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गुहा चित्रण
(जोगीमारा, अजन्ता, बाघ, बादामी, एलोरा, सित्तनवासल इत्यादि)
जोगीमारा गुफाएँ
- जोगीमारा गुफा मध्य प्रदेश के सरगुजा क्षेत्र की रामगढ़ पहाड़ियों में स्थित है।
- यह मन्दिर भुवनेश्वर शैली से बहुत कुछ मिलता जुलता है।
- इस गुफा की छत पर भारतीय भित्ति चित्रों के सबसे प्राचीन नमूने अंकित हैं।
- जोगीमारा गुफा 10 फीट लम्बी, 6 फीट चौड़ी व 6 फीटऊँची है।
- सन् 1914 में असित कुमार हाल्दार तथा क्षेमेन्द्र नाथ गुप्त जोगीमारा गुफा के चित्रों का अध्ययन किया और इनके संबंध में विवरण प्रस्तुत किये।
- यहाँ के भित्तिचित्रों की पृष्ठभूमि समतल व चिकनी न होकर खुरदरी है जिस पर सफेद रंग पोतकर चित्र बना दिये गये हैं।
- चित्रण के लिए लाल, काले और पीले रंग का ही प्रयोग किया गया है।
- इन चित्रों की आकृतियाँ साँची तथा भरहुत की तक्षण कला के अनुरूप है।
- यहाँ छत में लाल रेखाओं द्वारा पेनल विभाजित कर चित्रांकन सफेद पृष्ठभूमि पर किया गया है।
- श्री हाल्दार ने यहाँ कुल सात चित्रों के विषय में उल्लेख किया है।
- साधारण दृष्टि से देखने पर ये चित्र किसी अनाड़ी के हाथ की कृति प्रतीत होते हैं।
अजंता गुफा
- महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद शहर से उत्तर-पश्चिम की ओर लगभग 105 कि० मी० की दूरी पर औरंगाबाद-जलगाँव पथ-मार्ग पर अजन्ता गुहा मन्दिर समूह स्थित है।
- अजन्ता के ये कलामण्डप सतपुड़ा की पहाड़ियों के अर्द्ध चन्द्राकार घाटी में बघोरा नदी के किनारे स्थित है।
- इन गुफाओं से 11 कि० मी० दूर एक छोटे से गाँव ‘अजिण्ठा’ के नाम के आधार पर इन्हें अजन्ता गुफा समूह के नाम से जाना जाने लगा।
- अजन्ता गुफाओं का पता सर्वप्रथम 1819 ई० में आर्मी के कुछ अधिकारियों को लगा।
- सन् 1824 ई० में लेफ्टीनेंट जेम्स ई० एलेक्जेण्डर ने इन गुफाओं की यात्रा की और लन्दन की रायल एशियाटिक सोसाइटी को इनका विस्तृत विवरण भेजा।
- सन् 1839 ई० में जेम्स फर्ग्यूसन ने इन गुफाओं का विस्तृत निरीक्षण किया।
- सन् 1844 ई० में राबर्ट गिल अजन्ता के चित्रों की अनुकृति करने गये और 12 वर्ष के कठिन परिश्रम से इन चित्रों की अनुकृतियाँ तैयार कीं। जो लन्दन के क्रिस्टल पैलेस में प्रदर्शित की गईं। ये कलाकृतियाँ 1966 में क्रिस्टल पैलेस में आग लग जाने के कारण नष्ट हो गई।
- 1872 ई० में ब्रिटिश सरकार ने बम्बई स्कूल ऑफ आर्ट के जॉन ग्रिफिथ्स को अजन्ता की कलाकृतियों की अनुकृति तैयार करने हेतु अजन्ता भेजा। उन्होंने चार वर्ष इन चित्रों की अनुकृतियाँ तैल रंगों में तैयार कीं। इन चित्रों को विक्टोरिया तथा अल्बर्ट म्यूजियम लन्दन में रखा गया किन्तु 1885 में ये भी नष्ट हो गईं।
- ग्रीफिथ्स ने पुनः अनुकृतियाँ तैयार कर 1996 ई० में दो जिल्दों में उन्हें प्रकाशित किया।
- 1909-11 के मध्य लेडी हरिंघम, नन्दलाल बसु, असित कुमार हाल्दर, बेंकटप्पा व एस० एन० गुप्त ने इन चित्रों की प्रतिकृतियाँ तैयार की जो 1915 में लन्दन से प्रकाशित हुई।
- अजन्ता के चित्रों का निर्माण शुंग, कुषाण, गुप्त, वाकाटक और चालुक्य राजाओं के समय (200 ई० पू० से 700 ई०) में हुआ।
- अजन्ता की कला की खोज सर एलेक्जेण्डर द्वारा 1824 में की गई थी।
- अजन्ता के बिहारों (विशेषकर 1. 2. 16 तथा 17) की चित्रकला उन्नत अवस्था को दर्शाती है।
- विषय की दृष्टि से अजन्ता की चित्रकला को वाचस्पति गैरोला ने तीन प्रमुख भागों में बाँटा है जिसके नाम है अलंकारिक रूप भेदिक और वर्णनात्मक।
- आलंकारिक चित्रों में पशु-पक्षियों, पुष्प, लताओं, राक्षस गंधर्व और अप्सरा आदि को रखा गया है।
- रूप भैदिक चित्रों में लोकपाल, बुद्ध बोधिसत्व तथा राजा-रानी की आकृतियों को रखा गया है।
- वर्णनात्मक चित्रों में जातक कथा से सम्बन्धित चित्र है।
- अजन्ता के चित्रों में नारी को बहुत ऊँचा स्थान दिया गया है, उसका चित्रण मानवीय रूप में होकर सैद्धान्तिक रूप में हुआ है।
- अजन्ता के चित्रों में रंगों का संयोजन अति प्राकृतिक ढंग से किया गया है। चित्रों में गेरुवा, रामरज, हरे, काजल, नीले और चूने रंग का विशेष प्रयोग हुआ है।
- अजन्ता में कुल तीस गुफायें हैं जिनमें चार चैत्य पूजा गृह है और 25 विहार। गुफा संख्या 28 भी चैत्य की भाँति आरम्भ की गई थी पर उसे पूर्ण नहीं किया गया। 9. 10. 19 व 26 नं० की गुफाएँ पूर्ण रूप से निर्मित है।
- अजन्ता की इन गुफाओं में से सन् 1879 में 16 गुफाओं में चित्र बचे थे पर सन् 1910 में मात्र 6 गुफाओं में ही शेष रह गये।
- इन गुफाओं का निर्माण मौर्यकालीन काष्ठ भवन निर्माण के नमूने पर किया गया है।
- ये गुफायें 200 ई० पू० से लेकर सातवीं सदी से पूर्व तक के लम्बे समय में निर्मित व चित्रित हुई हैं।
- शासन-परम्परा के अनुसार इनका निर्माण शुंगवंशीय राजाओं के शासनकाल से प्रारम्भ होता है और काण्य, सातवाहन, पाकाटक तथा नल राजवंशों के शासनकाल को पार करता हुआ चालुक्य वंश के अभ्युदय के साथ समाप्त हो जाता है।
- अजन्ता के निर्माण में सबसे अधिक योगदान वाकाटक राजवंश का है।
- गुफा संख्या नौ दस का निर्माण काल-200 ई० पू. से 300 ई० के मध्य है।
- गुफा संख्या 16 व 17 का निर्माण काल-5वीं शती ई० चतुर्थ चरण में हुआ।
- गुफा संख्या 1 व 2 का निर्माण काल 5वीं शती उत्तरार्द्ध से छठी शती उत्तरार्द्ध तक।
- अजन्ता की इन्हीं छः गुफाओं में ही चित्र शेष रह गए हैं।
अजन्ता गुफा की चित्रशैली
अजन्ता की चित्रकला की अपनी शैली है जो विश्व की चित्रकला की अन्य शैलियों से सर्वथा भिन्न है। शैली अत्यन्त सरल तथा चित्ताकर्षक है। चित्रों की रूपरेखा भावमय एवं सप्राण है मित्तियों में चित्रों का विभाजन प्रायः चित्रित व्यक्ति के केन्द्र की ओर के रूख से होता समान आलेख्य-प्रदेश में अनेक घटनाओं का चित्रण मिलता है।
आगे-पीछे की वस्तुओं का अपथार्थ रूप से ऊपर-नीचे प्रदर्शन यहाँ पर प्राप्त होता है। एकाकी तथा सामूहिक चित्रकला के अंकन के उदाहरण यहाँ मिलते हैं। अजन्ता के चित्रों में रेखांकन का प्राधान्य है।
अजन्ता की मानवाकृतियों चित्रकला के शिल्प-विधान की दृष्टि से अनोखी हैं। स्त्री-पुरुषों की गाव-प्रवण भंगिमाएँ तथा अंगप्रत्यंगों के लोच विशेष रूप से दर्शनीय हैं। आकृतियाँ-जानी-पहचानी सी लगती हैं।
अंगुलियों कमल की पंखुड़ियों की भाँति नमित होती है। नेत्र अर्द्ध-निमीलित मुद्रा में हैं। गन्धवाँ, विद्याधरों के शारीरिक सौंदर्य, पशुओं के शारीरिक गठन, पक्षियों को स्वाभाविकता फूल-पत्तियों की सहज सुन्दरता को चित्रकार ने राजीव रूप में प्रस्तुत किया है।
इनका सजीव तथा वास्तविक चित्रण इस बात का सूचक है कि कलाकार ने इनकी रचना में शरीर के अंगों को स्पष्ट करने तथा विभिन्न भावों की रचना में कलात्मक दृष्टि से कोई कमी नहीं छोड़ी है। अंग-विन्यास तथा अलंकरण के उत्कृष्ट उदाहरण यहाँ प्राप्त होते हैं।
अजन्ता चित्रों की विषय-वस्तु
अजन्ता की गुफाओं की चित्रकला की विषय-वस्तु मुख्यत बौद्ध धर्म से सम्बन्धित थी। यहाँ के चित्रों में गौतम बुद्ध के जीवन एवं उनसे सम्बन्धित घटनाओं का चित्रांकन है। इन चित्रों में चित्रकार ने कतिपय बोधिसत्व के जीवन का भी चित्रण किया है।
गौतम बुद्ध जीवन और जातक कथाओं को यहाँ पर अत्यन्त सुन्दर भावों से चित्रित किया गया है। बौद्धधर्म की उप-सम्पदा लेकर संघ में प्रविष्ट नवागन्तुक भिक्षु-भिक्षुओं को उपाध्याय तथा आचार्य द्वारा दी गयी उपदेशात्मक शिक्षा के पूरक के रूप में ये चित्र होंगे।
मूलतः गुफा संख्या नौ व दस का निर्माण काल- 200 ई० पू० से बौद्ध चित्रांकन होने पर भी इन दृश्यांकनों में तत्कालीन समाज का बहुरंगी जीवन प्रतिबिम्बित हो उठा है। इन चित्रों में नगर, गाँव राजदरबार तपोवन आदि के आवासियों निवास, उसके कार्य-कलाप, उनकी वेशभूषा, आमोद-प्रमोद सभी अंकित है।
देवी देवता, गन्धर्व, किन्नर तथा राजा-रानी, भूत-प्रेत तथा अप्सराएँ आदि को चित्रकार ने इन चित्र कलाओं में विराजमान दिखाया है। गये है।
मनुष्यों के विभिन्न वर्गों को चित्रित करने में चित्रकार ने विशेष सफलता पायी है। अजन्ता के चित्रों में भिक्षु, ब्राह्मण, राजा तथा राज-परिवार परिचायक परिचारिकाएँ, शिकारी, जंगल, तपस्वी, वार वनिताएँ, अप्सराएँ आदि के माध्यम से प्रेम, लज्जा, हर्ष, उल्लास, शोक, क्रोध, उत्साह, घृणा, भय, आश्चर्य, चिन्ता, विरक्ति, विरह, शान्ति आदि भावों की सराहनीय अभिव्यक्ति किया है।
अजन्ता की गुफाओं में चित्रित प्रत्येक चित्र का अपना निजी व्यक्तित्व और महत्व है। शिवि जातक का चित्र, सुन्दरी, गोष्ठी नागराज की सभा, शंखपान जातक, महाजनक जातक, आश्रम के दृश्य, गजराज, जहाजों, समुद्रों, नदी, सरोवरों, वानरों, छदन्त जातक, ईरानी दैत्य, साँपों की लड़ाई का सुन्दर अलंकरण किया गया है।
अजन्ता चित्रों की रंग योजना
अजन्ता की चित्रकला में कतिपय चुने हुए रंगों का प्रयोग किया गया है। जिनमें गैरिफ, लाल, पीला, नीला, सफेद और हरा रंगों का प्रयोग है। यहाँ के प्रारम्भिक चित्रों में चटख एवं चमकदार रंगों का प्रयोग किया गया।
चित्रकार इन चित्रांकनों को बनाने के पूर्व यह देख लेते थे कि इन रंगों पर चूने का प्रभाव पड़ता है अथवा नहीं प्रयुक्त रंगों में सफेद रंग प्रायः अपारदर्शी है। सफेद रंग चूने अथवा खड़िया से बना होता था। लाल तथा भूरे रंग लोहे के खनिज का रंग है।
हरा रंग स्थानीय पत्थरों की सहायता से बनाया जाता था, जो ताँबे का खनिज रंग कहलाता है। इसे टेरावर्ट भी कहा जाता है। नीला रंग एक बहुमूल्य खनिज से प्राप्त होता था और फारस तथा बदख्शा से भी मँगवाया जाता था। शेष रंग भारत में ही बना करते थे।
नीले रंग का प्राचीन चित्रों जोगीमारा तथा पाँचवीं शताब्दी के सिगिरिया गुफाओं के चित्रों में प्रयोग नहीं हुआ है। छठीं शताब्दी के बने हुए अजन्ता की दूसरी गुफा के चित्रों में इस रंग का प्रयोग हुआ था।
अजन्ता भित्तिचित्रण विधि
बौद्ध चित्र शैली की अजन्ता गुफाएँ तथा अन्य गुफाओं के भित्ति चित्रण की परम्परा में टेम्परा, फेस्को तथा एन्कास्तिक विधियों का सम्मिश्रण है। अजन्ता में लेप लगाने के पूर्व
गुफाओं की भीतरी दीवालों को तराश कर खुरदुरा छोड़ दिया जाता था। इसके बाद मिट्टी, लोहमय मिट्टी, भूसी महीन बालू, चूना, गोबर, उड़द की दाल तथा गोंद गिला कर तैयार किया गया पतला लेप करके गुफाओं की भीतरी दीवालों एवं छतों को समतल बनाया जाता था।
इसके बाद मिट्टी तथा मूंसी को मिलाकर तैयार किये गये लप की दूसरी परत लगाई जाती थी। इस लेप को ही संभवतः विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वज्रलेप कहा गया है। दीवाल के पलस्तर के गीला रहने पर ही उस पर चूने का पतला घोल पोत दिया जाता था।
ले तथा घोल के सूखने के बाद इस प्रकार चित्र बनाने के लिए भूमि तैयार हो जाने पर निर्माण किया जाता था। अजन् चित्र जब पूरी तरह बन जाता था और सूख जाता था तो लाइटरोड देने के लिए विशेषकर प्रकाश को उभारने के लिए टेम्पेरा (सफेद मिश्रित गाढ़े रंग) का इस्तेमाल किया जाता था। इटली के बूनो फ्रेस्कों के चित्रों में भी इसी प्रकार टेम्परा रंग लगाये जाते थे।
अजन्ता भित्ति चित्रों का वर्गीकरण
अजन्ता भित्तिमित्रों की निम्न श्रेणियाँ हैं
(1) प्रथम श्रेणी की भित्तिचित्र
इस श्रेणी में पशु-पक्षी, फल-फूल लताएँ, राक्षस, नाग, गरुण, यक्ष गन्धर्व, अप्सरा • इत्यादि आते हैं।
(2) द्वितीय श्रेणी के भित्ति चित्र
उनमें लोकपाल बुद्ध, बोधिसत्व, राजा-रानियों के चित्र आते हैं।
(3) तृतीय श्रेणी के भित्ति चित्र
जातक ग्रन्थों में वर्णित, भगवान बुद्ध से सम्बन्धित जीवन की प्रमुख घटनाओं के चित्र आते हैं।
बाघ गुफाएँ
- मध्य प्रदेश के धार जिले में इंदौर से उत्तर-पश्चिम में लगभग 140 कि० मी० की दूरी पर बाघिनि (बाघ) नदी के तट पर विन्य पर्वत के दक्षिणी ढलान पर ये गुहा (गुफा) मन्दिर स्थित हैं।
- इन गुफाओं का सर्वप्रथम विवरण लेफ्टिनेट डेंजरफ़ील्ड ने सन् 1818 ई० में बम्बई से प्रकाशित किया था।
- सन् 1910 ई० में असित कुमार हाल्दार ने बाँध के विषय में अपने अनुभव और विचार प्रकाशित किये तथा 1917 में इन गुफा चित्रों की प्रतिलिपियाँ तैयार की।
- बाघ की गुफायें अजन्ता से लगभग 240 किमी दूर है।
ये गुफायें गुप्त कला की श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
- इन गुफाओं के निर्माण-काल के सम्बन्ध में विद्वानों ने भिन्न-भिन्न मत दिये हैं। विन्सेन्ट स्मिथ ने इन्हें उत्त गुप्तकाल तथा अजन्ता की सबसे बाद में बनी गुहाओं के पूर्व का बताया है। इस तरह निर्माण काल छठी शताब्दी कहलायेगी।
- बाघ में गुफाओं की संख्या नौ है किन्तु सात गुफाओ के चित्र पूर्ण रूप से नष्ट हो चुके हैं।
- गुफा संख्या 4 व 5 में ही कुछ चित्र शेष हैं पर ये भी क्षत-विक्षत अवस्था में हैं।
- सबसे महत्वपूर्ण चौथी गुफा है इसे रंगमहल भी कहते हैं।
- गुफा संख्या एक ‘गृह’ के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें कोई शिलालेख मूर्ति व चित्र उपलब्ध नहीं है।
- गुफा संख्या तीन को ‘हाथी खाना’ भी कहा जाता है। इस गुहा मंदिर में परिष्कृत नक्काशी के दर्शन होते हैं। यहाँ पहले गुह मन्दिर का सम्पूर्ण भाग चित्रित था। अभी भी यहाँ कुछ आकृतियाँ स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं।
- गुफा संख्या दो को ‘पाण्डव गुफा’ के नाम से भी जाना जाता है।
- गुफा संख्या पाँच को स्थानीय लोग ‘पाठशाला’ कहते हैं।
- बाघ का रंग विधान साधारण है लेकिन रंगों का अन्तर-प्रदर्शन तथा छाया प्रकाश युक्त प्रयोग अपने आप में बेजोड़ है।
- बाघ के चित्र अपने अनुपम संयोजन विधान के कारण भी श्रेष्ठ माने जाते हैं।
- बाघ का नारी चित्रण अजन्ता की तुलना में सहज एवं साधारण है।
- बाघ के चित्रों की रचना शैली अजन्ता से बहुत कुछ मिलती-जुलती है।
- बाघ के चित्र किसी महान ऐतिहासिक घटना से जुड़े हैं। जिसमें जीवन के विभित्र पक्षों का सुन्दर चित्रण हुआ है।
बादामी गुफाए
- बादामी गुफा के चित्र ब्राह्मण धर्म सम्बन्धी उपलब्ध प्राचीनतम मिति चित्र हैं।
- इन गुफा चित्रों की खोज का श्रेय डॉ० स्टेला क्रेमरिश को है।
- ये गुफायें महाराष्ट्र में आइहोल के निकट स्थित है।
- इनका रचनाकाल 578-79 ई0 के लगभग माना जाता है।
- इनका चित्रण विधान बाघ से मिलता-जुलता है।
- इन गुफाओ का निर्माण चालुक्य नरेश मंगलेश के शासन काल में हुआ था।
- बादामी में चार गुफाएँ हैं जो एक ही पहाड़ी में स्थित हैं।
- पहली गुफा शिव गुहा है, दूसरी एवं तीसरी वैष्णवी तथा चौथी गुहा जैन धर्म से सम्बन्धित है।
- इन गुफाओं में चित्रकला, मूर्तिकला तथा वास्तुकला की अनुपम त्रिवेणी दिखाई पड़ती है।
- चित्रकला की दृष्टि से तृतीय गुफा ही सबसे महत्वपूर्ण है।
सित्तनवासल गुफाएँ
तमिलनाडु राज्य में तंजौर के निकट कृष्णा नदी के किनारे सित्तनवासल नामक स्थान पर पल्लव नरेश महेन्द्र वर्मन तथा उनके उत्तराधिकारी पुत्र नरसिंहवर्मन ने कई गुफा मंदिरों का निर्माण कराया।
ये गुहा मन्दिर उत्कृष्ट भिति चित्रण के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ पल्लव कला की श्रेष्ठ कृतियाँ पायी जाती हैं। यहाँ शिव का अर्द्धनारीश्वर चित्र प्राप्त हुआ है जिसके आधार पर इन्हें शैव धर्म से सम्बन्धित गुफायें कहा जा सकता है।
परन्तु बाद के चित्रों का विषय जैन भी माना जाता है। इन गुफाओं का निर्माणकाल नवीं शताब्दी माना गया है। यहाँ अजन्ता की परिपक्व शैली दृष्टिगत होती हैं जो अपने उत्कृष्ट रूप में दक्ष कलाकारों द्वारा व्यक्त की गई है।
सिगिरिया गुफाएं
- सिगिरिया गुफाएँ श्रीलंका में पाँचवी शती में निर्मित हुई।
- सिगिरिया गुफाओं की खाज 1630 ई० में एक अंग्रेज सैनिक मेजर फोमर्स ने की।
- यहाँ कुल इक्कीस नारी आकृतियों का चित्रण प्राप्त हुआ है। इनमें सत्रह एक कक्ष में हैं और चार दूसरे कक्ष में।
- यहाँ बने चित्रों में शरीर का निचला भाग प्रायः बादलों से ढका है।
- इन चित्रों की शैली अजन्ता से मिलती-जुलती होने पर भी भिन्न है।
- गीली दीवार पर लाल अथवा काले रंग से रेखांकन करन के पश्चात् रंग भरे गये हैं।
- इन गुफाओं का निर्माण कश्यप प्रथम के शासनकाल हुआ था।
एलोरा गुफाएँ
- अजन्ता से लगभग 97 किमी दूर एलोस गाँव स्थित है जिसका प्राचीन नाम ऐलापुर था। इसे वेरूल के नाम भी जाना जाता है।
- यहाँ एक पहाड़ी को काटकर बनाये गये मंदिरों को एलोरा के गुहा मन्दिर या एलोरा की गुफाओं के नाम से जाना जाता है।
- यहाँ पर कुल चौतीस गुफाये हैं जिनमें शैव, बौद्ध तथा जैन तीनों धर्मों की गुफायें है।
- इनमें पाँच बौद्ध गुफायें सर्वाधिक प्राचीन हैं।
- प्रारम्भिक बारह गुफाएँ बौद्ध धर्मावलम्बियों की 550 ई० लेकर 750 ई० के मध्य निर्मित हैं।
- सत्रह गुहा मन्दिर ब्राह्मण धर्म से सम्बन्धित 650 ई० से 750 ई० के मध्य निर्मित हुए हैं।
- बाकी पाँच गुफायें जैन धर्म से सम्बन्धित हैं जिनका निर्माण काल 750 ई० से 10 वीं शताब्दी तक माना जाता है।
- इन गुफा मन्दिर में से मुख्यतः कैलाश मन्दिर, लंकेश्वर, इन्द्रसभा तथा गणेशलेण में ही खण्डित भितिचित्र मिलते हैं। सम्भवतः पहले ये सब मन्दिर भीतर-बाहर चित्रित थे किन्तु अब केवल कहीं-कहीं उन चित्रों के अंशमात्र बचे हैं।
- कैलास मन्दिर का मुख्य मण्डप 16 स्तम्भों पर आधारित है। इन स्तम्भों पर सुन्दर आलेखनों को चित्रित किया गया है।
- ऐलोरा के गुफा चित्रों की शैली अजन्ता की परम्परा में है किन्तु पतन के चिन्ह स्पष्ट रूप से मिलते हैं।
- अलंकरण में अजन्ता जैसा सौन्दर्य नहीं है तथा रेखाओं में गति का अभाव है। अंग-प्रत्यंग में जकड़ व सवा चश्म चेहरों की अधिकता है।
ऐलीफेंटा गुफाएँ
- एलीफेंटा की गुफायें समुद्र तट से छः मील दूर मुंबई समुद्र तट के अन्दर एक छोटे से टापू पर स्थित हैं।
- इनका वास्तविक नाम धारापुरी था।
- इस टापू पर दो बड़े-बड़े पर्वतों को तराश कर मन्दिरों का निर्माण किया गया है।
- एलीफेन्टा शैव धर्म से सम्बन्धित है।
- एलीफेन्टा के गुहा मन्दिर 130 फुट वर्गाकार में हैं।
- इन गुफाओं का निर्माण राष्ट्रकूटों के सामन्तों के समय में आठवीं शताब्दी में हुआ था।
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- मौर्य काल में मूर्तिकला और वास्तुकला का विकास ( 325 ई.पू. से 185 ई.पू.) | Development of sculpture and architecture in Maurya periodमौर्यकालीन कला को उच्च स्तर पर ले जाने का श्रेय चन्द्रगुप्त के पौत्र सम्राट अशोक को जाता है। अशोक के समय से भारत में मूर्तिकला का स्वतन्त्र कला के रूप में विकास होता दिखाई देता है।
- पाल शैली | पाल चित्रकला शैली क्या है?नेपाल की चित्रकला में पहले तो पश्चिम भारत की शैली का प्रभाव बना रहा और बाद में उसका स्थान इस नव-निर्मित पूर्वीय शैली ने ले लिया नवम् शताब्दी में जिस नयी शैली का आविर्भाव हुआ था उसके प्रायः सभी चित्रों का सम्बन्ध पाल वंशीय राजाओं से था। अतः इसको पाल शैली के नाम से अभिहित करना अधिक उपयुक्त समझा गया।”
- दक्षिणात्य शैली | दक्षिणी शैली | दक्खिनी चित्र शैली | दक्कन चित्रकला | Deccan Painting Styleदक्खिनी चित्र शैली: परिचय भारतीय चित्रकला के इतिहास की सुदीर्घ परम्परा एक लम्बे समय से दिखाई देती है। इसके प्रमाणिक … Read more
- संस्कृति तथा कलाकिसी भी देश की संस्कृति उसकी आध्यात्मिक, वैज्ञानिक तथा कलात्मक उपलब्धियों की प्रतीक होती है। यह संस्कृति उस सम्पूर्ण देश … Read more
- भारतीय कला संस्कृति एवं सभ्यताकला संस्कृति का यह महत्त्वपूर्ण अंग है जो मानव मन को प्रांजल सुंदर तथा व्यवस्थित बनाती है। भारतीय कलाओं में … Read more
- भारतीय चित्रकला की विशेषताएँभारतीय चित्रकला तथा अन्य कलाएँ अन्य देशों की कलाओं से भिन्न हैं। भारतीय कलाओं की कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ हैं … Read more
- कला अध्ययन के स्रोतकला अध्ययन के स्रोत से अभिप्राय उन साधनों से है जो प्राचीन कला इतिहास के जानने में सहायता देते हैं। … Read more
- आनन्द केण्टिश कुमारस्वामीपुनरुत्थान काल में भारतीय कला के प्रमुख प्रशंसक एवं लेखक डा० आनन्द कुमारस्वामी (1877-1947 ई०)- भारतीय कला के पुनरुद्धारक, विचारक, … Read more
- भारतीय चित्रकला में नई दिशाएँलगभग 1905 से 1920 तक बंगाल शैली बड़े जोरों से पनपी देश भर में इसका प्रचार हुआ और इस कला-आन्दोलन … Read more
- सोमालाल शाह | Somalal Shahआप भी गुजरात के एक प्रसिद्ध चित्रकार हैं आरम्भ में घर पर कला का अभ्यास करके आपने श्री रावल की … Read more
- बंगाल स्कूल | भारतीय पुनरुत्थान कालीन कला और उसके प्रमुख चित्रकार | Indian Renaissance Art and its Main Paintersबंगाल में पुनरुत्थान 19 वीं शती के अन्त में अंग्रजों ने भारतीय जनता को उसकी सास्कृतिक विरासत से विमुख करके … Read more
- तैयब मेहतातैयब मेहता का जन्म 1926 में गुजरात में कपाडवंज नामक गाँव में हुआ था। कला की उच्च शिक्षा उन्होंने 1947 … Read more
- कृष्ण रेड्डी ग्राफिक चित्रकार कृष्ण रेड्डी का जन्म (1925 ) दक्षिण भारत के आन्ध्र प्रदेश में हुआ था। बचपन में वे माँ … Read more
- लक्ष्मण पैलक्ष्मण पै का जन्म (1926 ) गोवा के एक सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। गोवा की हरित भूमि और … Read more
- आदिकाल की चित्रकला | Primitive Painting(गुहाओं, कंदराओं, शिलाश्रयों की चित्रकला) (३०,००० ई० पू० से ५० ई० तक) चित्रकला का उद्गम चित्रकला का इतिहास उतना ही … Read more
- राजस्थानी चित्र शैली की विशेषतायें | Rajasthani Painting Styleराजस्थान एक वृहद क्षेत्र है जो “अवोड ऑफ प्रिंसेज” माना जाता है इसके पश्चिम में बीकानेर, दक्षिण में बूँदी, कोटा तथा उदयपुर … Read more
- टीजीटी / पीजीटी कला से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न | Important questions related to TGT/PGT Artsसांझी कला किस पर की जाती है ? उत्तर: (B) भूमि पर ‘चाँद को देखकर भौंकता हुआ कुत्ता’ किस चित्रकार … Read more
- रेखा क्या है | रेखा की परिभाषारखा वो बिन्दुओं या दो सीमाओं के बीच की दूरी है, जो बहुत सूक्ष्म होती है और गति की दिशा निर्देश करती है लेकिन कलापक्ष के अन्तर्गत रेखा का प्रतीकात्मक महत्व है और यह रूप की अभिव्यक्ति व प्रवाह को अंकित करती है।
- बसोहली की चित्रकलाबसोहली की स्थिति बसोहली राज्य के अन्तर्गत ७४ ग्राम थे जो आज जसरौटा जिले की बसोहली तहसील के अन्तर्गत आते … Read more
- अभिव्यंजनावाद | भारतीय अभिव्यंजनावाद | Indian Expressionismयूरोप में बीसवीं शती का एक प्रमुख कला आन्दोलन “अभिव्यंजनावाद” के रूप में 1905-06 के लगभग उदय हुआ । इसका … Read more
- तंजौर शैलीतंजोर के चित्रकारों की शाखा के विषय में ऐसा अनुमान किया जाता है कि यहाँ चित्रकार राजस्थानी राज्यों से आये … Read more
- मैसूर शैलीदक्षिण के एक दूसरे हिन्दू राज्य मैसूर में एक मित्र प्रकार की कला शैली का विकास हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी के … Read more
- पटना शैलीउथल-पुथल के इस अनिश्चित वातावरण में दिल्ली से कुछ मुगल शैली के चित्रकारों के परिवार आश्रय की खोज में भटकते … Read more
- कलकत्ता ग्रुप1940 के लगभग से कलकत्ता में भी पश्चिम से प्रभावित नवीन प्रवृत्तियों का उद्भव हुआ । 1943 में प्रदोष दास … Read more
- Gopal Ghosh Biography | गोपाल घोष (1913-1980)आधुनिक भारतीय कलाकारों में रोमाण्टिक के रूप में प्रतिष्ठित कलाकार गोपाल घोष का जन्म 1913 में कलकत्ता में हुआ था। … Read more
- आधुनिक भारतीय चित्रकला की पृष्ठभूमि | Aadhunik Bharatiya Chitrakala Ki Prshthabhoomiआधुनिक भारतीय चित्रकला का इतिहास एक उलझनपूर्ण किन्तु विकासशील कला का इतिहास है। इसके आरम्भिक सूत्र इस देश के इतिहास तथा भौगोलिक परिस्थितियों … Read more
- काँच पर चित्रण | Glass Paintingअठारहवीं शती उत्तरार्द्ध में पूर्वी देशों की कला में अनेक पश्चिमी प्रभाव आये। यूरोपवासी समुद्री मार्गों से खूब व्यापार कर … Read more
- पट चित्रकला | पटुआ कला क्या हैलोककला के दो रूप है, एक प्रतिदिन के प्रयोग से सम्बन्धित और दूसरा उत्सवों से सम्बन्धित पहले में सरलता है; दूसरे में आलंकारिकता दिखाया तथा शास्त्रीय नियमों के अनुकरण की प्रवृति है। पटुआ कला प्रथम प्रकार की है।
- कम्पनी शैली | पटना शैली | Compony School Paintingsअठारहवी शती के मुगल शैली के चित्रकारों पर उपरोक्त ब्रिटिश चित्रकारों की कला का बहुत प्रभाव पड़ा। उनकी कला में … Read more
- बंगाल का आरम्भिक तैल चित्रण | Early Oil Painting in Bengalअठारहवीं शती में बंगाल में जो तैल चित्रण हुआ उसे “डच बंगाल शैली” कहा जाता है। इससे स्पष्ट है कि … Read more
- कला के क्षेत्र में किये जाने वाले सरकारी प्रयास | Government efforts made by the British in the field of artसन् 1857 की क्रान्ति के असफल हो जाने से अंग्रेजों की शक्ति बढ़ गयी और भारत के अधिकांश भागों पर … Read more
- अवनीन्द्रनाथ ठाकुरआधुनिक भारतीय चित्रकला आन्दोलन के प्रथम वैतालिक श्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म जोडासको नामक स्थान पर सन् 1871 में जन्माष्टमी … Read more
- ठाकुर परिवार | ठाकुर शैली1857 की असफल क्रान्ति के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत में हर प्रकार से अपने शासन को दृढ़ बनाने का प्रयत्न … Read more
- असित कुमार हाल्दार | Asit Kumar Haldarश्री असित कुमार हाल्दार में काव्य तथा चित्रकारी दोनों ललित कलाओं का सुन्दर संयोग मिलता है। श्री हाल्दार का जन्म … Read more
- क्षितीन्द्रनाथ मजुमदार के चित्र | Paintings of Kshitindranath Majumdar1. गंगा का जन्म (शिव)- (कागज, 12 x 18 इंच ) 2. मीराबाई की मृत्यु – ( कागज, 12 x … Read more
- क्षितीन्द्रनाथ मजुमदार | Kshitindranath Majumdarक्षितीन्द्रनाथ मजूमदार का जन्म 1891 ई० में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में निमतीता नामक स्थान पर हुआ था। उनके … Read more
- देवी प्रसाद राय चौधरी | Devi Prasad Raychaudhariदेवी प्रसाद रायचौधुरी का जन्म 1899 ई० में पू० बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में रंगपुर जिले के ताजहाट नामक ग्राम में … Read more
- अब्दुर्रहमान चुगताई (1897-1975) वंश परम्परा से ईरानी और जन्म से भारतीय श्री मुहम्मद अब्दुर्रहमान चुगताई अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के ही एक प्रतिभावान् शिष्य थे … Read more
- हेमन्त मिश्र (1917)असम के चित्रकार हेमन्त मिश्र एक मौन साधक हैं। वे कम बोलते हैं। वेश-भूषा से क्रान्तिकारी लगते है अपने रेखा-चित्रों … Read more
- विनोद बिहारी मुखर्जी | Vinod Bihari Mukherjee Biographyमुखर्जी महाशय (1904-1980) का जन्म बंगाल में बहेला नामक स्थान पर हुआ था। आपकी आरम्भिक शिक्षा स्थानीय पाठशाला में हुई … Read more
- के० वेंकटप्पा | K. Venkatappaआप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के आरम्भिक शिष्यों में से थे। आपके पूर्वज विजयनगर के दरबारी चित्रकार थे विजय नगर के पतन … Read more
- शारदाचरण उकील | Sharadacharan Ukilश्री उकील का जन्म बिक्रमपुर (अब बांगला देश) में हुआ था। आप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रमुख शिष्यों में से थे। … Read more
- मिश्रित यूरोपीय पद्धति के राजस्थानी चित्रकार | Rajasthani Painters of Mixed European Styleइस समय यूरोपीय कला से राजस्थान भी प्रभावित हुआ। 1851 में विलियम कारपेण्टर तथा 1855 में एफ०सी० लेविस ने राजस्थान को प्रभावित … Read more
- रामकिंकर वैज | Ramkinkar Vaijशान्तिनिकेतन में “किकर दा” के नाम से प्रसिद्ध रामकिंकर का जन्म बांकुड़ा के निकट जुग्गीपाड़ा में हुआ था। बाँकुडा में … Read more
- कनु देसाई | Kanu Desai(1907) गुजरात के विख्यात कलाकार कनु देसाई का जन्म – 1907 ई० में हुआ था। आपकी कला शिक्षा शान्ति निकेतन … Read more
- नीरद मजूमदार | Nirad Majumdaarनीरद (अथवा बंगला उच्चारण में नीरोद) को नीरद (1916-1982) चौधरी के नाम से भी लोग जानते हैं। उनकी कला में … Read more
- मनीषी दे | Manishi Deदे जन्मजात चित्रकार थे। एक कलात्मक परिवार में उनका जन्म हुआ था। मनीषी दे का पालन-पोषण रवीन्द्रनाथ ठाकुर की. देख-रेख … Read more
- सुधीर रंजन खास्तगीर | Sudhir Ranjan Khastgirसुधीर रंजन खास्तगीर का जन्म 24 सितम्बर 1907 को कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता श्री सत्यरंजन खास्तगीर छत्ताग्राम (आधुनिक … Read more
- ललित मोहन सेन | Lalit Mohan Senललित मोहन सेन का जन्म 1898 में पश्चिमी बंगाल के नादिया जिले के शान्तिपुर नगर में हुआ था ग्यारह वर्ष … Read more
- नन्दलाल बसु | Nandlal Basuश्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर की शिष्य मण्डली के प्रमुख साधक नन्दलाल बसु थे ये कलाकार और विचारक दोनों थे। उनके व्यक्तित्व … Read more
- रणबीर सिंह बिष्ट | Ranbir Singh Bishtरणबीर सिंह बिष्ट का जन्म लैंसडाउन (गढ़बाल, उ० प्र०) में 1928 ई० में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा गढ़वाल में ही … Read more
- रामगोपाल विजयवर्गीय | Ramgopal Vijayvargiyaपदमश्री रामगोपाल विजयवर्गीय जी का जन्म बालेर ( जिला सवाई माधोपुर) में सन् 1905 में हुआ था। आप महाराजा स्कूल … Read more
- रथीन मित्रा (1926)रथीन मित्रा का जन्म हावड़ा में 26 जुलाई को 1926 में हुआ था। उनकी कला-शिक्षा कलकत्ता कला-विद्यालय में हुई । … Read more
- मध्यकालीन भारत में चित्रकला | Painting in Medieval Indiaदिल्ली में सल्तनत काल की अवधि के दौरान शाही महलों, शयनकक्षों और मसजिदों से भित्ति चित्रों के साक्ष्य मिले हैं। … Read more
- रमेश बाबू कन्नेकांति की पेंटिंग | Eternal Love By Ramesh Babu Kannekantiशिव के चार हाथ शिव की कई शक्तियों को दर्शाते हैं। पिछले दाहिने हाथ में ढोल है, जो ब्रह्मांड के … Read more
- प्रगतिशील कलाकार दल | Progressive Artist Groupकलकत्ता की तुलना में बम्बई नया शहर है किन्तु उसका विकास बहुत अधिक और शीघ्रता से हुआ है। 1911 में … Read more
- आधुनिक काल में चित्रकला18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में, चित्रों में अर्द्ध-पश्चिमी स्थानीय शैली शामिल हुई, जिसे ब्रिटिश निवासियों … Read more
- रमेश बाबू कनेकांति | Painting – A stroke of luck By Ramesh Babu Kannekantiगणेश के हाथी के सिर ने उन्हें पहचानने में आसान बना दिया है। भले ही वह कई विशेषताओं से सम्मानित … Read more
- सतीश गुजराल | Satish Gujral Biographyसतीश गुजराल का जन्म पंजाब में झेलम नामक स्थान पर 1925 ई० में हुआ था। केवल दस वर्ष की आयु … Read more
- पटना चित्रकला | पटना या कम्पनी शैली | Patna School of Paintingऔरंगजेब द्वारा राजदरबार से कला के विस्थापन तथा मुगलों के पतन के बाद विभिन्न कलाकारों ने क्षेत्रीय नवाबों के यहाँ आश्रय … Read more
- रमेश बाबू कन्नेकांति | Painting – Tranquility & harmony By Ramesh Babu Kannekantiयह कला पहाड़ी कलाकृतियों की 18वीं शताब्दी की शैली से प्रेरित है। इस आनंदमय दृश्य में, पार्वती पति भगवान शिव … Read more
- आगोश्तों शोफ्त | Agoston Schofftशोफ्त (1809-1880) हंगेरियन चित्रकार थे। उनके विषय में भारत में बहुत कम जानकारी है। शोफ्त के पितामह जर्मनी में पैदा हुए … Read more
- कालीघाट चित्रकारी | Kalighat Paintingकालीघाट चित्रकला का नाम इसके मूल स्थान कोलकाता में कालीघाट के नाम पर पड़ा है। कालीघाट कोलकाता में काली मंदिर के … Read more
- प्राचीन काल में चित्रकला में प्रयुक्त सामग्री | Material Used in Ancient Artविभिन्न प्रकार के चित्रों में विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया जाता था। साहित्यिक स्रोतों में चित्रशालाओं (आर्ट गैलरी) और शिल्पशास्त्र … Read more
- डेनियल चित्रकार | टामस डेनियल तथा विलियम डेनियल | Thomas Daniels and William Danielsटामस तथा विलियम डेनियल भारत में 1785 से 1794 के मध्य रहे थे। उन्होंने कलकत्ता के शहरी दृश्य, ग्रामीण शिक्षक, … Read more
- मिथिला चित्रकला | मधुबनी कला | Mithila Paintingमिथिला चित्रकला, जिसे मधुबनी लोक कला के रूप में भी जाना जाता है. बिहार के मिथिला क्षेत्र की पारंपरिक कला है। यह गाँव … Read more
- भारतीय चित्रकला | Indian Artपरिचय टेराकोटा पर या इमारतों, घरों, बाजारों और संग्रहालयों की दीवारों पर आपको कई पेंटिंग, बॉल हैंगिंग या चित्रकारी दिख … Read more
- भारत में विदेशी चित्रकार | Foreign Painters in Indiaआधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास के आरम्भ में उन विदेशी चित्रकारों का महत्वपूर्ण योग रहा है जिन्होंने यूरोपीय प्रधानतः ब्रिटिश, … Read more
- सजावटी चित्रकला | Decorative Artsभारतीयों की कलात्मक अभिव्यक्ति केवल कैनवास या कागज पर चित्रकारी करने तक ही सीमित नहीं है। घरों की दीवारों पर … Read more
- बी. प्रभानागपुर में जन्मी बी० प्रभा (1933 ) को बचपन से ही चित्र- रचना का शौक था। सोलह वर्ष की आयु में … Read more
- दत्तात्रेय दामोदर देवलालीकर | Dattatreya Damodar Devlalikar Biographyअपने आरम्भिक जीवन में “दत्तू भैया” के नाम से लोकप्रिय श्री देवलालीकर का जन्म 1894 ई० में हुआ था। वे … Read more
- शैलोज मुखर्जीशैलोज मुखर्जी का जन्म 2 नवम्बर 1907 दन को कलकत्ता में हुआ था। उनकी कला चेतना बचपन से ही मुखर … Read more
- नारायण श्रीधर बेन्द्रे | Narayan Shridhar Bendreबेन्द्रे का जन्म 21 अगस्त 1910 को एक महाराष्ट्रीय मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पूर्वज पूना में रहते … Read more
- रवि वर्मा | Ravi Verma Biographyरवि वर्मा का जन्म केरल के किलिमन्नूर ग्राम में अप्रैल सन् 1848 ई० में हुआ था। यह कोट्टायम से 24 … Read more
- के०सी० एस० पणिक्कर | K.C.S.Panikkarतमिलनाडु प्रदेश की कला काफी पिछड़ी हुई है। मन्दिरों से उसका अभिन्न सम्बन्ध होते हुए भी आधुनिक जीवन पर उसकी … Read more
- भूपेन खक्खर | Bhupen Khakharभूपेन खक्खर का जन्म 10 मार्च 1934 को बम्बई में हुआ था। उनकी माँ के परिवार में कपडे रंगने का … Read more
- बम्बई आर्ट सोसाइटी | Bombay Art Societyभारत में पश्चिमी कला के प्रोत्साहन के लिए अंग्रेजों ने बम्बई में सन् 1888 ई० में एक आर्ट सोसाइटी की … Read more
- परमजीत सिंह | Paramjit Singhपरमजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1935 अमृतसर में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा के उपरान्त वे दिल्ली पॉलीटेक्नीक के कला … Read more
- अनुपम सूद | Anupam Soodअनुपम सूद का जन्म होशियारपुर में 1944 में हुआ था। उन्होंने कालेज आफ आर्ट दिल्ली से 1967 में नेशनल डिप्लोमा … Read more
- देवकी नन्दन शर्मा | Devki Nandan Sharmaप्राचीन जयपुर रियासत के राज-कवि के पुत्र श्री देवकी नन्दन शर्मा का जन्म 17 अप्रैल 1917 को अलवर में हुआ … Read more
- ए० रामचन्द्रन | A. Ramachandranरामचन्द्रन का जन्म केरल में हुआ था। वे आकाशवाणी पर गायन के कार्यक्रम में भाग लेते थे। कुछ समय पश्चात् … Read more