---Advertisement---

देवी प्रसाद राय चौधरी | Devi Prasad Raychaudhari

By admin

Published on:

Follow Us

देवी प्रसाद रायचौधुरी का जन्म 1899 ई० में पू० बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में रंगपुर जिले के ताजहाट नामक ग्राम में ...

देवी प्रसाद राय चौधरी
---Advertisement---

देवी प्रसाद रायचौधुरी का जन्म 1899 ई० में पू० बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में रंगपुर जिले के ताजहाट नामक ग्राम में एक जमीदार परिवार में हुआ था। 

इनका बचपन ताजहाट में ही व्यतीत हुआ। कुछ समय पश्चात् इन्होंने कलकत्ता के खेलात कला केन्द्र में अध्ययन हेतु प्रवेश लिया। 

फिर मित्र इन्स्टीटयूशन में शिक्षा ग्रहण की कला में इनकी विशेष रुचि देखकर इनके पिताजी इन्हें 1914 में अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के पास ले गये। 

यहाँ इन्होंने बहुत मनोयोग पूर्वक कार्य सीखा। इसी समय इनकी भेंट एक इटालियन चित्रकार बोइस (Boiess) से हुई जिनसे श्री रायचौधुरी ने पश्चिमी चित्रण तकनीकों का गम्भीर अध्ययन किया। 

कुछ दिन इन्होंने हिरण्मय रायचौधुरी के स्टुडियो में मूर्तियों का माडलिंग सीखा। ये इण्डियन सोसाइटी ऑफ ओरियण्टल आर्ट से भी सम्बन्धित रहे और वहाँ पश्चिमी तकनीक में काम करते रहे। शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात् इन्होंने स्वतन्त्र रूप में कार्य करना आरम्भ कर दिया और शीघ्र ही चित्रकला तथा मूर्तिकला दोनों क्षेत्रों में प्रसिद्ध होते चले गये अनेक पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कृतियाँ छपने लगीं। 

1929 ई० में गवर्नमेंट स्कूल आफ आर्ट मद्रास के अधीक्षक बनाये गये। बाद में ये वहाँ के प्रिंसिपल बने और उसी पद पर रहते हुए 1957 ई० में सेवा निवृत्त हुए। 

1953 में ये ललित कला अकादमी नई दिल्ली के प्रथम चेयरमेन चुने गये और 1955 में जापान के टोक्यों नगर में यूनेस्को द्वारा आयोजित कला गोष्ठी के प्रेसीडेण्ट तथा डाइरेक्टर भी रहे। 

इन्हें रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय ने डी०लिट् की मानद उपाधि प्रदान की तथा 1958 में भारत सरकार ने ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया। 1975 में इनका निधन हो गया।

श्री देवी प्रसाद रायचौधुरी अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के दूसरे महान् शिष्य माने जाते हैं। आपने मद्रास क्षेत्र में आधुनिक कला का प्रचार किया। 

चित्रकला और मूर्तिकला पर आपको समान अधिकार प्राप्त था और आपकी बनायी मूर्तियाँ अनेक महत्वपूर्ण स्थानों पर प्रदर्शित हैं। 

इनमें सबसे महत्वपूर्ण कृति “श्रम की विजय” हे जो राष्ट्रीय आधुनिक कला वीथिका नई दिल्ली के प्रांगण की शोभा बढ़ा रही है।

आरम्भ में आपने ठाकुर शैली में कार्य किया और पौराणिक विषयों को लेकर संवदेनशील रेखा तथा गहरे रंगों के सपाट वाश में कार्य किया। 

उसके साथ ही आपने दृश्य-चित्र भी वाश तथा टेम्परा के मिश्रित तकनीक में अंकित किये। उन पर जापानी दृश्य-चित्रण का भी प्रभाव है। 

पश्चिमी अकादमी शैली में रूचि उत्पन्न होने के उपरान्त आपकी आकृतियों में ओजपूर्ण रेखा तथा शास्त्रीय शरीर रचना का पूर्ण प्रभाव दिखाई देता है। इस युग की आपकी प्रसिद्ध कृति 1922 ई० में अंकित रवीन्द्रनाथ ठाकुर का व्यक्ति-चित्र है। 

छाया-प्रकाश पर अधिक ध्यान, गहरे रंगों का प्रयोग, रंगों का विभिन्न बलों में विभाजन प्रकाश के प्रभावों को ध्यान में रखकर किया गया है। आपने बनजारों, मछुओं तथा पहाडी जीवन का भी अंकन किया है। 

जल रंगों के अतिरिक्त तेल रंगों तथा पेस्टल में भी आपने बहुत सा कार्य किया है। प्राचीन अथवा परम्परागत विषयों के बजाय आपने समकालीन जीवन से प्रेरणा लेकर चित्रांकन अधिक किया है। 

व्यक्ति-चित्रण भी आपकी कला की महत्वपूर्ण विशेषता है आपके दृश्य-चित्र तथा सामाजिक विषयों के चित्र एक समान प्रभावशाली हैं। 

गहरे रंगों का प्रयोग आपको प्रिय है। आपने जल तथा तैल माध्यम में सागरीय तथा खेतों के दृश्य भी अंकित किये। आपके पशु अध्ययन-चित्र अद्वितीय हैं। 

सेवा-निवृत होने के पश्चात् आपने दृढ एवं ओजपूर्ण रेखाओं तथा धब्बों और चौड़े तूलिका स्पर्शो में स्याही एवं रंगों से अनेक सुन्दर कृतियों का निर्माण किया। 

आपकी आकृतियाँ वास्तविक शारीरिक अनुपातों आदि को ध्यान में रखकर बनायी गई हैं न कि काल्पनिक अथवा काव्यात्मक आदर्श के आधार पर। 

आकृतियों में गढ़न-शीलता के लिये छाया-प्रकाश की पश्चिमी पद्धति का भी सहारा लिया गया है किन्तु पाश्चात्य पद्धति से अंकित होने पर भी आपके चित्रों में भावों की सफल व्यंजना रहती है।

क्षण-क्षण परिवर्तित होते हुए पर्वतीय नारी-सौंदर्य को रायचौधुरी ने अपने कला से अमर कर दिया है। लेपचा महिला की आकृति यौवन की उष्णता से परिपूर्ण है, उसकी आँखों में उत्कट वासना है। भूटिया स्त्री का चित्र भी इसी प्रकार का है। 

“कमल-सरोवर” शीर्षक चित्र में विरह-वेदना से सन्तप्त एक युवती सरोवर में प्रस्फुटित होती कमल की कलियों को उदास और शून्य भाव से देख रही है। उसके वस्त्र भी अस्त-व्यस्त से हैं। 

बुझे हुए हल्के हरे, नीले तथा पीले रंगों से चित्र का भाव सफलतापूर्वक अभिव्यक्त हुआ है। आपके अन्य प्रसिद्ध चित्र है- हरा और सुवर्ण (टेम्परा), आंधी के पश्चात् (जलरंग), निर्वाण (तैल), पुल (पेस्टल), महल की गुड़िया (जल रंग), दुर्गा पूजा शोभा यात्रा (तैल) तथा अभिसारिका (जल रंग) आदि।

एक सफल चित्रकार के अतिरिक्त श्री रायचौधुरी विख्यात मूर्तिकार भी थे। उन्होंने महापुरूषों की अनेक प्लास्टर तथा काँस्य की प्रतिमाओं का निर्माण किया है। 

ऐनीबीसेण्ट, लीडबीटर, सर सी.बी. कुमारस्वामी शास्त्री, सर सी० पी० रामास्वामी अय्यर, सर सी० आर० रेड्डी, सर आर० के० शन्मुखम् के अतिरिक्त अनेक गवर्नरों, नेताओं और न्यायाधीशों की मानवाकार तथा आवक्ष प्रतिमाओं की उन्होंने रचना की है “श्रम की विजय उनकी एक प्रसिद्ध कांस्य कृति है।

Indian Art Books:

---Advertisement---

Leave a Comment