विवानसुन्दरम् का जन्म शिमला में हुआ था। अमृता शेरगिल इनकी मौसी थीं जो इनके जन्म से दो वर्ष पूर्व ही मर चुकी थीं। विवान का बचपन शिमला में ही बीता।
अपनी स्कूली शिक्षा के समय विवान ने चित्रकला में बहुत कम रूचि ली यद्यपि उस समय सुधीर खास्तगीर दून स्कूल में ही उनके कला- शिक्षक थे।
विवान की उन दिनों खेलकूद तथा गणित आदि में अधिक दिलचस्पी थी। 1960 में विवान ने पेण्टिंग में रूचि लेना आरम्भ किया तीन-चार महीने में ही उन्होंने सेजान, वान गॉग आदि के अनेक चित्रों की अनुकृतियाँ कर डाली।
एक वर्ष पश्चात् 1961 में उन्होंने कला की शिक्षा के लिये बडोदा महाविद्यालय में प्रवेश लिया। उस समय वहाँ के०जी० सुब्रमण्यन तथा नारायण श्रीधर बेन्द्रे अध्यापक थे।
1965 तक विवान ने वहाँ कला की शिक्षा ली। इस समय उन्होंने कई प्रदेशों की यात्रा की। शिमला के शीतल प्रदेश के रहने वाले विवान राजस्थान के जैसलमेर आदि के उष्ण वातावरण तथा चटख रंगों से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इसके अनेक चित्र बनाये।
वे बनारस भी गये और बनारस से प्रभावित होकर पॉप कला शैली में वहाँ के दृश्यों तथा कोलाजों की रचना की। 1966 में उनकी प्रदर्शनियों दिल्ली तथा बम्बई में हुई।
1966 में ही एक स्कालरशिप मिल जाने से विवान लन्दन चले गये और वहाँ स्कूल में कला के साथ-साथ हिस्ट्री आफ सिनेमा का विशेष अध्ययन लिया।
स्लेड वहाँ उनकी भेंट किताज से हुई जो बुद्धिवादी तथा शिल्पगत श्रेष्ठतावादी विचारों के प्रतिपादक थे साथ ही ऐतिहासिक बोध के हामी थे उनसे विवान को अपनी कला में अराजकता और विकृति का एक आधार मिल गया।
पॉप कला की ओर विवान का रुझान तो था ही, यहाँ उन्होंने उसे प्रखर सामाजिक टिप्पणियों के सशक्त माध्यम के रूप में अनुभव किया।
विवान साम्यवादी विचारों के थे अतः लन्दन में उन्होंने ‘कम्यून’ में रहकर सार्वजनिक कामों में हिस्सा लेना आरम्भ कर दिया और वहाँ पोस्टर वर्कशाप, फिल्म-शो आदि के संगठनात्मक कामों में गहरी दिलचस्पी दिखायी।
नवम्बर 1970 में विवान भारत लौटे और 1971 के मध्य से उन्होंने फिर पेण्टिंग बनाना आरम्भ कर दिया। बांग्लादेश की फोटो प्रदर्शनी को सड़कों पर ले जाने से लेकर सक्रिय राजनीतिक विरोध के छोटे-बड़े अनेक कार्य किये।
विवान ने 1972 में चिली के विख्यात कवि पाब्लो नेरूदा की एक कविता का स्याही से रेखांकन किया।
उन्होंने एक अन्य महत्वपूर्ण प्रदर्शनी भी की थी “मध्य वर्ग का चतुर इन्द्रजाल’ जिसमें कालीनों, गद्देदार कुर्सियों, लेसदार मेजपोशों तथा वाथटबों का आधार बनाकर पॉप कला के मुहाविरे में ही तीखी सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणियों देने का प्रयत्न किया गया था।
इनमें सिनेमा की शैली का भी खूब प्रयोग किया गया था। विवान ने अमृता की कला को समझने का भी प्रयत्न किया था। 1972 में अमृता शेरगिल की एक पुनरावलोकन प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।
मार्ग पत्रिका ने अमृता शेरगिल विशेषांक प्रकाशित किया। इस प्रकार पहली बार आधुनिक भारतीय कलाकार की समस्या के संदर्भ में अमृता शेरगिल की प्रासंगिकता पर एक ही स्थान पर गम्भीर बहस हुई ।
विवान की प्रदर्शनियों में से 1981 में आयोजित ‘प्लेस फार पीपुल’ प्रदर्शनी सर्वाधिक चर्चा का विषय रही है। छह चित्रकारों की यह प्रदर्शनी दिल्ली और बम्बई में आयोजित की गयी थी।
विवान साम्यवादी राजनीतिक विचारों के समर्थक हैं। वे हवाना में वर्ल्ड यूथ कांग्रेस में कम्यूनिस्ट विंग के सदस्य बनकर 1978 में मेक्सिको गये थे।
उनकी प्रतिबद्धता पर्याप्त गम्भीर है और अपनी कला में राजनीतिक आग्रहों को स्पष्ट करते हुए वे समाज की त्रासदी और चीत्कार का चित्रण करते हैं
विवान सुन्दरम् उन कलाकारों में से हैं जो अपने चित्र के ढाँचे को पहले से सोचकर गढ़ते हैं। उनके चित्र बिम्ब भी जैसे पहले से निश्चित होते हैं।
उनकी कला में अमूर्त रूप बहुत कम हैं। ये अपने चित्रों में शक्ति के दानवी रूपों तथा भयंकर दुष्परिणामों का चित्रण मार्मिकता से करते हैं।
उनके इस प्रकार के कुछ चित्र है षडयन्त्र, संहार, तबाही तथा शोषण आदि। उनकी कृतियों में आधुनिक पश्चिमी कला रूपों का समायोजन है। विवान कसौली में प्रतिवर्ष आर्टिस्ट कैम्प भी लगाते हैं जिसमें विदेशी कलाकार भी भाग लेते हैं विवान दिल्ली के आर्टिस्ट्स प्रोटेस्ट मूवमेण्ट के सचिव भी रहे हैं।
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