भारद्वाज का जन्म लाहौर में 20 अप्रैल 1938 को हुआ था। 1947 में भारत विभाजन के कारण उन्हें लाहौर छोड़ना पड़ा। कला में अभिरूचि होने के कारण उन्होंने 1955 में पंजाब स्कूल आफ आर्ट्स शिमला (अब चण्डीगढ़) में प्रवेश लिया और पांच वर्ष के उपरान्त सन् 1960 में ड्राइंग एण्ड पेण्टिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया।
इसके पश्चात् उन्होंने एक कलाकार बनने का लक्ष्य निर्धारित किया और कला के रहस्यों का गम्भीर अध्ययन किया। उन्होंने श्रीनगर (काश्मीर), अमृतसर, अम्बाला, नई दिल्ली, बम्बई, लन्दन तथा शरजाह में प्रदर्शनियों आयोजित की हैं तथा श्रीनगर, पटना, बंगलौर, मनाली एवं ग्वालियर के कलाकार कैम्पों में भाग लिया है।
सन् 1988 ई० के ललित कला अकादमी नई दिल्ली के राष्ट्रीय पुरस्कार के अतिरिक्त उन्हें पंजाब ललित कला अकादमी, जम्मू तथा काश्मीर, हरियाणा तथा अम्बाला आदि में अनेक राज्य सरकारों के पुरस्कारों एवं प्रशंसा-पत्रों द्वारा सम्मानित किया गया है।
उनके चित्र भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन कलकत्ता, अमर पैलेस संग्रहालय जम्मू, हरियाणा राजभवन, पंजाब विश्वविद्यालय संग्रहालय, ललित कला अकादमी नई दिल्ली आदि के संग्रह में हैं।
सम्प्रति ये आदर्श महिला महाविद्यालय भिवानी (हरियाणा) में कला-विभाग के अध्यक्ष हैं।
सुरिन्दर भारद्वाज के तप पूर्ण जीवन का उनकी कला में भी प्रभाव आया है। उनकी प्रथम चित्र प्रदर्शनी 1960 में श्रीनगर (काश्मीर) में आयोजित हुई थी जिसमें हुसेन तथा कुलकर्णी जैसे श्रेष्ठ कलाकारों ने उनकी प्रशंसा की थी।
सन् 1967 में ताज आर्ट गैलरी बम्बई में आयोजित उनकी प्रदर्शनी को देखकर के०एच० आरा भी अत्यन्त प्रभावित हुए थे। इस प्रकार कला जगत् में निरन्तर आगे बढ़ते हुए उन्होंने अपने लिये एक सम्मानपूर्ण स्थान बना लिया है।
आरम्भ में भारद्वाज लम्बी नारी आकृतियों के माध्यम से जीवन के हर्ष-विषाद का चित्रण करते थे।
इन चित्रों की नारी आकर्षक और पुरुष के अवसादपूर्ण मन को सान्त्वना देने वाली शरण स्थली थी उदास तथा लम्बे पुरुष चेहरों को अपनी बाहों, कन्धों अथवा वक्ष स्थल का आश्रय प्रदान करने वाली, किन्तु स्वयं शून्य आकाश को एकटक निहारती हुई ।
इसके उपरान्त जम्मू के मन्दिरों के स्थापत्य से प्रभावित होकर उन्होंने नगर- दृश्यों का अंकन आरम्भ किया जिनमें भारतीय शैली की रेखा पर बल था।
उनके नगर चित्रों में यह रेखा शनैःशनैः गहरी होती गयी किन्तु नवीनतम चित्रों में रेखा का स्थान वस्तु के संयोजनों ने ले लिया है। भारद्वाज के नगर-चित्र अमूर्त-संयोजन की ओर झुके हुए हैं।
उनमें चित्र के विस्तार का विचार बहुत सोच-समझकर आकर्षक ढंग से व्यवस्थित किया गया है। उनके रंग भी प्रयाप्त प्रभावशाली हैं।
उन्हें देखकर रामकुमार के अमूर्त नगर- दृश्यों का स्मरण हो आता है; किन्तु रामकुमार के नवीनतम दृश्यांकनों में जहाँ प्रकृति की अमूर्त शक्तिमत्ता का आभास होता है वहाँ भारद्वाज के चित्रों में उदास रंगों का प्रयोग न होते हुए भी आधुनिक शहरी जीवन की व्यस्तता, अव्यवस्था और निम्न तथा मध्यवर्गीय विषम परिस्थतियों और गरीबी का प्रतिबिम्ब भी झलकता है।
उन्होंने चित्रों में अधिकांश खिड़कियों ही अंकित की हैं। कहीं-कहीं तो वे समाचार-पत्र के टुकड़े भी काट कर लगा देते हैं क्योंकि कई बार खिड़कियों के शीशे टूट जाने पर अक्सर कागज चिपका दिया जाता है।
अपने चित्रों के द्वारा वे प्रायः तंग ढलवाँ गलियों का वातावरण प्रस्तुत करते हैं।
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- रमेश बाबू कनेकांति | Painting – A stroke of luck By Ramesh Babu Kannekantiगणेश के हाथी के सिर ने उन्हें पहचानने में आसान बना दिया है। भले ही वह कई विशेषताओं से सम्मानित हैं, भगवान गणेश की व्यापक रूप से बाधाओं को मिटाने वाले, कला और विज्ञान के दाता और बुद्धि …
- आधुनिक काल में चित्रकला18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में, चित्रों में अर्द्ध-पश्चिमी स्थानीय शैली शामिल हुई, जिसे ब्रिटिश निवासियों और आगंतुकों द्वारा संरक्षण दिया गया। चित्रों की विषयवस्तु आम तौर पर भारतीय सामाजिक जीवन, लोकप्रिय त्योहारों और …
- प्रगतिशील कलाकार दल | Progressive Artist Groupकलकत्ता की तुलना में बम्बई नया शहर है किन्तु उसका विकास बहुत अधिक और शीघ्रता से हुआ है। 1911 में अंग्रेजों ने भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली में स्थान्तरित कर दी थी। 1933-34 में बंगाल में दुर्भिक्ष …
- रमेश बाबू कन्नेकांति की पेंटिंग | Eternal Love By Ramesh Babu Kannekantiशिव के चार हाथ शिव की कई शक्तियों को दर्शाते हैं। पिछले दाहिने हाथ में ढोल है, जो ब्रह्मांड के प्रकट होने पर आदिवासी ध्वनि का प्रतिनिधित्व करता है। पिछला बायां हाथ एक ज्वाला धारण करता है- विलोपन …
- मध्यकालीन भारत में चित्रकला | Painting in Medieval Indiaदिल्ली में सल्तनत काल की अवधि के दौरान शाही महलों, शयनकक्षों और मसजिदों से भित्ति चित्रों के साक्ष्य मिले हैं। ये मुख्य रूप से फूलों, पत्तियों और पौधों को दर्शाते हैं। इल्तुतमिश (1210-1236) के समय के चित्रों के …
- रथीन मित्रा (1926)रथीन मित्रा का जन्म हावड़ा में 26 जुलाई को 1926 में हुआ था। उनकी कला-शिक्षा कलकत्ता कला-विद्यालय में हुई । तत्पश्चात् वेदून स्कूल के कला-विभाग में शिक्षक नियुक्त हुए और वहाँ अध्यक्ष पद पर आसीन हुए 1959 में …
- रामगोपाल विजयवर्गीय | Ramgopal Vijayvargiyaपदमश्री रामगोपाल विजयवर्गीय जी का जन्म बालेर ( जिला सवाई माधोपुर) में सन् 1905 में हुआ था। आप महाराजा स्कूल आफ आर्ट जयपुर में श्री शैलेन्द्रनाथ दे के शिष्य रहे हैं। 1945 से 1966 तक आपने राजस्थान स्कूल …
- रणबीर सिंह बिष्ट | Ranbir Singh Bishtरणबीर सिंह बिष्ट का जन्म लैंसडाउन (गढ़बाल, उ० प्र०) में 1928 ई० में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा गढ़वाल में ही प्राप्त करने के उपरान्त कला में विशेष रूचि होने के कारण उन्होंने लखनऊ कला विद्यालय में प्रवेश ले …
- नन्दलाल बसु | Nandlal Basuश्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर की शिष्य मण्डली के प्रमुख साधक नन्दलाल बसु थे ये कलाकार और विचारक दोनों थे। उनके व्यक्तित्व में कलाकार और तपस्वी का अद्भुत सम्मिश्रण था चिन्तन के क्षणों में उन्होंने जो कुछ कहा या लिखा …
- ललित मोहन सेन | Lalit Mohan Senललित मोहन सेन का जन्म 1898 में पश्चिमी बंगाल के नादिया जिले के शान्तिपुर नगर में हुआ था ग्यारह वर्ष की आयु में वे लखनऊ आये और क्वीन्स हाई स्कूल में प्रवेश लिया शान्तिपुर के अपने बचपन के …
- सुधीर रंजन खास्तगीर | Sudhir Ranjan Khastgirसुधीर रंजन खास्तगीर का जन्म 24 सितम्बर 1907 को कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता श्री सत्यरंजन खास्तगीर छत्ताग्राम (आधुनिक चटगाँव) के निवासी थे और कलकत्ता में इंजीनियर थे। सुधीर जब छः वर्ष के थे, उनके पिता का …
- मनीषी दे | Manishi Deदे जन्मजात चित्रकार थे। एक कलात्मक परिवार में उनका जन्म हुआ था। मनीषी दे का पालन-पोषण रवीन्द्रनाथ ठाकुर की. देख-रेख में हुआ था। उनके बड़े भाई मुकुल दे और बहन रानी चन्दा बचपन के साथी थे और दोनों …
- नीरद मजूमदार | Nirad Majumdaarनीरद (अथवा बंगला उच्चारण में नीरोद) को नीरद (1916-1982) चौधरी के नाम से भी लोग जानते हैं। उनकी कला में प्राचीन भारतीय विचारधारा तथा देवी-देवताओं की आकृतियों का प्रयोग नये संयोजनों में हुआ है। प्रो०ए०एल०वाशम का विचार है …
- कनु देसाई | Kanu Desai(1907) गुजरात के विख्यात कलाकार कनु देसाई का जन्म – 1907 ई० में हुआ था। आपकी कला शिक्षा शान्ति निकेतन में हुई और आपको नन्दलाल बसु के शिष्य होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। वहाँ अध्ययन करने के उपरान्त …
- रामकिंकर वैज | Ramkinkar Vaijशान्तिनिकेतन में “किकर दा” के नाम से प्रसिद्ध रामकिंकर का जन्म बांकुड़ा के निकट जुग्गीपाड़ा में हुआ था। बाँकुडा में उनकी आरम्भिक शिक्षा हुई। सन् 1925 में माडर्न रिव्यू के संस्थापक रामानन्द चटर्जी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना …
- मिश्रित यूरोपीय पद्धति के राजस्थानी चित्रकार | Rajasthani Painters of Mixed European Styleइस समय यूरोपीय कला से राजस्थान भी प्रभावित हुआ। 1851 में विलियम कारपेण्टर तथा 1855 में एफ०सी० लेविस ने राजस्थान को प्रभावित किया जिसके कारण छाया-प्रकाश युक्त यथार्थवादी व्यक्ति-चित्रण मेवाड में 1855 ई० से ही आरम्भ हो गया। डा० सी० एस० वेलेण्टाइन …
- शारदाचरण उकील | Sharadacharan Ukilश्री उकील का जन्म बिक्रमपुर (अब बांगला देश) में हुआ था। आप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रमुख शिष्यों में से थे। उकील का परिवार बंगाल का एक कला दक्ष परिवार था। इसमें तीन भाई थे। बड़े शारदाचरण विख्यात चित्रकार …
- के० वेंकटप्पा | K. Venkatappaआप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के आरम्भिक शिष्यों में से थे। आपके पूर्वज विजयनगर के दरबारी चित्रकार थे विजय नगर के पतन के पश्चात् आप मैसूर राज्य में आ बसे थे आरम्भ (1902-8) में आपने मैसूर कला विद्यालय में शिक्षा …
- विनोद बिहारी मुखर्जी | Vinod Bihari Mukherjee Biographyमुखर्जी महाशय (1904-1980) का जन्म बंगाल में बहेला नामक स्थान पर हुआ था। आपकी आरम्भिक शिक्षा स्थानीय पाठशाला में हुई और अस्वस्थता के कारण आपके अध्ययन में अवरोध भी आया। 1917 में आप शान्ति निकेतन पहुँचे और 1919 …
- हेमन्त मिश्र (1917)असम के चित्रकार हेमन्त मिश्र एक मौन साधक हैं। वे कम बोलते हैं। वेश-भूषा से क्रान्तिकारी लगते है अपने रेखा-चित्रों में वे अपने मन की बेचैनी को प्रकट करना चाहते हैं, अपनी कृतियों को विद्रोही, हिंसक रूप देना …
- अब्दुर्रहमान चुगताई (1897-1975) वंश परम्परा से ईरानी और जन्म से भारतीय श्री मुहम्मद अब्दुर्रहमान चुगताई अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के ही एक प्रतिभावान् शिष्य थे जिन्हें बंगाल शैली का प्रचार करने के लिये श्री समरेन्द्रनाथ गुप्त था। वे के पश्चात् मेयो स्कूल आफ …
- देवी प्रसाद राय चौधरी | Devi Prasad Raychaudhariदेवी प्रसाद रायचौधुरी का जन्म 1899 ई० में पू० बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में रंगपुर जिले के ताजहाट नामक ग्राम में एक जमीदार परिवार में हुआ था। इनका बचपन ताजहाट में ही व्यतीत हुआ। कुछ समय पश्चात् इन्होंने कलकत्ता …
- क्षितीन्द्रनाथ मजुमदार | Kshitindranath Majumdarक्षितीन्द्रनाथ मजूमदार का जन्म 1891 ई० में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में निमतीता नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता श्री केदारनाथ मजूमदार जगताई में सब-रजिस्ट्रार थे। क्षितीन बाबू जब केवल एक वर्ष के थे तभी उनकी …