चित्रकला के जिस संस्थान का बीजारोपण अकबर ने किया था वास्तव में वह जहाँगीर (१६०५-१६२७ ईसवी राज्यकाल) के समय में पूर्ण यौवन और विकास को प्राप्त हुआ। जहाँगीर उदार, प्रेमी, लेखक, चित्रकार और योग्य न्यायप्रिय शासक था। उसने अपनी आत्मकथा ‘तुजके जहाँगीरी’ लिखी है जो एक उच्चकोटि की स्मृतिकथा है।
जहाँगीर के काल में चित्रकला अपने चरमोत्कर्ष पर थी। चित्रकला के प्रति अटूट प्रेम व लग्न जहाँगीर को पैतृक गुण के रूप में प्राप्त हुआ। जहाँगीर के विषय में रायकृष्ण दास जी ने उसके [विषय में लिखा है कि “जहाँगीर बड़ा ही सहृदय, सुरुचि-सम्पन्न, परले दर्जे का चित्रप्रेमी, प्रकृति-सौन्दर्य-उपासक, वृक्ष-खग, मृग-विज्ञानी, संग्रहकर्ता, विशद वर्णनाकार, पक्का जिज्ञासु, निसर्ग निरीक्षक और प्रज्ञावादी था। जिस बात को उसकी बुद्धि गवारा न करती, उसे पास न फटकने देता था। जहाँगीर के समय के बने चित्रों में ये मनोवृत्तियाँ स्पष्ट उजागार होकर आयी है।”
जहाँगीर का चित्र प्रेम जहाँगीर प्रसिद्ध मुसब्बिर ख्वाजा अब्दुस्समद का सहपाठी था। उसके चित्र विश्लेषण बुद्धि की प्रशंसा उसकी स्वरचित पुस्तक ‘तुजुक-ए-जहाँगीरी’ में ही नहीं अपितु उसके समय के ही अनेक यूरोपियन यात्रियों ने भी की है।
जहाँगीर ने चित्रों के पारखी होने की कथा उसने स्वयं जहाँगीरनामा में लिखी है, “मेरी चित्र के प्रति रूचि और पहचान यहाँ तक बढ़ गयी है कि प्राचीन एवं नवीन उस्तादों में जिस किसी का काम मेरे सामने आता है मैं उसका नाम सुने बिना ही झट से उसे पहचान लेता हूँ कि यह अमूक उस्ताद का बनाया हुआ है यदि एक चित्र में कई चेहरे हो और एक चेहरा अलग-अलग चित्रकार का बनाया हुआ हो तो भी मैं जान सकता हूँ कि कौन सा चेहरा किसने बनाया है और यदि एक ही चेहरे में आँख किसी की, भवें किसी की बनायी हुई हो तो भी मैं पहचान लूँगा कि बनाने वाला कौन है। जहाँगीर चित्रकारों का आदर करता था। जहाँगीर की चित्रों में ऐसी रूचि थी कि वह अपने क्रोध, करूणा व सौहार्द्र जैसी भावनाओं के लिये भी चित्रकारी करता था।”
जहाँगीर का पशु-पक्षी व प्रकृति प्रेम जहाँगीर पशु-पक्षियों के अलबम बनवाने का बड़ा शौकीन था। प्रकृति प्रेम के कारण ही उसने अपना मकबरा खुला बनवाने की पेशकश की थी। वह जानवरों के प्रति दयालु था- एक बार उसने एक हाथी को तालाब के ठण्डे पानी में कँपकँपाते देखा था तभी उसने यह हुक्म दिया कि तालाब का पानी गर्म कराया जाये जिससे यह हाथी जल-क्रीड़ा का आनन्द उठा सके।
जहाँगीर घुमक्कड़ प्रवृत्ति का था। वह जंगलों तथा कश्मीर आदि की सैर को जाया करता था। संगमरमरी वास्तु का शौकीन होने से उसने फतेहपुर सीकरी, अजमेर, कश्मीर आदि अनेक स्थानों पर संगमरमर की बारादरी बनवायी। उसने शिकार सम्बन्धी भी अनेक चित्र बनवाये।
जहाँगीर को यूरोपीय चित्रों में भी पर्याप्त रुचि थी और उसने कई धार्मिक तथा जीवन सम्बन्धी यूरोपीय चित्र उपलब्ध कर लिये थे। एक बार एक अंग्रेज राजदूत सर टामस रो जहाँगीर के दरबार में आया तो उसने जहाँगीर के लिए कुछ चित्र दिखाये जिनमें से एक चित्र जहाँगीर को बहुत पसंद आया, जो उसने सर टामस रो से एक रात के लिए ले लिया।
दूसरे दिन सम्राट ने सर टामस रो के सम्मुख उस चित्र की पाँच प्रतियाँ प्रस्तुत कर दीं और ‘रो’ को यह पहचानना कठिन हो गया था कि उनमें से कौन सी उसकी मूल तस्वीर है।
इस पर सम्राट ने कहा-‘हम चित्रकला में उतने निर्बल नहीं हैं, जितना तुम हमको समझते हो।’ जहाँगीर को अपने चित्रकारों पर बहुत अभिमान था। अकबर के समान जहाँगीर ने चित्रकारों की सुविधाजनक स्थिति को और अधिक महत्त्व दिया, इसी कारण अनेक कलाकार उसके दरबार में आये।
‘तुज़के जहाँगीरी’ में जहाँगीर ने एक स्थल पर कश्मीर में बनवायी एक चित्रदीर्घा या गैलरी का वर्णन दिया है, उसके अनुसार-‘यह दीर्घा कुशल चित्रकारों के हाथों से अलंकृत थी। सबसे अधिक सम्माननीय स्थान पर हुमायूँ की छवि थी और मेरे पिता का चित्र मेरे भाई शाह अब्बास के सम्मुख था।
उनके बाद मिर्जा कामरा, मिर्जा मोहम्मद हकीम, शाह मुराद और सुल्तान दानियाल की छवियाँ थीं। दूसरी मंजिल पर अमीरों और विशेष सेवकों की छवियाँ थीं। बाह्य कक्ष की दीवारों पर कश्मीर के रास्ते के कई स्थलों के दृश्य जिस क्रम से मैंने देखे थे उसी क्रम से चित्रित किये गए थे।
इस प्रकार की दीर्घा तथा चित्रों का समय 1620 ई० अनुमानित है। इसी प्रकार का एक सुंदर शाहीमहल (चश्मेनूर) जहाँगीर ने अजमेर में बनवाया था, जिसके सुंदर चित्रों से अलंकृत होने का उल्लेख मिलता है।
Books: 
How to Draw ( Drawing Guide for Teachers and Students)
जहाँगीर के समय के चित्रकार और उनकी स्थिति
जहाँगीर के समय में चित्रकारों की स्थिति बहुत अच्छी थी। चित्रकार मनसबदार होते थे और उनके कार्य करने के लिए उत्तम चित्रशालाएँ भी थीं, जिनमें भारतीय तथा फारसी या हिन्दू तथा मुसलमान चित्रकार कार्य करते थे। बादशाह स्वयं चित्रकारों का कार्य देखता था और जिन चित्रकारों का कार्य उत्तम होता था, उनको वह इनाम देता था और उस चित्रकार का वह वेतन भी बढ़ा देता था।
उसने अपने दरबारी चित्रकार फारुख वेग (कुलमाक) के एक चित्र पर प्रसन्न होकर उसको दो हजार रुपये का इनाम दिया था। इसी प्रकार मंसूर के एक बैलगाड़ी के चित्र से प्रभावित होकर बादशाह ने उसको एक सहस्र मुद्राएँ पुरस्कार स्वरूप प्रदान की थीं।
जहाँगीर अब्बुल हसन को अपने समय का सबसे अच्छा चित्रकार मानता था। अब्बुल हसन आकारिजा का पुत्र था और उसको सम्राट ने ‘नादिर-उज्ज़मा’ (युग शिरोमणि) की उपाधि से विभूषित किया था।
अब्बुल हसन के अतिरिक्त उस्ताद मंसूर जिसको ‘नादिर उल असर’ की उपाधि प्रदान की गई थी, पशु-पक्षियों के चित्रण तथा रेखांकन में अपनी संतति का अद्वितीय कलाकार था। छवि अंकन के लिए विशनदास बेजोड़ चित्रकार था।
जहाँगीर के दरबार में चित्रकार की सुनिश्चित स्थिति देखकर विभिन्न फारसी चित्रकार उसकी शरण में आये। इन चित्रकारों में कुलमाक का सुप्रसिद्ध चित्रकार फारुखवेग, हिरात का आकारिजा और उसका पुत्र अब्बुल हसन, स्मार्क का मोहम्मद नादिर तथा मोहम्मद मुराद ऐसे ही चित्रकार थे, जो जहाँगीर के दरबार में सुदूर देशों से आये।
इसी प्रकार भारतीय चित्रकार भी जहाँगीर के दरबार में आ रहे थे। इन चित्रकारों में गोवर्धन, मनोहर, दौलत तथा उस्ताद मंसूर थे। उस्ताद मंसूर भारतीय मुसलमान था। जहाँगीर के दरबार में इन चित्रकारों के अतिरिक्त अकबर की चित्रशाला के चित्रकार भी उसी प्रकार कार्य करते थे। मनोहर को पशु-चित्रण में, उस्ताद मंसूर और मिस्किन को पक्षी चित्रण में उच्च स्थान प्राप्त था।
बादशाह प्रायः चित्रकार को यात्राओं और उत्सवों आदि के अवसर पर अपने साथ रखता था। जब वह शिकार आदि के लिए जाता था तो चित्रकार भी उसके साथ जाते थे। बादशाह इन अवसरों की घटनाओं पर चित्रकारों से चित्र बनवाया करता था।
एक चित्र उदाहरण जिसमें शेर के शिकार का दृश्य है, से इस बात की पुष्टि होती है (इस चित्र का विवरण आगे दिया जाएगा), इस शिकार-चित्र की आकृतियों की कल्पना नहीं की जा सकती और चित्रकार ने इस घटना को देखा होगा। अकबर को लड़ाइयों के दृश्यों के चित्र बनवाने में अधिक रुचि थी परन्तु जहाँगीर को शान्ति के प्रसंगों से सम्बन्धित चित्र बनवाने में अधिक रुचि थी।
जहाँगीर ने विदेशी चित्रकारों को बुलाकर अपने युवाकाल में ही फारसी कला को अधिक प्रोत्साहित किया था। इस प्रकार के चित्र उदाहरणों में एक ‘कलीलवयदिमनाह’ की प्रति है जो 1610 ई० में बनकर तैयार हुई थी और अब ब्रिटिश म्युजियम में सुरक्षित है। इन चित्रों से ऐसा प्रतीत होता है कि इस समय तक फारसी कलाकार मुगल शैली को पूर्णतया ग्रहण और आत्मसात नहीं कर सके थे।”
जहाँगीर कालीन चित्रों की विशेषतायें
1. इस समय की चित्रकारी ईरानी प्रभाव से मुक्त हो चुकी थी। वास्तु व पहाड़ियों, वृक्षों के तने व पत्तों तथा बादलों के अंकन में ईरानी प्रभाव पूरी तरह समाप्त हो चुका था।
2. चित्रों में अब यथार्थता अधिक आ गयी थी। पक्षियों का इतना स्वाभाविक चित्रण हुआ कि वह आधुनिक तकनीक से खींची रंगीन फोटो सद्रश लगते है।
3. रेखायें अधिक महीन व कोमल है।
4. आकारों को वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य के सिद्धान्तानुसार बनाने का प्रयास किया है।
5. जहाँगीर के काल में चेहरे प्रायः एक चश्म बनने लगे थे जबकि अकबर काल में डेढ़ चश्मी चेहरे भी बने हैं।
6. वस्त्रों में अब जामा कुछ लम्बा, पायजामा भी नीचे को जाता हुआ व खिड़कीदार पगड़ी की वेषभूषा वनने लगी थी। स्त्रियों को राजस्थानी एवं सूथन व ओढ़नी वाली वेषभूषा में चित्रित किया गया है।
7. रंगों में सूफियानापन व परस्पर मिश्रित रंग तथा एक ही रंग की तानों का प्रयोग होने लगा था। 8. इस काल में हाशियों की सुन्दरता बढ़ गयी थी। हाशियों में जन-जीवन के दृश्य, व्यक्ति विशेष का अंकन, पशु-पक्षी व पेड़-पौधों को अलंकरण रूप में बनाया गया है।
9. चित्रों के विषय भिक्षुक, साधारण जन-जीवन, सन्त-सूफी, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, शिकार, दरबार की तड़क-भड़क वाले चित्र, शबीह एवं उत्सव आदि रहे हैं।
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- रथीन मित्रा (1926)रथीन मित्रा का जन्म हावड़ा में 26 जुलाई को 1926 में हुआ था। उनकी कला-शिक्षा कलकत्ता कला-विद्यालय में हुई । … Read more
- मध्यकालीन भारत में चित्रकला | Painting in Medieval Indiaदिल्ली में सल्तनत काल की अवधि के दौरान शाही महलों, शयनकक्षों और मसजिदों से भित्ति चित्रों के साक्ष्य मिले हैं। … Read more
- रमेश बाबू कन्नेकांति की पेंटिंग | Eternal Love By Ramesh Babu Kannekantiशिव के चार हाथ शिव की कई शक्तियों को दर्शाते हैं। पिछले दाहिने हाथ में ढोल है, जो ब्रह्मांड के … Read more
- प्रगतिशील कलाकार दल | Progressive Artist Groupकलकत्ता की तुलना में बम्बई नया शहर है किन्तु उसका विकास बहुत अधिक और शीघ्रता से हुआ है। 1911 में … Read more
- आधुनिक काल में चित्रकला18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में, चित्रों में अर्द्ध-पश्चिमी स्थानीय शैली शामिल हुई, जिसे ब्रिटिश निवासियों … Read more
- रमेश बाबू कनेकांति | Painting – A stroke of luck By Ramesh Babu Kannekantiगणेश के हाथी के सिर ने उन्हें पहचानने में आसान बना दिया है। भले ही वह कई विशेषताओं से सम्मानित … Read more
- सतीश गुजराल | Satish Gujral Biographyसतीश गुजराल का जन्म पंजाब में झेलम नामक स्थान पर 1925 ई० में हुआ था। केवल दस वर्ष की आयु … Read more
- पटना चित्रकला | पटना या कम्पनी शैली | Patna School of Paintingऔरंगजेब द्वारा राजदरबार से कला के विस्थापन तथा मुगलों के पतन के बाद विभिन्न कलाकारों ने क्षेत्रीय नवाबों के यहाँ आश्रय … Read more
- रमेश बाबू कन्नेकांति | Painting – Tranquility & harmony By Ramesh Babu Kannekantiयह कला पहाड़ी कलाकृतियों की 18वीं शताब्दी की शैली से प्रेरित है। इस आनंदमय दृश्य में, पार्वती पति भगवान शिव … Read more
- आगोश्तों शोफ्त | Agoston Schofftशोफ्त (1809-1880) हंगेरियन चित्रकार थे। उनके विषय में भारत में बहुत कम जानकारी है। शोफ्त के पितामह जर्मनी में पैदा हुए … Read more
- कालीघाट चित्रकारी | Kalighat Paintingकालीघाट चित्रकला का नाम इसके मूल स्थान कोलकाता में कालीघाट के नाम पर पड़ा है। कालीघाट कोलकाता में काली मंदिर के … Read more
- प्राचीन काल में चित्रकला में प्रयुक्त सामग्री | Material Used in Ancient Artविभिन्न प्रकार के चित्रों में विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया जाता था। साहित्यिक स्रोतों में चित्रशालाओं (आर्ट गैलरी) और शिल्पशास्त्र … Read more
- डेनियल चित्रकार | टामस डेनियल तथा विलियम डेनियल | Thomas Daniels and William Danielsटामस तथा विलियम डेनियल भारत में 1785 से 1794 के मध्य रहे थे। उन्होंने कलकत्ता के शहरी दृश्य, ग्रामीण शिक्षक, … Read more
- मिथिला चित्रकला | मधुबनी कला | Mithila Paintingमिथिला चित्रकला, जिसे मधुबनी लोक कला के रूप में भी जाना जाता है. बिहार के मिथिला क्षेत्र की पारंपरिक कला है। यह गाँव … Read more
- भारतीय चित्रकला | Indian Artपरिचय टेराकोटा पर या इमारतों, घरों, बाजारों और संग्रहालयों की दीवारों पर आपको कई पेंटिंग, बॉल हैंगिंग या चित्रकारी दिख … Read more
- भारत में विदेशी चित्रकार | Foreign Painters in Indiaआधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास के आरम्भ में उन विदेशी चित्रकारों का महत्वपूर्ण योग रहा है जिन्होंने यूरोपीय प्रधानतः ब्रिटिश, … Read more
- सजावटी चित्रकला | Decorative Artsभारतीयों की कलात्मक अभिव्यक्ति केवल कैनवास या कागज पर चित्रकारी करने तक ही सीमित नहीं है। घरों की दीवारों पर … Read more
- बी. प्रभानागपुर में जन्मी बी० प्रभा (1933 ) को बचपन से ही चित्र- रचना का शौक था। सोलह वर्ष की आयु में … Read more
- दत्तात्रेय दामोदर देवलालीकर | Dattatreya Damodar Devlalikar Biographyअपने आरम्भिक जीवन में “दत्तू भैया” के नाम से लोकप्रिय श्री देवलालीकर का जन्म 1894 ई० में हुआ था। वे … Read more
- शैलोज मुखर्जीशैलोज मुखर्जी का जन्म 2 नवम्बर 1907 दन को कलकत्ता में हुआ था। उनकी कला चेतना बचपन से ही मुखर … Read more
- नारायण श्रीधर बेन्द्रे | Narayan Shridhar Bendreबेन्द्रे का जन्म 21 अगस्त 1910 को एक महाराष्ट्रीय मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पूर्वज पूना में रहते … Read more
- रवि वर्मा | Ravi Verma Biographyरवि वर्मा का जन्म केरल के किलिमन्नूर ग्राम में अप्रैल सन् 1848 ई० में हुआ था। यह कोट्टायम से 24 … Read more
- के०सी० एस० पणिक्कर | K.C.S.Panikkarतमिलनाडु प्रदेश की कला काफी पिछड़ी हुई है। मन्दिरों से उसका अभिन्न सम्बन्ध होते हुए भी आधुनिक जीवन पर उसकी … Read more
- भूपेन खक्खर | Bhupen Khakharभूपेन खक्खर का जन्म 10 मार्च 1934 को बम्बई में हुआ था। उनकी माँ के परिवार में कपडे रंगने का … Read more
- बम्बई आर्ट सोसाइटी | Bombay Art Societyभारत में पश्चिमी कला के प्रोत्साहन के लिए अंग्रेजों ने बम्बई में सन् 1888 ई० में एक आर्ट सोसाइटी की … Read more
- परमजीत सिंह | Paramjit Singhपरमजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1935 अमृतसर में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा के उपरान्त वे दिल्ली पॉलीटेक्नीक के कला … Read more
- अनुपम सूद | Anupam Soodअनुपम सूद का जन्म होशियारपुर में 1944 में हुआ था। उन्होंने कालेज आफ आर्ट दिल्ली से 1967 में नेशनल डिप्लोमा … Read more
- देवकी नन्दन शर्मा | Devki Nandan Sharmaप्राचीन जयपुर रियासत के राज-कवि के पुत्र श्री देवकी नन्दन शर्मा का जन्म 17 अप्रैल 1917 को अलवर में हुआ … Read more
- ए० रामचन्द्रन | A. Ramachandranरामचन्द्रन का जन्म केरल में हुआ था। वे आकाशवाणी पर गायन के कार्यक्रम में भाग लेते थे। कुछ समय पश्चात् … Read more