कलकत्ता ग्रुप

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कलकत्ता ग्रुप के सदस्य

1940 के लगभग से कलकत्ता में भी पश्चिम से प्रभावित नवीन प्रवृत्तियों का उद्भव हुआ । 1943 में प्रदोष दास गुप्ता के प्रयत्नों से कलाकारों के कलकत्ता ग्रुप का उदय हुआ जिसमें गोपाल घोष, प्राण कृष्णपाल, सुनीलमाधव सेन, नीरद मजूमदार, रथीन मित्रा, परितोष सेन, हेमन्त मिश्र तथा मूर्तिकार प्रदोषदास गुप्ता आदि ने भाग लिया था।

इनका कथन था, “व्यक्ति सर्वोपरि है, उससे ऊपर कुछ भी नहीं है।……. कला अन्तर्राष्ट्रीय और स्वयं पर आश्रित होनी चाहिये।”

जिस समय इस दल की स्थापना हुई उस समय बंगाल पर दुर्भिक्ष के काले बादल मँडरा रहे थे और जन-मन में गहन निराशा का अंधकार छाया हुआ था। श्रीमती कैसी के प्रयत्नों से 1944 में जब इनकी प्रथम प्रदर्शनी हुई तो इनकी बहुत आलोचना हुई और लोगों ने इनके चित्रों को भोंडे तथा भो कहा। किन्तु कुछ आलोचकों ने इनकी प्रशंसा भी की अमेरिकी और जर्मन कला-मर्मज्ञों ने इनकी पीठ थपथपाई।

1948 से इन्हें सफलता मिलनी आरम्भ हुई। 1947-48 में ही बम्बई में एक “प्रगतिशील कलाकार दल” (प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स, पेग) का गठन हुआ था। 1950 में कलकत्ता और बम्बई के दोनों दलों की एक मिली-जुली प्रदर्शनी कलकत्ता में हुई तभी से कलकत्ता ग्रुप विशेष प्रसिद्ध हुआ।

कुछ समय पश्चात् प्रदोषदास गुप्ता नेशनल आर्ट गेलरी के क्यूरेटर हो गये, रथीन मित्रा दून स्कूल में अध्यापक हो गये और प्राण कृष्णपाल नई दिल्ली के वायुसेना स्कूल में कला शिक्षक हो गये। शनैः-शनैः यह दल विघटित हो गया।


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