को भित्ति चित्र

यूरोप में फ्रेस्को चित्रण मुख्यतः दो विधियों से किया जाता रहा है। प्रथम विधि में पलस्तर की हुई सूखी दीवार पर जलरंगों से चित्रण किया जाता है जिसे फ्रेस्को सक्को (Fresco Secco) कहते हैं। इससे बनाये चित्र स्थायी रहते हैं और न उनमें रंगों की एकसी चमक होती है। दूसरी विधि में गौले पलस्तर पर जलरंगों में काम किया जाता है। विधि के रंग पक्के हो जाते हैं व पलस्तर को हटाये बिना चित्र को मिटाया नहीं जा सकता।

इस विधि फ्रेस्को (Fresco (Bran) कहते इस विधि का प्रयोग इटली में लगभग 14वीं से 16वीं सदी तक हुआ विधि में साधारण पलस्तर पर विशेष आरिकाक्कातो पलस्तर (Arricaccato) चढ़ाया जाता है। जिस पर चित्र का रेखांकन उतारा जाता है। अब इसके ऊपर फिर उतने हिस्से पर पलस्तर चढ़ाया जाता है जितने पर एक दिन में चित्रण हो सके इसे इन्तोनाको (Intonaco) कहते हैं। इस तरह विभिन्न हिस्सों में कार्य करके भित्तिचित्र पूरा किया जाता है। भित्तिचित्रण की भारतीय विधियों विविध प्रकार की हैं।

कला चित्रण के लिए उपयुक्त सामग्री

मिश्रण पट्टिका मिश्रण फलक

अंगूठे में पकड़ने के लिए छेदवाली पट्टिका जिस पर रंगों को निकालकर मिश्रित किया जाता है।

पेंसिल

18वीं सदी के अन्त तक छोटी तुलिका को पेंसिल कहते थे। अब ग्रेफाइट से बनी वर्तिका को पेंसिल कहते हैं।

हार्ड पेंसिल

H.2H.3H. 4H ये ज्यामितीय कला में प्रयुक्त होती है।

सॉफ्ट पेंसिल

B. 20. 38, 48. 68 ये कोमल रेखांकन हेतु प्रयुक्त की जाती हैं।

आरेखण पट्ट

आधार के तौर पर लिया गया चिकना पट्ट जिस पर चित्र बनाने के लिए कागज या कैनवास लगाया जाता है।

ब्रिस्टल बोर्ड

महीन रेखांकन के लिए उपयुक्त अत्यधिक चिकना सफेद रंग का कागज का फलक •

हार्ड बोर्ड

विशेष रूप से सख्त बनाया गया गत्ता जो चित्रण में धरातल के रूप में काम में लिया जाता है।

कैनवास, पट

तैलचित्रण के लिए विशेष तरीके से लेपित छालटी सन या रूई का कपड़ा।

कैनवास बोर्ड

कैनवास जैसी बनावट का कैनवास की तरह लेपित बोर्ड |

फलक, पट्ट

टीवार या छत का हिस्सा या उस पर स्थायी रूप से जोड़ा हुआ धरातल जिस पर प्रायः चित्रकारी या शिल्पकार्य किया जाता है।

वसली

मुगल काल में चित्ररचना के लिए तीन-चार पहले कागजों को चिपकाकर उनकी मोटी परत बनायी जाती थी। बाद में कागज की अच्छी तरह से घुटाई करके मोटा चिकना धरातल बनाया जाता था फिर चित्रण कार्य होता था। चित्र रचना के लिए इस प्रकार बनाया मोटा कागज वसली कहलाता है।

आधार छड़ी चित्रकारी करते समय चित्रकार द्वारा हाथ के नीचे आधार के रूप में रखी जाने वाली छड़ी।

अलसी का तेल

यह तैलचित्रण के कार्य में लिया जाता है।

शुष्कक

चित्रण करने के पश्चात् रंग कम समय में सूख -जाने हेतु उनमें मिलाया जाने वाला पदार्थ

तिपाई

चित्र बनाते समय आधार के लिए उपयुक्त लकड़ी के टेक।

कागज का आकार

कागज का उत्पादन साधारणतया निम्नलिखित आकारों में किया जाता है

(1) मी 20 x 15.5

(6) रॉयल 24X19 । (4)

(5) डबल एलेफेट 40″ x 26.75°

(b) इंटिरियन 53×31

(2) मीडियम 22 x 17.5 इम्पीरियल 30.5″ x 22.5″

कागज की मोटाई एक रीम कागज के वजन में मार्च जाती है।

दृष्टिजन्य मिश्रण

प्रभाववादी रंगाकन पद्धति के अनुसार रंगों को प्रत्यक्ष मिश्रित करने के बजाय मिन्न रंगों को सही छटाओं को चुनकर उनके धब्बों को विशुद्ध रूप में समय अंकित किया जाता है। दूर से देखने पर ये धर्म एक दूसरे में विलीन हो जाते हैं और जगमगाता मिश्रित रंग नजर आता है। समीपवर्ती मिन रंगों के धब्बों को मिश्रित रूप में देखने की क्रिया को दृष्टिजन्य मिश्रण कहते है व यह मिश्रित प्रभाव रंगों के प्रत्यक्ष मिश्रण से अधिक चमकीला व आकर्षक होता है।

भूकृतियाँ

भूमि से प्राप्त मिट्टी, कंकड रेती जैसे पदार्थों को लेकर जमीन पर की गयी रचनाएँ राबर्ट मिसन राबर्ट मोरिस ने इस तरह की भूकृतियों की रचनाएँ की.

कार्टूश

चारों तरफ मुढी हुई कुण्डली नुमा अलंकरण में युक्त आयताकार या अण्डाकार सख्ती वास्तुकला चित्रकला, मूर्तिकला व स्मारकों में इसका उपयोग अभिलेख आदर्श विचार या गुलचिह्न अंकित करने के लिए किया जाता रहा है। .

जैव रूप कला

वस्तु निरपेक्ष कला का प्रकार जिसमें आकारों को प्रत्यक्ष सृष्टि के सजीव प्राणियों व वनस्पति के रूपों में पृथक्करण से बनाया जाता है।

स्थिरीकरण

चौक, पेंसिल कार्बन या पेस्टल जैसे अस्थिर माध्यमों में बनाये चित्रों को कागज पर उचित दय का छिड़काव करके स्थिर करना।

माकेमोनो

चीनी या जापानी आड़ा कुंडलीनुमा चित्र ।

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  • भाऊ समर्थ | Bhau Samarth
    भाऊ समर्थ का जन्म महाराष्ट्र में भण्डारा जिले के लाखनी नामक ग्राम में 14 मार्च 1928 को हुआ था। बचपन से ही उन्हें चित्रकला का … Read more
  • रसिक डी० रावल | Rasik D. Rawal
    रसिक दुर्गाशंकर रावल का जन्म सौराष्ट्र में सारडोई में 21 अगस्त 1928 ई. को हुआ था। उनका शैशव साबरकांठा में बीता और कला की शिक्षा … Read more
  • जे. सुल्तान अली | J. Sultan Ali
    जे० सुल्तान अली का जन्म बम्बई में . 12 सितम्बर 1920 को हुआ था। उन्होंने गवर्नमेण्ट कालेज ऑफ आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स मद्रास से ललित कला … Read more
  • अ० अ० आलमेलकर | Abdul Rahim Appa Bhai Alamelkar
    अब्दुल रहीम अप्पा भाई आलमेलकर का जन्म अहमदाबाद में हुआ था। बचपन से ही उन्हें चित्रकला का शौक था। उनके पिता एक कपड़ा मिल में स्पिनिंग … Read more
  • माधव सातवलेकर | Madhav Satwalekar
    माधव सातवलेकर का जन्म 1915 ई० में हुआ था पश्चिमी यथार्थवादी एकेडेमिक पद्धति को भारतीय विषयों के अनुकूल चित्रण का माध्यम बनाने वाले चित्रकारों में … Read more
  • श्यावक्स चावड़ा | Shiavax Chavda
    श्यावक्स चावड़ा का जन्म दक्षिणी गुजरात के नवसारी करने में 18 जून 1914 को गुजराती भाष-भाषी पारसी परिवार में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा गुजरात … Read more
  • कहिंगेरी कृष्ण हेब्बार | Katingeri Krishna Hebbar
    कृष्ण हेब्बार का जन्म दक्षिणी कन्नड के एक छोटे से सुन्दर गाँव कट्टिगेरी में 15 जून 1912 को हुआ था। बाल्यकाल गाँव में ही व्यतीत … Read more
  • देवकृष्ण जटाशंकर जोशी | Devkrishna Jatashankar Joshi
    श्री डी०जे० जोशी का जन्म 7 जुलाई 1911 ई० को महेश्वर में एक ब्राह्मण ज्योतिषी परिवार में हुआ था जो पण्ड्या कहे जाते थे। श्री … Read more
  • पी० टी० रेड्डी | P. T. Reddy
    पाकल तिरूमल रेड्डी का जन्म हैदराबाद (दक्षिण) से लगभग 108 मील दूर अन्नारम ग्राम में 15 जनवरी 1915 को हुआ था। बारह वर्ष की आयु … Read more
  • जसवन्त सिंह | Jaswant Singh
    सिख चित्रकारों में जसवन्त सिंह एक सशक्त अतियथार्थवादी चित्रकार के रूप में विख्यात हुए हैं। उनके अग्रज शोभासिंह तथा ठाकुरसिंह प्रति-रूपात्मक आकृतिमूलक चित्रकार थे। जसवन्त … Read more
  • अरूपदास | Arupadas
    अरूपदास का जन्म चिनसुराह में 5 जुलाई 1927 को हुआ था और बचपन इसी सुन्दर कस्बे में व्यतीत हुआ जिसका प्रभाव उनकी कला में निरन्तर … Read more
  • जहाँगीर साबावाला | Jahangir Sabawala
     जहाँगीर साबावाला का जन्म बम्बई में 1922 ई० में हुआ था। आरम्भ में उन्होंने बम्बई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और 1936 से 41 तक वहाँ … Read more
  • विमल दास गुप्ता | Vimal Das Gupta
    श्री दासगुप्ता का जन्म 28 दिसम्बर 1917 को बंगाल में हुआ था। आपका बचपन आपके ताऊजी के पास बरहमपुर (ब्रह्मपुर) गांव में व्यतीत हुआ । … Read more
  • के० श्रीनिवासुल | K. Srinivasul
    कृष्णस्वामी श्री निवासुल का जन्म मद्रास में 6 जनवरी 1923 को हुआ था उनका बचपन नांगलपुरम् की प्राकृतिक सुषमा के मध्य बीता। उनके पिता को … Read more
  • के० जी० सुब्रमण्यन् | K. G. Subramanian
    सुब्रमण्यन् (मनी) का जन्म (1824 ) केरल के पाल घाट में हुआ था। वे मद्रास चले गये और फिर बंगाल। वहाँ 1944 से शान्ति निकेतन में … Read more
  • लक्ष्मा गौड | Laxma Gaud
    लक्ष्मा गौड का जन्म निजामपुर (आन्ध्रप्रदेश) हुआ था। बचपन में आंध्र प्रदेश के ग्रामीण जीवन का जो प्रभाव उन पर पड़ा वह में उनकी कला … Read more
  • यज्ञेश्वर शुक्ल | Yagyeshwar Shukla
    गुजरात के प्रसिद्ध चित्रकार श्री यज्ञेश्वर कल्याण जी शुक्ल (वाई० के० शुक्ल ) का जन्म सुदामापुरी ( पोरबन्दर, गुजरात) में हुआ था । बचपन से … Read more
  • विकास भट्टाचार्जी | Vikas Bhattacharjee
    विकास का जन्म कलकत्ता में 21 जून 1940 को हुआ था। आरम्भिक शिक्षा के बाद कला के अध्ययन के लिये कलकत्ता के इण्डियन कालेज आफ … Read more
  • जोगेन चौधरी | Jogen Chaudhary
    जोगेन चौधरी का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के फरीदपुर नामक गाँव में 19 फरवरी 1939 ई० को एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। उनकी … Read more
  • जगन्नाथ मुरलीधर अहिवासी | Jagannath Muralidhar Ahivasi
    श्री अहिवासी का जन्म 6 जुलाई 1901 को ब्रज भूमि में गोकुल के निकट बल्देव ग्राम में हुआ था। जब आप केवल चार वर्ष के … Read more
  • परमानन्द चोयल | Parmanand Choyal
    श्री परमानन्द चोयल का जन्म 5 जनवरी 1924 को कोटा (राजस्थान) में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त कला में अभिरूचि होने के … Read more
  • गणेश पाइन | Ganesh Pyne
    गणेश पाइन का जन्म 19 जून 1937 को कलकत्ता में हुआ था। उन्होंने कलकत्ता कला महाविद्यालय से 1959 में ड्राइंग एण्ड पेण्टिंग में डिप्लोमा परीक्षा … Read more
  • रविशंकर रावल | Ravi Shankar Rawal
    आप गुजरात के प्रसिद्ध चित्रकार थे । आपने बम्बई में कला की शिक्षा ग्रहण की और वहां आप पर पाश्चात्य शैली का प्रभाव पड़ा। आगे … Read more
  • बीरेश्वर भट्टाचार्जी | Bireshwar Bhattacharjee
    श्री वीरेश्वर भट्टाचार्जी का जन्म ढाका (अब बांग्लादेश) में 25 जुलाई 1935 को हुआ था। आरम्भिक शिक्षा स्थानीय रूप से प्राप्त करने के पश्चात् तथा … Read more
  • ए० रामचन्द्रन | A. Ramachandran
    रामचन्द्रन का जन्म केरल में हुआ था। वे आकाशवाणी पर गायन के कार्यक्रम में भाग लेते थे। कुछ समय पश्चात् उन्होंने केरल विश्व विद्यालय से … Read more
  • देवकी नन्दन शर्मा | Devki Nandan Sharma
    प्राचीन जयपुर रियासत के राज-कवि के पुत्र श्री देवकी नन्दन शर्मा का जन्म 17 अप्रैल 1917 को अलवर में हुआ था । 1936 में आपने … Read more
  • अनुपम सूद | Anupam Sood
    अनुपम सूद का जन्म होशियारपुर में 1944 में हुआ था। उन्होंने कालेज आफ आर्ट दिल्ली से 1967 में नेशनल डिप्लोमा उत्तीर्ण किया। इसके पश्चात् कुछ … Read more
  • परमजीत सिंह | Paramjit Singh
    परमजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1935 अमृतसर में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा के उपरान्त वे दिल्ली पॉलीटेक्नीक के कला को विभाग में प्रविष्ट हुए … Read more
  • बम्बई आर्ट सोसाइटी | Bombay Art Society
    भारत में पश्चिमी कला के प्रोत्साहन के लिए अंग्रेजों ने बम्बई में सन् 1888 ई० में एक आर्ट सोसाइटी की स्थापना की। श्री फोरेस्ट इसके … Read more
  • भूपेन खक्खर | Bhupen Khakhar
    भूपेन खक्खर का जन्म 10 मार्च 1934 को बम्बई में हुआ था। उनकी माँ के परिवार में कपडे रंगने का काम होता था। पिता की … Read more
  • के०सी० एस० पणिक्कर | K.C.S.Panikkar
    तमिलनाडु प्रदेश की कला काफी पिछड़ी हुई है। मन्दिरों से उसका अभिन्न सम्बन्ध होते हुए भी आधुनिक जीवन पर उसकी कोई छाप नहीं है। इसी … Read more
  • रवि वर्मा | Ravi Verma Biography
    रवि वर्मा का जन्म केरल के किलिमन्नूर ग्राम में अप्रैल सन् 1848 ई० में हुआ था। यह कोट्टायम से 24 मील दूर है। वे राजकीय … Read more
  • नारायण श्रीधर बेन्द्रे | Narayan Shridhar Bendre
    बेन्द्रे का जन्म 21 अगस्त 1910 को एक महाराष्ट्रीय मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पूर्वज पूना में रहते थे। पितामह पूना छोड़ कर … Read more
  • शैलोज मुखर्जी
    शैलोज मुखर्जी का जन्म 2 नवम्बर 1907 दन को कलकत्ता में हुआ था। उनकी कला चेतना बचपन से ही मुखर हो उठी थी और बर्दवान … Read more
  • दत्तात्रेय दामोदर देवलालीकर | Dattatreya Damodar Devlalikar Biography
    अपने आरम्भिक जीवन में “दत्तू भैया” के नाम से लोकप्रिय श्री देवलालीकर का जन्म 1894 ई० में हुआ था। वे जीवन भर कला की साधना … Read more
  • बी. प्रभा
    नागपुर में जन्मी बी० प्रभा (1933 ) को बचपन से ही चित्र- रचना का शौक था। सोलह वर्ष की आयु में उन्होंने नागपुर के कला-विद्यालय में … Read more
  • सजावटी चित्रकला | Decorative Arts
    भारतीयों की कलात्मक अभिव्यक्ति केवल कैनवास या कागज पर चित्रकारी करने तक ही सीमित नहीं है। घरों की दीवारों पर सजावटी चित्रकारी ग्रामीण इलाकों में … Read more
  • भारत में विदेशी चित्रकार | Foreign Painters in India
    आधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास के आरम्भ में उन विदेशी चित्रकारों का महत्वपूर्ण योग रहा है जिन्होंने यूरोपीय प्रधानतः ब्रिटिश, कला शैली के प्रति भारतीय … Read more
  • भारतीय चित्रकला | Indian Art
    परिचय टेराकोटा पर या इमारतों, घरों, बाजारों और संग्रहालयों की दीवारों पर आपको कई पेंटिंग, बॉल हैंगिंग या चित्रकारी दिख जाएँगी। ये चित्र हमारे प्राचीन … Read more
  • मिथिला चित्रकला | मधुबनी कला  | Mithila Painting
    मिथिला चित्रकला, जिसे मधुबनी लोक कला के रूप में भी जाना जाता है. बिहार के मिथिला क्षेत्र की पारंपरिक कला है। यह गाँव की महिलाओं द्वारा निर्मित की … Read more
  • डेनियल चित्रकार  | टामस डेनियल तथा विलियम डेनियल | Thomas Daniels and William Daniels
    टामस तथा विलियम डेनियल भारत में 1785 से 1794 के मध्य रहे थे। उन्होंने कलकत्ता के शहरी दृश्य, ग्रामीण शिक्षक, धार्मिक उत्सव, नदियाँ, झरने तथा … Read more
  • प्राचीन काल में चित्रकला में प्रयुक्त सामग्री | Material Used in Ancient Art
    विभिन्न प्रकार के चित्रों में विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया जाता था। साहित्यिक स्रोतों में चित्रशालाओं (आर्ट गैलरी) और शिल्पशास्त्र (कला पर तकनीकी ग्रंथ) का … Read more
  • कालीघाट चित्रकारी | Kalighat Painting
    कालीघाट चित्रकला का नाम इसके मूल स्थान कोलकाता में कालीघाट के नाम पर पड़ा है। कालीघाट कोलकाता में काली मंदिर के पास एक बाजार है। ग्रामीण … Read more
  • आगोश्तों शोफ्त | Agoston Schofft
    शोफ्त (1809-1880) हंगेरियन चित्रकार थे। उनके विषय में भारत में बहुत कम जानकारी है। शोफ्त के पितामह जर्मनी में पैदा हुए थे पर वे हंगरी में … Read more
  • रमेश बाबू कन्नेकांति | Painting – Tranquility & harmony By Ramesh Babu Kannekanti
    यह कला पहाड़ी कलाकृतियों की 18वीं शताब्दी की शैली से प्रेरित है। इस आनंदमय दृश्य में, पार्वती पति भगवान शिव को सुशोभित करने के लिए … Read more
  • पटना चित्रकला | पटना या कम्पनी शैली | Patna School of Painting
    औरंगजेब द्वारा राजदरबार से कला के विस्थापन तथा मुगलों के पतन के बाद विभिन्न कलाकारों ने क्षेत्रीय नवाबों के यहाँ आश्रय लिया। इनमें से कुछ कलाकारों … Read more
  • सतीश गुजराल | Satish Gujral Biography
    सतीश गुजराल का जन्म पंजाब में झेलम नामक स्थान पर 1925 ई० में हुआ था। केवल दस वर्ष की आयु में ही उनकी श्रवण शक्ति … Read more
  • रमेश बाबू कनेकांति | Painting – A stroke of luck By Ramesh Babu Kannekanti
    गणेश के हाथी के सिर ने उन्हें पहचानने में आसान बना दिया है। भले ही वह कई विशेषताओं से सम्मानित हैं, भगवान गणेश की व्यापक … Read more
  • आधुनिक काल में चित्रकला
    18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में, चित्रों में अर्द्ध-पश्चिमी स्थानीय शैली शामिल हुई, जिसे ब्रिटिश निवासियों और आगंतुकों द्वारा संरक्षण दिया … Read more
  • प्रगतिशील कलाकार दल | Progressive Artist Group
    कलकत्ता की तुलना में बम्बई नया शहर है किन्तु उसका विकास बहुत अधिक और शीघ्रता से हुआ है। 1911 में अंग्रेजों ने भारत की राजधानी … Read more
  • रमेश बाबू कन्नेकांति की पेंटिंग | Eternal Love By Ramesh Babu Kannekanti
    शिव के चार हाथ शिव की कई शक्तियों को दर्शाते हैं। पिछले दाहिने हाथ में ढोल है, जो ब्रह्मांड के प्रकट होने पर आदिवासी ध्वनि … Read more
  • मध्यकालीन भारत में चित्रकला | Painting in Medieval India
    दिल्ली में सल्तनत काल की अवधि के दौरान शाही महलों, शयनकक्षों और मसजिदों से भित्ति चित्रों के साक्ष्य मिले हैं। ये मुख्य रूप से फूलों, … Read more
  • रथीन मित्रा (1926)
    रथीन मित्रा का जन्म हावड़ा में 26 जुलाई को 1926 में हुआ था। उनकी कला-शिक्षा कलकत्ता कला-विद्यालय में हुई । तत्पश्चात् वेदून स्कूल के कला-विभाग … Read more
  • रामगोपाल विजयवर्गीय | Ramgopal Vijayvargiya
    पदमश्री रामगोपाल विजयवर्गीय जी का जन्म बालेर ( जिला सवाई माधोपुर) में सन् 1905 में हुआ था। आप महाराजा स्कूल आफ आर्ट जयपुर में श्री … Read more
  • रणबीर सिंह बिष्ट | Ranbir Singh Bisht
    रणबीर सिंह बिष्ट का जन्म लैंसडाउन (गढ़बाल, उ० प्र०) में 1928 ई० में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा गढ़वाल में ही प्राप्त करने के उपरान्त कला … Read more
  • नन्दलाल बसु | Nandlal Basu
    श्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर की शिष्य मण्डली के प्रमुख साधक नन्दलाल बसु थे ये कलाकार और विचारक दोनों थे। उनके व्यक्तित्व में कलाकार और तपस्वी का … Read more
  • ललित मोहन सेन | Lalit Mohan Sen
    ललित मोहन सेन का जन्म 1898 में पश्चिमी बंगाल के नादिया जिले के शान्तिपुर नगर में हुआ था ग्यारह वर्ष की आयु में वे लखनऊ … Read more
  • सुधीर रंजन खास्तगीर | Sudhir Ranjan Khastgir
    सुधीर रंजन खास्तगीर का जन्म 24 सितम्बर 1907 को कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता श्री सत्यरंजन खास्तगीर छत्ताग्राम (आधुनिक चटगाँव) के निवासी थे और … Read more
  • मनीषी दे | Manishi De
    दे जन्मजात चित्रकार थे। एक कलात्मक परिवार में उनका जन्म हुआ था। मनीषी दे का पालन-पोषण रवीन्द्रनाथ ठाकुर की. देख-रेख में हुआ था। उनके बड़े … Read more
  • नीरद मजूमदार | Nirad Majumdaar
    नीरद (अथवा बंगला उच्चारण में नीरोद) को नीरद (1916-1982) चौधरी के नाम से भी लोग जानते हैं। उनकी कला में प्राचीन भारतीय विचारधारा तथा देवी-देवताओं … Read more
  • कनु देसाई | Kanu Desai
    (1907) गुजरात के विख्यात कलाकार कनु देसाई का जन्म – 1907 ई० में हुआ था। आपकी कला शिक्षा शान्ति निकेतन में हुई और आपको नन्दलाल … Read more
  • रामकिंकर वैज | Ramkinkar Vaij
    शान्तिनिकेतन में “किकर दा” के नाम से प्रसिद्ध रामकिंकर का जन्म बांकुड़ा के निकट जुग्गीपाड़ा में हुआ था। बाँकुडा में उनकी आरम्भिक शिक्षा हुई।  सन् … Read more
  • मिश्रित यूरोपीय पद्धति के राजस्थानी चित्रकार | Rajasthani Painters of Mixed European Style
    इस समय यूरोपीय कला से राजस्थान भी प्रभावित हुआ। 1851 में विलियम कारपेण्टर तथा 1855 में एफ०सी० लेविस ने राजस्थान को प्रभावित किया जिसके कारण छाया-प्रकाश युक्त … Read more
  • शारदाचरण उकील | Sharadacharan Ukil
    श्री उकील का जन्म बिक्रमपुर (अब बांगला देश) में हुआ था। आप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रमुख शिष्यों में से थे। उकील का परिवार बंगाल का … Read more
  • के० वेंकटप्पा | K. Venkatappa
    आप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के आरम्भिक शिष्यों में से थे। आपके पूर्वज विजयनगर के दरबारी चित्रकार थे विजय नगर के पतन के पश्चात् आप मैसूर राज्य … Read more
  • विनोद बिहारी मुखर्जी | Vinod Bihari Mukherjee Biography
    मुखर्जी महाशय (1904-1980) का जन्म बंगाल में बहेला नामक स्थान पर हुआ था। आपकी आरम्भिक शिक्षा स्थानीय पाठशाला में हुई और अस्वस्थता के कारण आपके … Read more
  • हेमन्त मिश्र (1917)
    असम के चित्रकार हेमन्त मिश्र एक मौन साधक हैं। वे कम बोलते हैं। वेश-भूषा से क्रान्तिकारी लगते है अपने रेखा-चित्रों में वे अपने मन की … Read more
  • अब्दुर्रहमान चुगताई (1897-1975) 
    वंश परम्परा से ईरानी और जन्म से भारतीय श्री मुहम्मद अब्दुर्रहमान चुगताई अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के ही एक प्रतिभावान् शिष्य थे जिन्हें बंगाल शैली का प्रचार … Read more
  • देवी प्रसाद राय चौधरी | Devi Prasad Raychaudhari
    देवी प्रसाद रायचौधुरी का जन्म 1899 ई० में पू० बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में रंगपुर जिले के ताजहाट नामक ग्राम में एक जमीदार परिवार में हुआ … Read more
  • क्षितीन्द्रनाथ मजुमदार | Kshitindranath Majumdar
    क्षितीन्द्रनाथ मजूमदार का जन्म 1891 ई० में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में निमतीता नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता श्री केदारनाथ मजूमदार जगताई … Read more
  • क्षितीन्द्रनाथ मजुमदार के चित्र | Paintings of Kshitindranath Majumdar
    1. गंगा का जन्म (शिव)- (कागज, 12 x 18 इंच ) 2. मीराबाई की मृत्यु – ( कागज, 12 x 18 इंच ) 3. बुद्ध … Read more
  • असित कुमार हाल्दार | Asit Kumar Haldar
    श्री असित कुमार हाल्दार में काव्य तथा चित्रकारी दोनों ललित कलाओं का सुन्दर संयोग मिलता है। श्री हाल्दार का जन्म 10 सितम्बर 1890 को द्वारिकानाथ … Read more
  • ठाकुर परिवार | ठाकुर शैली
    1857 की असफल क्रान्ति के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत में हर प्रकार से अपने शासन को दृढ़ बनाने का प्रयत्न किया, किन्तु बीसवीं शती के … Read more
  • अवनीन्द्रनाथ ठाकुर
    आधुनिक भारतीय चित्रकला आन्दोलन के प्रथम वैतालिक श्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म जोडासको नामक स्थान पर सन् 1871 में जन्माष्टमी के दिन हुआ था। आपका … Read more
  • कला के क्षेत्र में किये जाने वाले सरकारी प्रयास | Government efforts made by the British in the field of art
    सन् 1857 की क्रान्ति के असफल हो जाने से अंग्रेजों की शक्ति बढ़ गयी और भारत के अधिकांश भागों पर ब्रिटिश शासन थोप दिया गया। … Read more
  • बंगाल का आरम्भिक तैल चित्रण | Early Oil Painting in Bengal
    अठारहवीं शती में बंगाल में जो तैल चित्रण हुआ उसे “डच बंगाल शैली” कहा जाता है। इससे स्पष्ट है कि यह माध् यम डच कलाकारों … Read more
  • कम्पनी शैली | पटना शैली | Compony School Paintings
    अठारहवी शती के मुगल शैली के चित्रकारों पर उपरोक्त ब्रिटिश चित्रकारों की कला का बहुत प्रभाव पड़ा। उनकी कला में यूरोपीय तत्वों का बहुत अधिक मिश्रण … Read more
  • पट चित्रकला | पटुआ कला क्या है
    लोककला के दो रूप है, एक प्रतिदिन के प्रयोग से सम्बन्धित और दूसरा उत्सवों से सम्बन्धित पहले में सरलता है; दूसरे में आलंकारिकता दिखाया तथा शास्त्रीय नियमों के अनुकरण की प्रवृति है। पटुआ कला प्रथम प्रकार की है।
  • काँच पर चित्रण | Glass Painting
    अठारहवीं शती उत्तरार्द्ध में पूर्वी देशों की कला में अनेक पश्चिमी प्रभाव आये। यूरोपवासी समुद्री मार्गों से खूब व्यापार कर रहे थे। डचों, पुर्तगालियों, फ्रांसीसियों … Read more
  • आधुनिक भारतीय चित्रकला की पृष्ठभूमि | Aadhunik Bharatiya Chitrakala Ki Prshthabhoomi
    आधुनिक भारतीय चित्रकला का इतिहास एक उलझनपूर्ण किन्तु विकासशील कला का इतिहास है। इसके आरम्भिक सूत्र इस देश के इतिहास तथा भौगोलिक परिस्थितियों से जुड़े हुए हैं। विस्तारवादी, … Read more
  • Gopal Ghosh Biography | गोपाल घोष (1913-1980)
    आधुनिक भारतीय कलाकारों में रोमाण्टिक के रूप में प्रतिष्ठित कलाकार गोपाल घोष का जन्म 1913 में कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता स्वयं एक अच्छे … Read more
  • कलकत्ता ग्रुप
    1940 के लगभग से कलकत्ता में भी पश्चिम से प्रभावित नवीन प्रवृत्तियों का उद्भव हुआ । 1943 में प्रदोष दास गुप्ता के प्रयत्नों से कलाकारों … Read more
  • पटना शैली
    उथल-पुथल के इस अनिश्चित वातावरण में दिल्ली से कुछ मुगल शैली के चित्रकारों के परिवार आश्रय की खोज में भटकते हुए पटना (बिहार) तथा कलकत्ता … Read more
  • मैसूर शैली
    दक्षिण के एक दूसरे हिन्दू राज्य मैसूर में एक मित्र प्रकार की कला शैली का विकास हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मैसूर की चित्रकला … Read more
  • तंजौर शैली
    तंजोर के चित्रकारों की शाखा के विषय में ऐसा अनुमान किया जाता है कि यहाँ चित्रकार राजस्थानी राज्यों से आये इन चित्रकारों को राजा सारभोजी … Read more

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कलाएं कितने प्रकार की होती हैं? आपको जानकर यकीन नहीं होगा… जोगीमारा गुफा के बारे आप ये 10 बातें जानते है क्या ? लघु चित्रकला की जैन शैली के बारे में आप क्या जानते है? एलोरा की गुफाएं क्यों प्रसिद्ध है? कला की ये परिभाषाएं क्या आपको पता हैं ?
कलाएं कितने प्रकार की होती हैं? आपको जानकर यकीन नहीं होगा… जोगीमारा गुफा के बारे आप ये 10 बातें जानते है क्या ? लघु चित्रकला की जैन शैली के बारे में आप क्या जानते है? एलोरा की गुफाएं क्यों प्रसिद्ध है? कला की ये परिभाषाएं क्या आपको पता हैं ?