आधुनिक भारतीय चित्रकला आन्दोलन के प्रथम वैतालिक श्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म जोडासको नामक स्थान पर सन् 1871 में जन्माष्टमी के दिन हुआ था।
आपका पूरा परिवार ही कलात्मक रुचि का था। घर में देश-विदेश के बड़े कलाकार आते-जाते रहते थे, अतः बाल्यावस्था से ही इन पर इसका प्रभाव पड़ा।
आरम्भिक शिक्षा प्राप्त करने की अवधि में ही 1881- 1890 के मध्य आपने संस्कृत कालेज में अध्ययन किया जिससे आपके मन में प्राचीन संस्कृति एवं साहित्य के प्रति जिज्ञासा तथा श्रद्धा उत्पन्न हुई।
तदुपरान्त आपने साहित्य, संगीत एवं चित्रकला का अध्ययन एवं अभ्यास आरम्भ कर दिया आपको भारतीयों की अपने 1 प्रति हीन भावना बुरी लगी।
फिर भी तत्कालीन प्रचलित प्रथा के अनुसार आपको दो विदेशी कलांविदों से कला की शिक्षा लेनी पड़ी।
इनमें एक तो इटली के प्रसिद्ध कलाकार सिनोर गिलहार्डी थे तथा दूसरे एक यूरोपीय चार्ल्स एल० पामर थे। सतत् अभ्यास करते रहने पर और यूरोपीय शैली में कुछ सुन्दर चित्र बना लेने पर भी उन्हें सन्तोष नहीं हुआ।
उनकी इच्छा बराबर अपनी आन्तरिक अनुभूतियों को व्यक्त करने की बनी रहती थी। अवनी बाबू जब किशोर ही थे तब एक बार राजा रवि वर्मा भी उनके घर आये थे और उन्होंने बालक अवनीन्द्रनाथ द्वारा बनाये गये चित्रों की प्रशंसा की थी।
इस प्रकार बाद में अपने अन्तिम समय में भी राजा रवि वर्मा ने अवनी बाबू के ‘शाहजहाँ के अन्तिम दिन” शीर्षक चित्र की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी मन्धन के इन्हीं दिनों में कुछ भारतीय शैली के चित्र-संग्रह उन्हें मिल गये।
इनकी सजावट और सौन्दर्य से प्रेरित होकर उन्होंने भारतीय विषयों की खोज की और रवीन्द्रनाथ ठाकुर के परामर्श से उन्होंने विद्यापति और चण्डीदास के गीतों को चित्रित करना आरम्भ किया।
पहले तो उन्हें असफलता मिली पर फिर एक भारतीय शैली के शिक्षक की सहायता से वे राधा-कृष्ण सम्बन्धी चित्र तैयार करने लगे।
अभी तक वह तैल रंगों में ही चित्रण करते थे। कुछ दिन उपरान्त उन्होंने जल-रंगों में चित्रण करना आरम्भ किया।
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इसी समय ये कलकत्ता आर्ट स्कूल के प्रिंसिपल श्री ई०बी० हैवेल के सम्पर्क में आये, जिन्होंने आपको राजपूत तथा मुगल शैली के कुछ उत्तम चित्र दिखाये और उनके अध्ययन का परामर्श दिया हैवेल की देख-रेख में उन्होंने नये प्रयोग आरम्भ किये और गीतगोविन्द, बुद्ध जन्म, बुद्ध और सुजाता, ताजमहल का निर्माण तथा शाहजहाँ की मृत्यु आदि कई सफल चित्रों का निर्माण किया हैवेल साहब को भी अवनी बाबू की प्रतिभा का ज्ञान होता गया और विश्वास हो गया कि यह कलाकार भारतीय कला का अवश्य पुनरुद्धार करेगा।
सन् 1902 के लगभग सुप्रसिद्ध जापानी विचारक तथा कला मर्मज्ञ काउण्ट ओकाकुरा उनके यहाँ आये वे पूर्वी देशों के कलाकारों द्वारा पश्चिमी शैली के अनुकरण के कटु आलोचक थे। अवनी बाबू पर उनका भी प्रभाव पड़ा ।
काउण्ट ओकाकुरा ने उनके पास जापान से तीन चित्रकार भेजे काम्पो आराइ, याकोहामा ताइक्वान तथा हिशिदा ।
इनमें से ताइक्वान तथा हिशिदा अवनी बाबू के साथ दो वर्ष तक रहे। इनसे जापानी टेक्नीक का ज्ञान प्राप्त कर आपने कुछ और चित्र बनाये जिनमें ‘भारत माता’ एवं ‘सान्ध्यदीप’ आदि प्रमुख हैं। इन पर जापानी प्रभाव है।
अवनीन्द्रनाथ ने हिन्दू, बौद्ध तथा मुगल कला के गम्भीर अध्ययन के साथ-साथ फारसी, तिब्बती, चीनी, जापानी, जावा तथा कम्बोडिया की इण्डोनेशियाई एवं स्यामी कला का भी ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने रंग के पतले वाश की जो तकनीक विकसित की उसकी कुछ है।
क्षेत्रों में प्रशंसा हुई किन्तु श्री आनन्द कुमारस्वामी ने उस तकनीक की आलोचना भी की।
इस वाश तकनीक में वातावरण तथा ऋतु सम्बन्धी प्रभाव भी दिये गये जिनमें रंग के विभिन्न बलों का बड़ा ही आकर्षक प्रयोग हुआ 1898 से 1905 तक अवनी बाबू कलकत्ता कला विद्यालय के उप-प्रधानाचार्य तथा 1905 से 1915 तक प्रधानाचार्य रहे।
1915 में उन्होंने यहाँ से अवकाश ले लिया और 1919 तक विचित्रा क्लब की स्थापना की जहाँ बंगाल शैली के चित्रकार एकत्रित होकर कला के प्रचार-प्रसार का कार्य करते रहे।
1919 में शान्ति निकेतन में कला भवन की स्थापना और नन्दलाल बसु के वहाँ के प्रधान शिक्षक बन जाने के उपरान्त विचित्रा क्लब की गतिविधियाँ बन्द हो गयीं।
अवनीन्द्रनाथ ठाकुर ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में ललित कला के “बागेश्वरी प्रोफेसर के पद पर भी कार्य किया।
देश में चल रहे राष्ट्रीय आन्दोलन से प्रभावित होकर अवनी बाबू ने कला-आन्दोलन का सूत्रपात किया और नये विचारों के प्रतिभाशाली कलाकारों को एकत्रित करके 1907 में ‘इण्डियन सोसाइटी ऑफ ओरिएन्टल आर्ट’ की भी स्थापना कर डाली।
इस संस्था ने अनेक विदेशी कलाविदों को आमन्त्रित करके मुक्त विचार-विनिमय किये, नये-नये प्रयोग किये और देश में कला का प्रचार किया।
बहुत से व्यक्तियों ने इस कला-आन्दोलन का विरोध किया किन्तु ये लोग अपने मार्ग पर दृढ़ता से चलते रहे।
अन्त में लोगों को पता चला कि भारत की प्राचीन कला-परम्परा महान है और उसे नवीन ‘अनुसार विकसित भी किया जा सकता है।
युग के प्राचीन भारतीय कला के प्रति भी अवनी बाबू को बहुत लगाव था। उन्होंने पुरानी कला कृतियाँ खरीदने में बहुत पैसा खर्च किया।
कला विद्यालय में संस्कृत सिखाने के लिए एक पण्डित तथा परम्परागत चित्रकला के शिक्षण के लिए पटना के ईश्वरी प्रसाद को भी नियुक्त किया।
जयपुर मिति चित्रण सिखाने के लिए भी कुछ कलाकार जयपुर से बुलवाये। सन् 1909-10 में अजन्ता के चित्रों की अनुकृति करने के लिए इंग्लैण्ड से लेडी हेरिंघम की अध्यक्षता में जो दल आया था उसकी सहायता करने के लिए अपने शिष्यों नन्दलात बसु, असित कुमार हाल्दार, समरेन्द्रनाथ गुप्त तथा वेंकटप्पा को भेजा। ये अनुकृतियाँ इण्डिया सोसाइटी लन्दन द्वारा प्रकाशित की गयीं।
अवनी बाबू के प्रोत्साहन से उनके भाई गगनेन्द्रनाथ ने कुटीर उद्योगों के लिए भी Bengal Home Industries Association खोला तथा कला विद्यालय से हट जाने पर रवीन्द्रनाथ के घर विचित्रा क्लब चलाया।
अवनी बाबू कलकत्ता विश्वविद्यालय में भारतीय कला के पीठासन (Chair of Indian Art) पर भी आसीन रहे।
उनके व्याख्यानों, लेखों तथा पुस्तकों ने भारतीय कला के प्रति सभी प्रबुद्धों में एक नवीन सौन्दर्य-भावना उत्पन्न की इनमें भारत शिल्प के षंडगों पर लिखी पुस्तक सर्वाधिक प्रसिद्ध हुई है और इससे भारतीय कला का मर्म समझने में पर्याप्त सहायता मिली है।
अवनी बाबू के शिष्यों को विभिन्न कला विद्यालयों का स्वतन्त्र रूप से अधिकार दे दिया गया। यह सरकार द्वारा उनके प्रति सबसे बड़ा सम्मान था।
संसार भर के प्रतिष्ठित लेखक और कलाकार उनसे मिलने आते रहे। लार्ड हार्डिज, लार्ड कारमाइकेल, लार्ड रोनाल्डशे, ओकाकुरा, हिशिदा, काम्पो आराइ, याकोहामा ताइक्वान, निकोलस रोरिक तथा विलियम रोथेन्स्टीन आदि इनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं।
अवनी बाबू स्वयं कलाकार ही नहीं, कला शिक्षक भी थे। उन्होंने अपने शिष्यों की विशेषताएँ विकसित करने में पूरी सहायता की।
वे अपनी शैली अथवा अपनी सम्मति को कभी शिष्यों पर थोपते नहीं थे। इसके अतिरिक्त वे अच्छे लेखक भी थे। चित्रकला के 6 अंगों पर उनकी लिखी हुई पुस्तक ‘षडंग’ बहुत प्रसिद्ध है।
इस बंगला पुस्तक का अंग्रेजी तथा हिन्दी अनुवाद भी हो चुका है। धीरे-धीरे उनकी ख्याति विश्व भर में फैल गयी।
श्री आनन्दकुमारस्वामी ने भी बंगाल स्कूल के प्रचार में अपने लेखों से बड़ी सहायता की। 1 सितम्बर 1951 को आपका देहावसान हो गया।
अवनी बाबू की कला
अवीन्द्रनाथ की कला कृतियों की भारतीयता बरावर आलोचना का विषय रही है। उनकी व्यक्तिगत प्रतिभा तो असंदिग्ध है किन्तु उनकी कला में कई शैलियों का समन्वय दिखायी देता है।
हम यह नहीं कह सकते कि उनकी कला पश्चिमी, ईरानी, चीनी, तथा जापानी कला से प्रभावित नहीं है।
“बात अटपटी लगने का भय है, लेकिन उनकी कृतियों को बर्नीज जोन्स, बिहजाद और ओगाता कोरीन का सम्मिश्रण कहने को जी चाहता है।” ओ०सी०गांगुली । अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के चित्रों का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया गया है:
(1) ब्रिटिश अकादमिक पद्धति (उदाहरण ‘जमुना’ 1926)
(2) भारतीय मध्ययुगीन लघु-चित्रण पद्धति (उदाहरण ‘यात्रा का अन्त’ 1912)
(3) चीनी-जापानी-भारतीय-यूरोपीय मिश्रित शैली (उदाहरण ‘खिलौना’)
(4) अर्द्ध प्रभाववादी शैली के कुछ दृश्य-चित्र
(5) फुटकर चित्र
उक्त शैलियों में ब्रिटिश पद्धति के चित्र अवनी बाबू ने 1890 से, भारतीय लघु चित्रण पद्धति के 1895 से तथा चीनी- जापनी प्रभाव वाले 1903 से बनाने आरम्भ किये थे किन्तु वे सभी प्रकार के चित्र 1930 तक बनाते रहे; अतः उनकी कला विकास के अलग-अलग चरण नहीं मिलते।
अवनी बाबू की कला पर रंग मंच, रामाण्टिक में काव्य, बाल-कथाओं, ब्रिटिश कला, प्राचीन कला, रागमाला चित्रों, जापानी कला तथा चीनी कला का प्रभाव पड़ा था। उनकी कला में इन सबका समन्वय मिलता है।
से उन्होंने जिस शैली को जन्म दिया उसका व्यापक प्रचार हुआ। अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा से उन्होंने इस शैली को भी प्रतिष्ठा दी विषयों की दृष्टि से उनकी कला पूर्ण भारतीय है और उसमें एक भावुक कलाकार का ह्रदय झाँकता है।
शैली में ही अन्य प्रभाव लक्षित होते हैं। जागरूक कलाकार सदैव अपने युग से प्रभावित होता है।
वह चिर-प्रगतिशील बना रहने के लिए नित्य नूतन प्रयोग करता रहता है-जब तक कि वह अपनी आविष्कृत शैली में पूर्ण परिपक्वता प्राप्त नहीं कर लेता अवनीन्द्रनाथ ठाकुर की कला का महत्व सभी आलोचकों ने एक समान नहीं माना है।
सन् 1911 में आनन्द कुमारस्वामी ने कहा था कि इनकी रंग-योजनाएँ इतनी धुंधली हैं कि चित्र का विषय तक समझने में बड़ी कठिनाई होती है।
यद्यपि इनके चित्र किंचित् लावण्य युक्त हैं तथापि उनमें अतिभावुकता, दुर्बल रेखांकन एवं अन्धकारमय वर्णिका आदि दोष भी हैं।’
आर्चर ने कुमारस्वामी का ही अनुकरण करते हुए 1959 ई० में कहा था अपने तीस वर्ष के विकास काल में अवनी बाबू की शैली में कुछ विशेषताएँ स्थिर हो गयी थीं। निश्चयहीन रेखा, आकृतियों की अस्पष्टता, रंगों का फीकापन, नारियों जैसी कोमल आकृतियों में रुचि, रोगियों जैसे दुर्बल शरीर तथा थोथी भावुकता इनके प्रमुख लक्षण थे।
आर्चर के विचार से इसका प्रधान कारण तकनीकी दुर्बलता थी इन सब आलोचनाओं के विपरीत कतिपय अन्य कलाविदों की दृष्टि में वे महान् कलाकार थे।
जया अप्पासामी ने अवनीन्द्रनाथ की कल्पनाओं को व्हिसलर से श्रेष्ठ तथा रंगों एवं आकाशीय प्रभावों को टर्नर से उत्तम माना है। प्रदोष दास गुप्ता ने अवनी बाबू को विलियम ब्लेक के समान आदर्श विचारक कलाकार उद्घोषित किया है।
ऐतिहासिक दृष्टि से अपनी बाबू राष्ट्रीय स्तर के कला के अग्रदूत रहे हैं, अन्तर्राष्ट्रीय नहीं।
यूरोप के प्रसिद्ध आधुनिक चित्रकारों मातिस, पिकासो, कान्दिन्स्की अथवा मोन्द्रियों की भाँति किसी नवीन शैली का सृजन न करके अवनीन्द्रनाथ ने एशिया और प्रधानतः भारतीय कला को ही अपना आधार बनाया और लोगों को उसका सम्मान करने को प्रेरित किया।
अवनी बाबू के प्रसिद्ध चित्र हैं: शाहजहाँ का अन्तिम समय तिष्यरक्षिता, राधा -कृष्ण, औरंगजेब आदि। ‘औरंगजेब’ में मुगल व्यक्ति-चित्रण तकनीक का प्रयोग किया गया है।
मुखाकृति यथार्थवादी है, शरीराकृति में गढ़नशीलता का प्रभाव है, फिर भी उसमें कलाकार की व्यक्तिगत शैली की अनुभूति है ‘राधा-कृष्ण” में संयोजन की उत्कृष्टता दर्शनीय है।
यह जापानी ‘काकीमीनो’ (कुण्डली चित्र) पद्धति में बना है। तकनीक में चीनी प्रभाव है तथापि चित्र अजन्ता की पद्धति पर संयोजित है।
भावाभिव्यक्ति केवल मुखाकृति में न होकर हस्तमुद्राओं तथा शारीरिक स्थितियों में है नेत्रों का भाव भ्रूचाप तथा नेत्रों की बनावट से व्यक्त किया गया है। एक चश्म मुखाकृति पहाड़ी शैली के अनुसार है।
‘शाहजहों का अन्तिम समय में जाड़े की सुबह दूर कुहरे में झांकता ताजमहल, तथा अग्रभूमि में यास्मीन बुर्ज के वे स्तम्भ है जहाँ शाहजहाँ को बन्दी बनाकर रखा गया था।
चित्र के मध्य में वृद्ध शाहजहाँ कारागार में असहायावस्था में पड़ा है। उसका सिर ताजमहल की ओर तिरछा उठा हुआ है। निकट ही नीची दृष्टि किये पुत्री जहानआरा बैठी है।
आकाश की फीकी रंगत और बातावरण के सूनेपन से शोक का भाव सर्जित किया गया है। उन्होंने मुगल शैली में जो चित्र अंकित किये थे उनके उदाहरण हैं-ताज का स्वप्न, ताजमहल का निर्माण, शाहजहाँ द्वारा ताज की अन्तिम झाँकी आदि।
पश्चिमी पद्धति में शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् उससे विद्रोह करके उन्होंने जो आरम्भिक चित्र बनाये थे उनके उदाहरण निर्वासित यक्ष, आकाश में सिद्धगण तथा ऋतु-संहार के चित्र हैं।
उनके अन्य मौलिक चित्र हैं: ध्यान मग्न बुद्ध, कमल पत्र पर अश्रुबिन्दु, जावा की नर्तकी, बंगाल के प्राकृतिक दृश्य तथा चैतन्य आदि ।
1940 से अपनी बाबू ने खिलौने तथा पाषाण खण्डों एवं वृक्षों की शाखाओं एवं जड़ों में सहसा पाये गये रूपों से आकृतियाँ बनाना आरम्भ कर दिया था।
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- देवी प्रसाद राय चौधरी | Devi Prasad Raychaudhariदेवी प्रसाद रायचौधुरी का जन्म 1899 ई० में पू० बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में रंगपुर जिले के ताजहाट नामक ग्राम में …
- अब्दुर्रहमान चुगताई (1897-1975) वंश परम्परा से ईरानी और जन्म से भारतीय श्री मुहम्मद अब्दुर्रहमान चुगताई अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के ही एक प्रतिभावान् शिष्य थे …
- हेमन्त मिश्र (1917)असम के चित्रकार हेमन्त मिश्र एक मौन साधक हैं। वे कम बोलते हैं। वेश-भूषा से क्रान्तिकारी लगते है अपने रेखा-चित्रों …
- विनोद बिहारी मुखर्जी | Vinod Bihari Mukherjee Biographyमुखर्जी महाशय (1904-1980) का जन्म बंगाल में बहेला नामक स्थान पर हुआ था। आपकी आरम्भिक शिक्षा स्थानीय पाठशाला में हुई …
- के० वेंकटप्पा | K. Venkatappaआप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के आरम्भिक शिष्यों में से थे। आपके पूर्वज विजयनगर के दरबारी चित्रकार थे विजय नगर के पतन …
- शारदाचरण उकील | Sharadacharan Ukilश्री उकील का जन्म बिक्रमपुर (अब बांगला देश) में हुआ था। आप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रमुख शिष्यों में से थे। …
- मिश्रित यूरोपीय पद्धति के राजस्थानी चित्रकार | Rajasthani Painters of Mixed European Styleइस समय यूरोपीय कला से राजस्थान भी प्रभावित हुआ। 1851 में विलियम कारपेण्टर तथा 1855 में एफ०सी० लेविस ने राजस्थान को प्रभावित …
- रामकिंकर वैज | Ramkinkar Vaijशान्तिनिकेतन में “किकर दा” के नाम से प्रसिद्ध रामकिंकर का जन्म बांकुड़ा के निकट जुग्गीपाड़ा में हुआ था। बाँकुडा में …
- कनु देसाई | Kanu Desai(1907) गुजरात के विख्यात कलाकार कनु देसाई का जन्म – 1907 ई० में हुआ था। आपकी कला शिक्षा शान्ति निकेतन …
- नीरद मजूमदार | Nirad Majumdaarनीरद (अथवा बंगला उच्चारण में नीरोद) को नीरद (1916-1982) चौधरी के नाम से भी लोग जानते हैं। उनकी कला में …
- मनीषी दे | Manishi Deदे जन्मजात चित्रकार थे। एक कलात्मक परिवार में उनका जन्म हुआ था। मनीषी दे का पालन-पोषण रवीन्द्रनाथ ठाकुर की. देख-रेख …
- सुधीर रंजन खास्तगीर | Sudhir Ranjan Khastgirसुधीर रंजन खास्तगीर का जन्म 24 सितम्बर 1907 को कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता श्री सत्यरंजन खास्तगीर छत्ताग्राम (आधुनिक …
- ललित मोहन सेन | Lalit Mohan Senललित मोहन सेन का जन्म 1898 में पश्चिमी बंगाल के नादिया जिले के शान्तिपुर नगर में हुआ था ग्यारह वर्ष …
- नन्दलाल बसु | Nandlal Basuश्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर की शिष्य मण्डली के प्रमुख साधक नन्दलाल बसु थे ये कलाकार और विचारक दोनों थे। उनके व्यक्तित्व …
- रणबीर सिंह बिष्ट | Ranbir Singh Bishtरणबीर सिंह बिष्ट का जन्म लैंसडाउन (गढ़बाल, उ० प्र०) में 1928 ई० में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा गढ़वाल में ही …
- रामगोपाल विजयवर्गीय | Ramgopal Vijayvargiyaपदमश्री रामगोपाल विजयवर्गीय जी का जन्म बालेर ( जिला सवाई माधोपुर) में सन् 1905 में हुआ था। आप महाराजा स्कूल …
- रथीन मित्रा (1926)रथीन मित्रा का जन्म हावड़ा में 26 जुलाई को 1926 में हुआ था। उनकी कला-शिक्षा कलकत्ता कला-विद्यालय में हुई । …
- मध्यकालीन भारत में चित्रकला | Painting in Medieval Indiaदिल्ली में सल्तनत काल की अवधि के दौरान शाही महलों, शयनकक्षों और मसजिदों से भित्ति चित्रों के साक्ष्य मिले हैं। …
- रमेश बाबू कन्नेकांति की पेंटिंग | Eternal Love By Ramesh Babu Kannekantiशिव के चार हाथ शिव की कई शक्तियों को दर्शाते हैं। पिछले दाहिने हाथ में ढोल है, जो ब्रह्मांड के …
- प्रगतिशील कलाकार दल | Progressive Artist Groupकलकत्ता की तुलना में बम्बई नया शहर है किन्तु उसका विकास बहुत अधिक और शीघ्रता से हुआ है। 1911 में …
- आधुनिक काल में चित्रकला18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में, चित्रों में अर्द्ध-पश्चिमी स्थानीय शैली शामिल हुई, जिसे ब्रिटिश निवासियों …
- रमेश बाबू कनेकांति | Painting – A stroke of luck By Ramesh Babu Kannekantiगणेश के हाथी के सिर ने उन्हें पहचानने में आसान बना दिया है। भले ही वह कई विशेषताओं से सम्मानित …
- सतीश गुजराल | Satish Gujral Biographyसतीश गुजराल का जन्म पंजाब में झेलम नामक स्थान पर 1925 ई० में हुआ था। केवल दस वर्ष की आयु …
- पटना चित्रकला | पटना या कम्पनी शैली | Patna School of Paintingऔरंगजेब द्वारा राजदरबार से कला के विस्थापन तथा मुगलों के पतन के बाद विभिन्न कलाकारों ने क्षेत्रीय नवाबों के यहाँ आश्रय …
- रमेश बाबू कन्नेकांति | Painting – Tranquility & harmony By Ramesh Babu Kannekantiयह कला पहाड़ी कलाकृतियों की 18वीं शताब्दी की शैली से प्रेरित है। इस आनंदमय दृश्य में, पार्वती पति भगवान शिव …
- आगोश्तों शोफ्त | Agoston Schofftशोफ्त (1809-1880) हंगेरियन चित्रकार थे। उनके विषय में भारत में बहुत कम जानकारी है। शोफ्त के पितामह जर्मनी में पैदा हुए …
- कालीघाट चित्रकारी | Kalighat Paintingकालीघाट चित्रकला का नाम इसके मूल स्थान कोलकाता में कालीघाट के नाम पर पड़ा है। कालीघाट कोलकाता में काली मंदिर के …
- प्राचीन काल में चित्रकला में प्रयुक्त सामग्री | Material Used in Ancient Artविभिन्न प्रकार के चित्रों में विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया जाता था। साहित्यिक स्रोतों में चित्रशालाओं (आर्ट गैलरी) और शिल्पशास्त्र …
- डेनियल चित्रकार | टामस डेनियल तथा विलियम डेनियल | Thomas Daniels and William Danielsटामस तथा विलियम डेनियल भारत में 1785 से 1794 के मध्य रहे थे। उन्होंने कलकत्ता के शहरी दृश्य, ग्रामीण शिक्षक, …
- मिथिला चित्रकला | मधुबनी कला | Mithila Paintingमिथिला चित्रकला, जिसे मधुबनी लोक कला के रूप में भी जाना जाता है. बिहार के मिथिला क्षेत्र की पारंपरिक कला है। यह गाँव …
- भारतीय चित्रकला | Indian Artपरिचय टेराकोटा पर या इमारतों, घरों, बाजारों और संग्रहालयों की दीवारों पर आपको कई पेंटिंग, बॉल हैंगिंग या चित्रकारी दिख …
- भारत में विदेशी चित्रकार | Foreign Painters in Indiaआधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास के आरम्भ में उन विदेशी चित्रकारों का महत्वपूर्ण योग रहा है जिन्होंने यूरोपीय प्रधानतः ब्रिटिश, …
- सजावटी चित्रकला | Decorative Artsभारतीयों की कलात्मक अभिव्यक्ति केवल कैनवास या कागज पर चित्रकारी करने तक ही सीमित नहीं है। घरों की दीवारों पर …
- बी. प्रभानागपुर में जन्मी बी० प्रभा (1933 ) को बचपन से ही चित्र- रचना का शौक था। सोलह वर्ष की आयु में …
- दत्तात्रेय दामोदर देवलालीकर | Dattatreya Damodar Devlalikar Biographyअपने आरम्भिक जीवन में “दत्तू भैया” के नाम से लोकप्रिय श्री देवलालीकर का जन्म 1894 ई० में हुआ था। वे …
- शैलोज मुखर्जीशैलोज मुखर्जी का जन्म 2 नवम्बर 1907 दन को कलकत्ता में हुआ था। उनकी कला चेतना बचपन से ही मुखर …
- नारायण श्रीधर बेन्द्रे | Narayan Shridhar Bendreबेन्द्रे का जन्म 21 अगस्त 1910 को एक महाराष्ट्रीय मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पूर्वज पूना में रहते …
- रवि वर्मा | Ravi Verma Biographyरवि वर्मा का जन्म केरल के किलिमन्नूर ग्राम में अप्रैल सन् 1848 ई० में हुआ था। यह कोट्टायम से 24 …
- के०सी० एस० पणिक्कर | K.C.S.Panikkarतमिलनाडु प्रदेश की कला काफी पिछड़ी हुई है। मन्दिरों से उसका अभिन्न सम्बन्ध होते हुए भी आधुनिक जीवन पर उसकी …
- भूपेन खक्खर | Bhupen Khakharभूपेन खक्खर का जन्म 10 मार्च 1934 को बम्बई में हुआ था। उनकी माँ के परिवार में कपडे रंगने का …
- बम्बई आर्ट सोसाइटी | Bombay Art Societyभारत में पश्चिमी कला के प्रोत्साहन के लिए अंग्रेजों ने बम्बई में सन् 1888 ई० में एक आर्ट सोसाइटी की …
- परमजीत सिंह | Paramjit Singhपरमजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1935 अमृतसर में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा के उपरान्त वे दिल्ली पॉलीटेक्नीक के कला …
- अनुपम सूद | Anupam Soodअनुपम सूद का जन्म होशियारपुर में 1944 में हुआ था। उन्होंने कालेज आफ आर्ट दिल्ली से 1967 में नेशनल डिप्लोमा …
- देवकी नन्दन शर्मा | Devki Nandan Sharmaप्राचीन जयपुर रियासत के राज-कवि के पुत्र श्री देवकी नन्दन शर्मा का जन्म 17 अप्रैल 1917 को अलवर में हुआ …
- ए० रामचन्द्रन | A. Ramachandranरामचन्द्रन का जन्म केरल में हुआ था। वे आकाशवाणी पर गायन के कार्यक्रम में भाग लेते थे। कुछ समय पश्चात् …