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अकबर काल में कला
अकबर- 1557 ई० में अकबर अपने पिता हुमायूँ की मृत्यु के पश्चात लगभग तेरह वर्ष की आयु में सिंहासन पर बैठा सिंहासन पर बैठते ही उसको कई लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं और 1570 ई० के पश्चात ही उसको सांस्कृतिक उत्थान में योग देने का अवसर प्राप्त हुआ।
अकबर ने ‘दीनइलाही धर्म चलाकर अपनी धार्मिक उदारता का परिचय दिया। उसने मुसलमानों के धार्मिक कट्टरपन को नहीं माना और चित्रकला जो मुसलमान धर्म में निषिद्ध थी की उन्नति के लिए सतत् प्रयत्न किये। उसने स्वयं अम्बर या अम्बेर (आमेर) के राजा बिहारीमल की पुत्री राजकुमारी जोधाबाई से विवाह किया और उसको धार्मिक स्वतंत्रता दी।
इस साम्राज्ञी के लिए अन्तःपुर में वैष्णवधर्म के उपदेश देने की स्वतंत्रता थी। इस राजपूत रानी का पुत्र सलीम ही सिंहासन का उत्तराधिकारी बना। इस प्रकार से अकबर ने संधि की नीति को अपनाया और जहाँ उसने राजपूतों की संस्कृति पहनावे आदि से बहुत कुछ लिया, वहाँ दूसरी ओर उसने उनके जीवन को बहुत कुछ प्रभावित भी किया।
अकबर के कई विश्वसनीय और सहायक हिन्दू थे। जयपुर के राजा भगवानदास और राजा मानसिंह ने अकबर की ओर से राजपूतों से भयानक युद्ध किये। अकबर के दरबार में ‘नवरत्न’ अर्थात् नौ उच्चकोटि के विद्वान या महान व्यक्ति थे।
इन नवरत्नों में अब्बुल फजल, फैजी, तानसेन, बीरबल, अब्दुलरहीम खानखाना, टोडरमल, राजा मानसिंह, बिहारीमल तथा भगवान दास थे। इन नवरत्नों में अधिकांश हिन्दू व्यक्ति थे। अकबर के दरबार में अधिकांश चित्रकार कायस्थ, चितेरा, खाती तथा कहार जाति के थे।
अकबर ने साहित्यकारों,दार्शनिकों, संगीतकारों तथा कलाकारों आदि में विशेष रुचि दिखाई जिसके फलस्वरूप अकबर के समय में प्रत्येक कला को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।
अकबर का कला प्रेम
अकबर के शासनकाल तक उत्तरी भारत में एक विशाल और समृद्ध साम्राज्य स्थापित हो चुका था। इस समय भारत पुनः प्रगति के लिए तत्पर हो चुका था। ऐसे शान्त और सुखद वातावरण में ललित कलाओं का विकास होता है अतः चित्रकला भी मुगल दरबार के राजसी वैभव और राज्य विस्तार के साथ विकसित हुई। मुगल दरबार का वैभव भिन्न-भिन्न कलाकारों, साहित्यकारों, संगीतकारों तथा राजपूत सरदारों को आकर्षित कर रहा था।
सम्राट अकबर की कलाप्रियता के कारण कलाकारों एवं विद्वानों को दरबार में समादर और सुखद आश्रय भी प्राप्त हो रहा था। अकबर की चित्रशाला में लगभग छः गुजराती चित्रकार थे। इससे स्पष्ट है कि उत्तम आश्रय प्राप्त करने के लिए कुशल चित्रकार मुगल दरबार की ओर आकर्षित हो रहे थे।
अकबर ने भवन कला तथा चित्रकला को विशेष महत्त्व प्रदान किया और उसने अपनी उदारता से इनको एक नवीन रूप प्रदान किया। वास्तव में अकबर की रुचि युवाकाल से ही चित्रकला की ओर थी।
जहाँगीर के आत्मचरित्र ‘तुज्के जहाँगीरी से भी इस बात की पुनः पुष्टि होती है। जहाँगीर ने एक रोचक घटना का वर्णन करते हुए लिखा है कि अकबर की ताजपोशी के समय (सिंहासन पर आसीन होने के समय) जब हेमू ने विद्रोह किया, और अन्त में उसको पराजित कर जब बंदी बनाकर अकबर के सम्मुख लाया गया तो अब्दुलरहीम खानखाना के पिता बेरमखा ने सम्राट से प्रार्थना की कि इस काफिर को मारकर गिजा (धर्मयुद्ध का यश) को प्राप्त करें। इस पर अकबर ने कहा कि- “में तो इसे पहले ही टुकड़े-टुकड़े कर चुका हूँ। जब में काबुल में ख्वाजा अब्दुस्समद शारीकलम‘ से चित्रकारी सीखता था तो एक दिन मेरी तूलिका (कलम) से एक ऐसा चित्र बन गया जिसके अंग अस्त-व्यस्त या कटे-फटे थे। पास बैठे एक व्यक्ति ने जब पूछा कि यह किसकी सूरत है तो मेरे मुँह से अकस्मात उत्तर- ‘हेमू’ निकल पड़ा।”
अकबरकालीन सचित्र पोथियाँ या ग्रन्थ
अकबर ‘अमीरहम्ज़ा’ की कहानी ‘दास्ताने अमीरहम्ज़ा’ में विशेष रुचि लेता था। इस कथा में ३६० कहानियाँ हैं, जिनको वह कथावाचक के रूप में अन्तःपुर की बेगमों को बड़े शौक से सुनाता था। हुमायूँ के समय में ही इस विषद कथा के चित्र बनाये जाने लगे थे और इसका पर्याप्त कार्य समाप्त हो गया था।
‘मतीरउलउमरा’ के अनुसार अकबर के समय में हम्ज़ानामा के चित्र बनते रहे। इस प्रकार अकबर ने आदि से अन्त तक अमीरहम्जा की सचित्र प्रतिलिपि बनवाने की आज्ञा दी। अकबर ने इस कथा को बारह खण्डों में विभाजित कराया और इनमें से प्रत्येक खण्ड में एक सौ जुज़ थे।
प्रत्येक जुज जिरा के बराबर लम्बा था और प्रत्येक जुज में दो चित्र थे। इस प्रकार इस प्रतिलिपि में २४०० चित्र बनाये गए थे। इन चित्रों के ऊपर सुलेखन लिपि में चित्र का विवरण लिखा जाता था। ख्वाजा अताउल्लाह लिपिक या मुंशी ने इन चित्रों पर विवरण लिखे हैं।
मुगल दरबार में मुंशी को ‘काज़वीन’ के नाम से पुकारा जाता था। अमीरहम्जा के चित्रों में फारसी शैली का प्रभाव अधिक है। ये चित्र सूती कपड़े पर अस्तर लगाकर बनाये गए हैं और इनमें से कुछ बोस्टन संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
ये चित्र बड़े आकार के हैं और 68×52 सेंटीमीटर लम्बाई तथा चौड़ाई के हैं। कालान्तर में अकबर की चित्रशाला में फारसी प्रभाव कम होता गया और राजस्थानी, कश्मीरी या भारतीय प्रभाव बढ़ता गया। वास्तव में यहीं से मुगल शैली का पूर्ण विकसित रूप आरंभ हो जाता है।
अकबर के समय में हम्ज़ानामा के अतिरिक्त ‘शाहनामा’, ‘चंगेजनामा’, ‘ज़्फरनामा’, ‘तवारीख-खानदाने तैमूरिया’, ‘रज़्मनामा’ (महाभारत का फारसी अनुवाद), ‘वाकयाते-बावरी’ (बाबर की आत्मकथा). ‘अकबरनामा’, ‘अनवारे सुहैली’ (पंचतंत्र का फारसी अनुवाद), ‘आयारदानिश’ (पंचतंत्र का फारसी अनुवाद), ‘तारीख रशीदी’ (दराबनामा), ‘खमसानिजामी’, ‘बहारिस्ताने जामी’, ‘रामायण’, ‘हरिवंश’, ‘महाभारत’, योगवशिष्ट’, ‘नलदमयन्ती कथा’, ‘शकुन्तला’, ‘कथा सरित सागर’, ‘दशावतार’, ‘कृष्णचरित’, ‘तृतीनामा’, ‘अजीबुलमखलूकात’, ‘आइनेअकबरी’, ‘कलीला-व्य-दिमनाह’ (रूदगी कवि के द्वारा किया गया महाभारत का फारसी अनुवाद) आदि ग्रंथों की सचित्र प्रतिलिपियाँ तैयार की गईं और अकबर के पुस्तकालय में रखी गई।
शाहनामा की प्रति में ही जामी कवि के काव्य का एक भाग संकलित है। आज इन सचित्र ग्रंथों की प्रतियाँ इधर-उधर संग्रहालयों में फुटकर पृष्ठों के रूप में या समुचित अवस्था में पहुँच गई हैं। अधिकांश कृतियाँ विदेशी संग्रहालयों में ही प्राप्त हैं इन प्रलिपियों में से ‘नलदमयन्ती’, ‘कलीला-व्य-दिमनाह’ तथा ‘आयार-दानिश’ की प्रतियाँ ब्रिटिश म्युज़ियम इंग्लैंड तथा कुछ अन्य संग्रहालयों में प्राप्त हैं।
ब्रिटिश म्युजियम में ‘बाबरनामा’ तथा दराबनामा की प्रतियाँ भी सुरक्षित हैं और ‘दराबनामा’ की इस प्रति में ही जामी की कविता का एक भाग है। ‘बाबरनामा’ की दो अन्य सचित्र प्रतियाँ प्राप्त हैं, जिनमें से एक प्रति के फुटकर पृष्ठ साउथ केसिंगटन संग्रहालय में तथा लूव्र संग्रहालय (फ्रांस) में सुरक्षित हैं।
अकबरनामा की प्रति के117 चित्र ‘अमीरहम्ज़ा’ की प्रति के 25 पृष्ठ तथा ‘बाबरनामा’ प्रति के कुछ फुटकर पृष्ठ विक्टोरिया एण्ड अल्बर्ट संग्रहालय साउथ केसिंगटन में सुरक्षित हैं। बाबरनामा के इन फुटकर पृष्ठों की अवस्था खराब है।
‘अमीरहम्जा’ प्रति के 61 पृष्ठ आर्ट एण्ड इन्डस्ट्री म्युजियम वियना में हैं और कुछ अन्य फुटकर पृष्ठ यूरोप के दूसरे संग्रहालयों में सुरक्षित हैं। ‘खम्सानिज़ामी’ के कुछ फुटकर पृष्ठ वोदलीयन लाइब्रेरी-आक्सफोर्ड तथा एक प्रति मि० डायसन पेरीन्स, मेलबर्न वोरकेस्टरशायर इंग्लैंड (Mr. Dyson Perrins of Malvern, Worcestershire) के संग्रह में हैं।
हम्जा चित्रावली के चौदह सौ पृष्ठ-पटचित्रों में से अब डेढ़ सौ चित्रों का ही अनुमान लगता है इनमें से दो बम्बई के श्री आदेशिर संग्रहालय में एक हैदराबाद निज़ाम संग्रहालय में तथा दो भारत कला भवन-काशी संग्रहालय में और एक बड़ौदा संग्रहालय में हैं।
इन सचित्र पोथियों की प्रतियों में से भारतवर्ष में केवल ‘रज्मनामा’, ‘तैमूरनामा’ तथा ‘बाबरनामा’ की प्रतियाँ ही उपलब्ध हैं। ‘रज़्मनामा’ तथा ‘रामायण’ की एक-एक प्रति इस समय हिज़ हाईनेस महाराजा जयपुर के संग्रह में सुरक्षित है।
‘तैमूरनामा’ की एक प्रति बांकीपुर पुस्तकालय में सुरक्षित है। बाबरनामा की प्रति राष्ट्रीय संग्रहालय-नई दिल्ली में सुरक्षित है। इस प्रति को संग्रहालय ने ‘आगरा कालेज-आगरा से प्राप्त किया था। ‘तारीखे खानदाने तैमूरिया’ की एक सचित्र प्रति खुदाबख्श खाँ पुस्तकालय, पटना में सुरक्षित है। अकबर के समय में सम्भवतः रसिकप्रिया नामक हिन्दी काव्य पर भी चित्र बनाये गए।
अकबर ने पोथी चित्रों के बनवाने में विशेष रुचि दिखाई। इन पोथियों के अतिरिक्त कई अन्य छिन्न-भिन्न पोथियों के पृष्ठ प्राप्त हुए हैं। जिनमें ‘तारीख-रसीदी’, ‘अनवारे-सुहेली’, ‘तारीख-अल्फी’ और हरिवंश के फारसी अनुवाद के चित्र प्राप्त हैं। इनमें से अनवारे सुहेली’ की अकबरकालीन चार प्रतियों का पता चलता है जिनमें से एक जो लाहौर में चित्रित की गई थी, का समय 1566 ई० है।
इस प्रति का एक पृष्ठ भारत कला भवन, काशी में सुरक्षित है। दूसरी प्रति ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन में सुरक्षित है। सम्भवतः यह प्रति अकबर के बाद की है। तीसरी प्रति रामपुर स्टेट लायब्रेरी, रामपुर तथा चौथी रॉयल एशियाटिक सोसायटी, लंदन में सुरक्षित है।
इन पोथियों की बहुत सी प्रतियों पर शाही मुहरें तथा मुगल बादशाहों के लेख भी प्राप्त हैं। पटना संग्रहालय वाली ‘तारीखे खानदाने तैमूरिया’ की प्रति पर शाहजहाँ की शाही मोहर तथा लेख हैं। शाहजहाँ को शाही पुस्तकालय की पुस्तकों पर लेख लिखने का शौक था।
इस प्रति में दसवन्त का बनाया हुआ चित्र भी है। इस पोथी में तैमूरवंश का आरम्भ से लेकर अकबर के शासनकाल के बाइसवें वर्ष (1577 ई०) तक का इतिहास है। इस प्रति के निर्माण के समय सम्भवतः 1850 ईसवी से 1885 ईसवी के मध्य रहा होगा। राजकीय संग्रहालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेश में ‘तूतीनामा’ के कुछ चित्रित पृष्ठ सुरक्षित हैं।
महाभारत का अनुवाद ‘रज्मनामा’ एक वर्ष के परिश्रम के पश्चात् 1582 ई० में बनकर पूरा हुआ। इसकी सचित्र प्रति बादशाह के लिये 1588 ई० में तैयार की गई जिसकी तीन जिल्दें थीं। परन्तु नादिरशाह के आक्रमण से पूर्व मुहम्मदशाह ने इस प्रति को महाराजा जयसिंह सवाई (जयपुर) को भेंट में दे दिया था।
इस प्रकार यह आश्चर्यजनक पोथी नादिरशाह की बरबादी से बच गई और महाराजा जयपुर के संग्रह में सुरक्षित है। साउथ-केंसिंगटन वाली ‘अकबरनामा’ की प्रति पर सम्राट जहाँगीर का लेख है। यह प्रति 1602 ईसवी तक बनकर तैयार हुई, परन्तु जहाँगीर ने इस पर अपना लेख लिख दिया है। अनुमानतः इस प्रति का कार्य अकबर के समय में ही समाप्त हो गया था। इस प्रति में एक सौ से अधिक चित्र हैं।
अकबरकालीन शबीह चित्र
पोथी चित्रों के अतिरिक्त अकबर के समय में बादशाह, विदूषकों, दरबारियों, संतों, साधुओं आदि की शबीह तैयार की गईं। अब्दुलफज़ल ने लिखा कि, जो लोग मर गये थे उनको इन चित्रों से नवीन जीवन और जीवित लोगों को अमरत्व प्राप्त हो गया।” बादशाह अकबर के अनेक चित्र प्राप्त हैं, जिनमें से दो बोस्टन संग्रहालय और एक इंडिया आफिस लायब्रेरी में सुरक्षित हैं।
अकबर का पोथीखाना
अकबर ने इन चित्रित तथा हस्तलिखित पुस्तकों का एक विशाल संग्रह तैयार कराया और ये पोथियाँ एक विशाल शाही पुस्तकालय में संजोयी गईं। इस पुस्तकालय में लगभग 24,000 पोथियों का संग्रह हो गया था, जिनका मूल्य साढ़े छः लाख रुपया था।
पोथियों के एक-एक भाग (जिल्द) का मूल्य 270 रुपया था। अकबर ने इन पुस्तकों को लिखने, सजाने या अलंकृत करने के लिए तथा जिल्द तैयार करने के लिये कुशल और विख्यात कारीगरों को नियुक्त किया था।
फैजी के निधन (1585 ई०) के पश्चात उसके पुस्तकालय से 4000 पुस्तकें शाही पुस्तकालय में आयीं, इस प्रकार शाही पुस्तकालय में पोथियों की संख्या 30,000 तक पहुँच गई। आज ये पोथियाँ बहुत कम प्राप्त हैं और इनके साथ में अनेक चित्रकारों की कृतियाँ भी समाप्त हो गई हैं।
अकबर के शाही पुस्तकालय के समान ही विख्यात अब्दुल रहीम खानखाना का अपना पोथी संग्रह था जिसमें हस्तलिखित पांडुलिपियाँ तथा सचित्र पोथियाँ थीं। यह विशाल पुस्तक संग्रह औरंगजेब के शासनकाल के पश्चात् आक्रमणकारियों के द्वारा लूट में तितर-बितर हो गया।
अकबर कालीन चित्रित ग्रन्थों के प्रकार
अकबर-काल में चित्रित पांडुलिपियों के विषयों को निम्न प्रकार से विभक्त किया जा सकता है।
1. अभारतीय कथाओं के चित्र हम्जानामा, खमसा निजामी इत्यादि।
2. भारतीय कथाओं के चित्र रामायण, रज्मनामा, नलदमन, अनवर-ए-सुहैली इत्यादि।
3. ऐतिहासिक चित्र : शाहनामा, तैमूर नामा, बाबर नामा, जामीउत- तारीखे- अल्फी, अकवर नामा इत्यादि।
4. व्यक्ति चित्र (शबीह)
5. सामाजिक चित्र
1. अभारतीय कथाओं के चित्र
(i) हम्जानामा
इस ग्रन्थ में मुहम्मद साहब के समकालीन अमीर हम्जा की कहानी है जो पहले तो हजरत के विरोधी थे परन्तु बाद में उसके अनुयायी हो गये एवं इस्लाम के प्रचारार्थ अनेक वीरतापूर्ण एवं साहसिक कार्य किये हम्जा चित्रों की विशेषतायें निम्न प्रकार से हैं
- हम्जा चित्र कहानी की घटनाओं से सम्बन्ध रखते है।
- चित्रों में पेड़-पौधे तथा मानव आकृतियों की भीड़ है।
- रेखाओं में कोमलता है।
- चेहरा एक चश्म है।
- हम्जा चित्र सूती कपड़े पर बने हैं।
- रंगों में दीप्ति है।
(ii) तूतीनामा
इस ग्रन्थ का विषय तोते का प्रेमालाप है। इसमें 103 चित्र हैं। यह सचित्र ग्रंथ चेस्टरबेरी संग्रहालय में है। हम्जानामा वाले चित्रों के समान ही यहाँ भी चित्र बने हैं। चाकदार जामा व प्रकृति अंकन सभी में समानता है। ये चित्र भारतीय परम्परा के समीप हैं।
(ii) दीवाने हाफिज
यह ग्रंथ हाफिज शिराजी की शेर शायरी की पुस्तक है जो अकबर काल में चित्रित हुई।
2. भारतीय कथाओं के चित्र
(i) अनवर-ए-सुहैली
यह ग्रंथ भारतीय ‘पंचतन्त्र’ का ईरानी संस्करण है। इस ग्रंथ की अकबर ने कई प्रतियाँ चित्रित करवायीं। इसकी प्रति चेस्टरबेरी संग्रहालय, डबलिन में है। इस ग्रंथ के चित्रों में ‘हम्जा’ वाली शैली अधिक स्पष्ट रूप से प्रकट हुई है।
(ii) रज्मनामा
महाभारत का फारसी अनुवाद ‘रज्मनामा’ के नाम से अब्दुकादिर बदायूनी ने बनाया। अकबर का भातीय आत्मा से लगाव का यह प्रबल उदाहरण है। इस ग्रंथ में 169 चित्र बनाये गये। इन चित्रों के बनाने में 50 चित्रकारों ने दिन-रात परिश्रम किया।
(ii) रामायण
इस ग्रन्थ का 1588 में चित्रण कार्य सम्पन्न हुआ। यह जयपुर के सवाई मानसिंह द्वितीय वाले संग्रहालय में संग्रहित है। इस ग्रंथ में भी रज्मनामा वाली शैली देखने को मिलती है।
3. ऐतिहासिक चित्र
(1) तवारीखे खानदान-ए-तैमूरिया
यह ग्रंथ खुदाबख्श ओरियन्टल लायब्रेरी, पटना में संग्रहित है। इसमें तैमूर वंश से लेकर अकबर के 1577 तक का चित्रण है। सम्भवतः 1582 तक यह पोथी चित्रित हो गयी थी।
(ii) अकबरनामा
यह अकबर कालीन सर्वोत्तम कृति है जो 16वीं शती के अन्तिम दशक में चित्रित की गयी। इस ग्रंथ का ‘सलीम का जन्म’ वाला चित्र सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इस ग्रंथ के चित्रों की शैली प्रायः तैमूर नामा व तारीख-ए-अल्फी वाली है।
तुर्की में इसका फारसी अनुवाद खानखाना ने किया जिसकी एक प्रति अकबर
(ii) बाबरनामा
को 1589 में भेंट में मिली इस ग्रंथ में युवा मंसूर के बनाये हुये पशुओं के रेखांकन हैं। इस ग्रंथ के सभी चित्र 1600 के आस-पास के बने हैं। चित्रों में पृष्ठभूमि सरल बनी हुई है।
4. व्यक्ति चित्र (शबीह)
अकबर ने अपनी कई शबीह बनवायीं। उमराओं आदि के भी उसने अनेक व्यक्ति चित्र बनवाये। ‘हम्जानामा’ में देवियों की छवियों को चित्रित करवाया। तारीखे-खानदान-तैमूरिया, जफरनामा, अकबर नामा, बाबरनामा आदि चित्रों में व्यक्ति चित्रों (शबीहो) की भरमार है। ब्राह्म रूप का बारीकी से अंकन, रंगों का सुनहलापन तथा भावपूर्ण चेहरे अकबर-कालीन व्यक्ति चित्रों की विशेषतायें है। स्वयं अकबर ने अपने बाल्यकाल में हेसू का चित्र स्मृति से बनाया था।
5. सामाजिक चित्र
अकबर के काल में चित्रों में अनेक ऐसे चित्र भी हैं, जो उस समय के सामाजिक जीवन की झांकी प्रस्तुत करते हैं। प्याऊ, पनघट, ऋषिमुनियों का जीवन, किसान, गरीबों की झोंपड़ी, उत्सव आदि चित्रों में मुखरित हुए हैं जिससे उस समय के खानपान, सिंचाई व्यवस्था, कृषि-कार्यों, जल व्यवस्था तथा रहन-सहन के स्तर का पता चलता है।
अकबर काल के अन्य चित्रित ग्रंथों में गुलिस्तां, अजायब उल-मखलूकात, तारीखे-रसीदी, जफरनामा, नलदमन, नफाहत-अल-उनस आदि की अनेक सचित्र कृतियाँ बनवायी। अकबर काल में लगभग 20 हजार चित्र बनाये गये।
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- आदिकाल की चित्रकला | Primitive Painting(गुहाओं, कंदराओं, शिलाश्रयों की चित्रकला) (३०,००० ई० पू० से ५० ई० तक) चित्रकला का उद्गम चित्रकला का इतिहास उतना ही …
- राजस्थानी चित्र शैली की विशेषतायें | Rajasthani Painting Styleराजस्थान एक वृहद क्षेत्र है जो “अवोड ऑफ प्रिंसेज” माना जाता है इसके पश्चिम में बीकानेर, दक्षिण में बूँदी, कोटा तथा उदयपुर …
- टीजीटी / पीजीटी कला से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न | Important questions related to TGT/PGT Artsसांझी कला किस पर की जाती है ? उत्तर: (B) भूमि पर ‘चाँद को देखकर भौंकता हुआ कुत्ता’ किस चित्रकार …
- रेखा क्या है | रेखा की परिभाषारखा वो बिन्दुओं या दो सीमाओं के बीच की दूरी है, जो बहुत सूक्ष्म होती है और गति की दिशा निर्देश करती है लेकिन कलापक्ष के अन्तर्गत रेखा का प्रतीकात्मक महत्व है और यह रूप की अभिव्यक्ति व प्रवाह को अंकित करती है।
- बसोहली की चित्रकलाबसोहली की स्थिति बसोहली राज्य के अन्तर्गत ७४ ग्राम थे जो आज जसरौटा जिले की बसोहली तहसील के अन्तर्गत आते …
- अभिव्यंजनावाद | भारतीय अभिव्यंजनावाद | Indian Expressionismयूरोप में बीसवीं शती का एक प्रमुख कला आन्दोलन “अभिव्यंजनावाद” के रूप में 1905-06 के लगभग उदय हुआ । इसका …
- तंजौर शैलीतंजोर के चित्रकारों की शाखा के विषय में ऐसा अनुमान किया जाता है कि यहाँ चित्रकार राजस्थानी राज्यों से आये …
- मैसूर शैलीदक्षिण के एक दूसरे हिन्दू राज्य मैसूर में एक मित्र प्रकार की कला शैली का विकास हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी के …
- पटना शैलीउथल-पुथल के इस अनिश्चित वातावरण में दिल्ली से कुछ मुगल शैली के चित्रकारों के परिवार आश्रय की खोज में भटकते …
- कलकत्ता ग्रुप1940 के लगभग से कलकत्ता में भी पश्चिम से प्रभावित नवीन प्रवृत्तियों का उद्भव हुआ । 1943 में प्रदोष दास …
- Gopal Ghosh Biography | गोपाल घोष (1913-1980)आधुनिक भारतीय कलाकारों में रोमाण्टिक के रूप में प्रतिष्ठित कलाकार गोपाल घोष का जन्म 1913 में कलकत्ता में हुआ था। …
- आधुनिक भारतीय चित्रकला की पृष्ठभूमि | Aadhunik Bharatiya Chitrakala Ki Prshthabhoomiआधुनिक भारतीय चित्रकला का इतिहास एक उलझनपूर्ण किन्तु विकासशील कला का इतिहास है। इसके आरम्भिक सूत्र इस देश के इतिहास तथा भौगोलिक परिस्थितियों …
- काँच पर चित्रण | Glass Paintingअठारहवीं शती उत्तरार्द्ध में पूर्वी देशों की कला में अनेक पश्चिमी प्रभाव आये। यूरोपवासी समुद्री मार्गों से खूब व्यापार कर …
- पट चित्रकला | पटुआ कला क्या हैलोककला के दो रूप है, एक प्रतिदिन के प्रयोग से सम्बन्धित और दूसरा उत्सवों से सम्बन्धित पहले में सरलता है; दूसरे में आलंकारिकता दिखाया तथा शास्त्रीय नियमों के अनुकरण की प्रवृति है। पटुआ कला प्रथम प्रकार की है।
- कम्पनी शैली | पटना शैली | Compony School Paintingsअठारहवी शती के मुगल शैली के चित्रकारों पर उपरोक्त ब्रिटिश चित्रकारों की कला का बहुत प्रभाव पड़ा। उनकी कला में …
- बंगाल का आरम्भिक तैल चित्रण | Early Oil Painting in Bengalअठारहवीं शती में बंगाल में जो तैल चित्रण हुआ उसे “डच बंगाल शैली” कहा जाता है। इससे स्पष्ट है कि …
- कला के क्षेत्र में किये जाने वाले सरकारी प्रयास | Government efforts made by the British in the field of artसन् 1857 की क्रान्ति के असफल हो जाने से अंग्रेजों की शक्ति बढ़ गयी और भारत के अधिकांश भागों पर …
- अवनीन्द्रनाथ ठाकुरआधुनिक भारतीय चित्रकला आन्दोलन के प्रथम वैतालिक श्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म जोडासको नामक स्थान पर सन् 1871 में जन्माष्टमी …
- ठाकुर परिवार | ठाकुर शैली1857 की असफल क्रान्ति के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत में हर प्रकार से अपने शासन को दृढ़ बनाने का प्रयत्न …
- असित कुमार हाल्दार | Asit Kumar Haldarश्री असित कुमार हाल्दार में काव्य तथा चित्रकारी दोनों ललित कलाओं का सुन्दर संयोग मिलता है। श्री हाल्दार का जन्म …
- क्षितीन्द्रनाथ मजुमदार के चित्र | Paintings of Kshitindranath Majumdar1. गंगा का जन्म (शिव)- (कागज, 12 x 18 इंच ) 2. मीराबाई की मृत्यु – ( कागज, 12 x …
- क्षितीन्द्रनाथ मजुमदार | Kshitindranath Majumdarक्षितीन्द्रनाथ मजूमदार का जन्म 1891 ई० में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में निमतीता नामक स्थान पर हुआ था। उनके …
- देवी प्रसाद राय चौधरी | Devi Prasad Raychaudhariदेवी प्रसाद रायचौधुरी का जन्म 1899 ई० में पू० बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में रंगपुर जिले के ताजहाट नामक ग्राम में …
- अब्दुर्रहमान चुगताई (1897-1975) वंश परम्परा से ईरानी और जन्म से भारतीय श्री मुहम्मद अब्दुर्रहमान चुगताई अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के ही एक प्रतिभावान् शिष्य थे …
- हेमन्त मिश्र (1917)असम के चित्रकार हेमन्त मिश्र एक मौन साधक हैं। वे कम बोलते हैं। वेश-भूषा से क्रान्तिकारी लगते है अपने रेखा-चित्रों …
- विनोद बिहारी मुखर्जी | Vinod Bihari Mukherjee Biographyमुखर्जी महाशय (1904-1980) का जन्म बंगाल में बहेला नामक स्थान पर हुआ था। आपकी आरम्भिक शिक्षा स्थानीय पाठशाला में हुई …
- के० वेंकटप्पा | K. Venkatappaआप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के आरम्भिक शिष्यों में से थे। आपके पूर्वज विजयनगर के दरबारी चित्रकार थे विजय नगर के पतन …
- शारदाचरण उकील | Sharadacharan Ukilश्री उकील का जन्म बिक्रमपुर (अब बांगला देश) में हुआ था। आप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रमुख शिष्यों में से थे। …
- मिश्रित यूरोपीय पद्धति के राजस्थानी चित्रकार | Rajasthani Painters of Mixed European Styleइस समय यूरोपीय कला से राजस्थान भी प्रभावित हुआ। 1851 में विलियम कारपेण्टर तथा 1855 में एफ०सी० लेविस ने राजस्थान को प्रभावित …
- रामकिंकर वैज | Ramkinkar Vaijशान्तिनिकेतन में “किकर दा” के नाम से प्रसिद्ध रामकिंकर का जन्म बांकुड़ा के निकट जुग्गीपाड़ा में हुआ था। बाँकुडा में …
- कनु देसाई | Kanu Desai(1907) गुजरात के विख्यात कलाकार कनु देसाई का जन्म – 1907 ई० में हुआ था। आपकी कला शिक्षा शान्ति निकेतन …
- नीरद मजूमदार | Nirad Majumdaarनीरद (अथवा बंगला उच्चारण में नीरोद) को नीरद (1916-1982) चौधरी के नाम से भी लोग जानते हैं। उनकी कला में …
- मनीषी दे | Manishi Deदे जन्मजात चित्रकार थे। एक कलात्मक परिवार में उनका जन्म हुआ था। मनीषी दे का पालन-पोषण रवीन्द्रनाथ ठाकुर की. देख-रेख …
- सुधीर रंजन खास्तगीर | Sudhir Ranjan Khastgirसुधीर रंजन खास्तगीर का जन्म 24 सितम्बर 1907 को कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता श्री सत्यरंजन खास्तगीर छत्ताग्राम (आधुनिक …
- ललित मोहन सेन | Lalit Mohan Senललित मोहन सेन का जन्म 1898 में पश्चिमी बंगाल के नादिया जिले के शान्तिपुर नगर में हुआ था ग्यारह वर्ष …
- नन्दलाल बसु | Nandlal Basuश्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर की शिष्य मण्डली के प्रमुख साधक नन्दलाल बसु थे ये कलाकार और विचारक दोनों थे। उनके व्यक्तित्व …
- रणबीर सिंह बिष्ट | Ranbir Singh Bishtरणबीर सिंह बिष्ट का जन्म लैंसडाउन (गढ़बाल, उ० प्र०) में 1928 ई० में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा गढ़वाल में ही …
- रामगोपाल विजयवर्गीय | Ramgopal Vijayvargiyaपदमश्री रामगोपाल विजयवर्गीय जी का जन्म बालेर ( जिला सवाई माधोपुर) में सन् 1905 में हुआ था। आप महाराजा स्कूल …
- रथीन मित्रा (1926)रथीन मित्रा का जन्म हावड़ा में 26 जुलाई को 1926 में हुआ था। उनकी कला-शिक्षा कलकत्ता कला-विद्यालय में हुई । …
- मध्यकालीन भारत में चित्रकला | Painting in Medieval Indiaदिल्ली में सल्तनत काल की अवधि के दौरान शाही महलों, शयनकक्षों और मसजिदों से भित्ति चित्रों के साक्ष्य मिले हैं। …
- रमेश बाबू कन्नेकांति की पेंटिंग | Eternal Love By Ramesh Babu Kannekantiशिव के चार हाथ शिव की कई शक्तियों को दर्शाते हैं। पिछले दाहिने हाथ में ढोल है, जो ब्रह्मांड के …
- प्रगतिशील कलाकार दल | Progressive Artist Groupकलकत्ता की तुलना में बम्बई नया शहर है किन्तु उसका विकास बहुत अधिक और शीघ्रता से हुआ है। 1911 में …
- आधुनिक काल में चित्रकला18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में, चित्रों में अर्द्ध-पश्चिमी स्थानीय शैली शामिल हुई, जिसे ब्रिटिश निवासियों …
- रमेश बाबू कनेकांति | Painting – A stroke of luck By Ramesh Babu Kannekantiगणेश के हाथी के सिर ने उन्हें पहचानने में आसान बना दिया है। भले ही वह कई विशेषताओं से सम्मानित …
- सतीश गुजराल | Satish Gujral Biographyसतीश गुजराल का जन्म पंजाब में झेलम नामक स्थान पर 1925 ई० में हुआ था। केवल दस वर्ष की आयु …
- पटना चित्रकला | पटना या कम्पनी शैली | Patna School of Paintingऔरंगजेब द्वारा राजदरबार से कला के विस्थापन तथा मुगलों के पतन के बाद विभिन्न कलाकारों ने क्षेत्रीय नवाबों के यहाँ आश्रय …
- रमेश बाबू कन्नेकांति | Painting – Tranquility & harmony By Ramesh Babu Kannekantiयह कला पहाड़ी कलाकृतियों की 18वीं शताब्दी की शैली से प्रेरित है। इस आनंदमय दृश्य में, पार्वती पति भगवान शिव …
- आगोश्तों शोफ्त | Agoston Schofftशोफ्त (1809-1880) हंगेरियन चित्रकार थे। उनके विषय में भारत में बहुत कम जानकारी है। शोफ्त के पितामह जर्मनी में पैदा हुए …
- कालीघाट चित्रकारी | Kalighat Paintingकालीघाट चित्रकला का नाम इसके मूल स्थान कोलकाता में कालीघाट के नाम पर पड़ा है। कालीघाट कोलकाता में काली मंदिर के …
- प्राचीन काल में चित्रकला में प्रयुक्त सामग्री | Material Used in Ancient Artविभिन्न प्रकार के चित्रों में विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया जाता था। साहित्यिक स्रोतों में चित्रशालाओं (आर्ट गैलरी) और शिल्पशास्त्र …
- डेनियल चित्रकार | टामस डेनियल तथा विलियम डेनियल | Thomas Daniels and William Danielsटामस तथा विलियम डेनियल भारत में 1785 से 1794 के मध्य रहे थे। उन्होंने कलकत्ता के शहरी दृश्य, ग्रामीण शिक्षक, …
- मिथिला चित्रकला | मधुबनी कला | Mithila Paintingमिथिला चित्रकला, जिसे मधुबनी लोक कला के रूप में भी जाना जाता है. बिहार के मिथिला क्षेत्र की पारंपरिक कला है। यह गाँव …
- भारतीय चित्रकला | Indian Artपरिचय टेराकोटा पर या इमारतों, घरों, बाजारों और संग्रहालयों की दीवारों पर आपको कई पेंटिंग, बॉल हैंगिंग या चित्रकारी दिख …
- भारत में विदेशी चित्रकार | Foreign Painters in Indiaआधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास के आरम्भ में उन विदेशी चित्रकारों का महत्वपूर्ण योग रहा है जिन्होंने यूरोपीय प्रधानतः ब्रिटिश, …
- सजावटी चित्रकला | Decorative Artsभारतीयों की कलात्मक अभिव्यक्ति केवल कैनवास या कागज पर चित्रकारी करने तक ही सीमित नहीं है। घरों की दीवारों पर …
- बी. प्रभानागपुर में जन्मी बी० प्रभा (1933 ) को बचपन से ही चित्र- रचना का शौक था। सोलह वर्ष की आयु में …
- दत्तात्रेय दामोदर देवलालीकर | Dattatreya Damodar Devlalikar Biographyअपने आरम्भिक जीवन में “दत्तू भैया” के नाम से लोकप्रिय श्री देवलालीकर का जन्म 1894 ई० में हुआ था। वे …
- शैलोज मुखर्जीशैलोज मुखर्जी का जन्म 2 नवम्बर 1907 दन को कलकत्ता में हुआ था। उनकी कला चेतना बचपन से ही मुखर …
- नारायण श्रीधर बेन्द्रे | Narayan Shridhar Bendreबेन्द्रे का जन्म 21 अगस्त 1910 को एक महाराष्ट्रीय मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पूर्वज पूना में रहते …
- रवि वर्मा | Ravi Verma Biographyरवि वर्मा का जन्म केरल के किलिमन्नूर ग्राम में अप्रैल सन् 1848 ई० में हुआ था। यह कोट्टायम से 24 …
- के०सी० एस० पणिक्कर | K.C.S.Panikkarतमिलनाडु प्रदेश की कला काफी पिछड़ी हुई है। मन्दिरों से उसका अभिन्न सम्बन्ध होते हुए भी आधुनिक जीवन पर उसकी …
- भूपेन खक्खर | Bhupen Khakharभूपेन खक्खर का जन्म 10 मार्च 1934 को बम्बई में हुआ था। उनकी माँ के परिवार में कपडे रंगने का …
- बम्बई आर्ट सोसाइटी | Bombay Art Societyभारत में पश्चिमी कला के प्रोत्साहन के लिए अंग्रेजों ने बम्बई में सन् 1888 ई० में एक आर्ट सोसाइटी की …
- परमजीत सिंह | Paramjit Singhपरमजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1935 अमृतसर में हुआ था। आरम्भिक शिक्षा के उपरान्त वे दिल्ली पॉलीटेक्नीक के कला …
- अनुपम सूद | Anupam Soodअनुपम सूद का जन्म होशियारपुर में 1944 में हुआ था। उन्होंने कालेज आफ आर्ट दिल्ली से 1967 में नेशनल डिप्लोमा …
- देवकी नन्दन शर्मा | Devki Nandan Sharmaप्राचीन जयपुर रियासत के राज-कवि के पुत्र श्री देवकी नन्दन शर्मा का जन्म 17 अप्रैल 1917 को अलवर में हुआ …
- ए० रामचन्द्रन | A. Ramachandranरामचन्द्रन का जन्म केरल में हुआ था। वे आकाशवाणी पर गायन के कार्यक्रम में भाग लेते थे। कुछ समय पश्चात् …