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गुफा नं० 9, 10-1, 2-16, 17 के प्रमुख चित्र
अजन्ता में चैत्य और बिहार दोनों प्रकार की 30 गुफायें हैं। इनमें गुफा संख्या 1, 2, 6, 7, 9, 10, 11,15, 16, 17, 19, 20, 21 व 22 में चित्र बने थे। आज केवल गुफा संख्या 1, 2, 9, 10, 16 व 17 चित्रों से मुख्य रूप से सुसज्जित है तथा यहीं अधिकांश चित्र सुरक्षित है।
गुफा संख्या 9 के चित्र
यह भी एक चैत्य-ग्रह है और इसमें भी एक ठोस हरमिक वाला (तीन छतरी के शीर्ष वाला) पाषाण स्तूप बना है। यह चैत्य ईसा से लगभग १०० वर्ष पूर्व निर्मित हुआ था यहाँ के चित्रों के दो स्तर मिलते हैं। इस गुफा में स्तूप-पूजा वाला प्रसिद्ध चित्र है। लगभग सोलह व्यक्तियों का एक समूह स्तूप की ओर बढ़ता अंकित किया गया है।
सभी व्यक्ति द्वार पगड़ी, बेलनाकार तांटक, फलकहार, केयूर, कटक, धोती एवं पटकों से सुसज्जित है। दायीं और के भाग में शंख, शहनाई, और मृदंग बजाते हुए वादक चित्रित है। यह चित्र किसी राजा अपना श्रेष्ठीद्वारा इसको बनाकर संघ को भेंट देने के समारोह की घटना इस चित्र द्वारा प्रस्तुत होती है।
इसी गुफा में भीतरी भाग पर बायी ओर खिड़की के ऊपर पर्वत कन्दरा पर एक वृक्ष की छाँव में दो नाग-पुरुष बैठे हुये चित्रित किये गये है। नाग राजा को प्रजाजन की बातें सुनते हुए दिखाया है। उड़ती हुई अप्सराये चित्र में गति का बोध कराती है, इसी गुफा में पशुओं को खदेड़ते हुये चरवाहे अंकित किये गये हैं। पशुओं की चंचलता तथा तेज गति को चित्रकार ने रेखाओं में सहजता के साथ बांध लिया है।
गुफा संख्या 10 के चित्र
यह एक चैत्य गुफा है, गुफा के पीछे का भाग घोड़े के नाल की तरह गोल है और इसकी गज-पृष्ठाकृति छत में काष्ठ-पंजर लगा हुआ था। गुफा में अन्दर एक ठोस स्तूप है। गुफा की बाह्य- भित्ति पर एक लेख खुदा है जिसके अनुसार यह लेण ( लेनी या गुफा) वासिद्धिपुत कटहादी ने बनवाकर दान की थी।
लिपिविज्ञान के आधार पर यह सिद्ध होता है कि यह चैत्यगृह आन्ध्र-सातवाहन काल में ईसा से प्राय: २०० वर्ष पूर्व बना था। इस गुफा में चित्रण-स्तर दो विभिन्न कालों का है।
पहले वाले में साम जातक व छदन्त जातक के चित्र आते हैं जो गुफा की दाहिनी भित्ति पर बने हैं। बांयी भित्ति पर बोधि वृक्ष व स्तूप की उपासना हेतु जाते राजा तथा उनका दल बना है, यह भी पहले स्तर वाले चित्रों में ही हैं।
स्तूप की उपासना
चित्र में दो स्त्रियों ने अस्थि मंजूषा उठा रक्खी है, एक स्त्री पवित्र जल का कलश उठाये हुए है। सभी के वक्ष स्थल खुले हैं व चेहरों पर अधीरता का भाव है। चित्र का निचला भाग नष्ट हो गया लगता है। सामजातक का कथानक श्रवणकुमार वाली कहानी से मिलता है, लेकिन यहाँ वृद्ध माता-पिता के विलाप को सुनकर एक देवी ने साम को पुनर्जीवित कर दिया।
छदन्त की जातक कथा
इसी गुफा में छदन्त की जातक कथा भी चित्रित है। पूर्वजन्म में एक बार भगवान बुद्ध ने छः दाँतों वाले हाथी के रूप में जन्म लिया था।
छदन्त की दो रानियाँ थीं महा सुभद्रा और क्षुद्र सुभद्रा एक अवसर पर ये तीनों जंगल में प्रसन्नतापूर्वक विचर रहे थे कि यकायक छदन्त का सिर साल के पेड़ से जा टकराया, जिसके फलस्वरूप महा सुभद्रा पर पुष्प तथा क्षुद्र सुभद्रा पर लाल चीटियाँ व सूखी टहनियाँ गिरीं क्षुद्र सुभद्रा ने छन्त से बदला लेने के लिए अगले जन्म में बनारस के राजा की रानी बनने का ईश्वर से वरदान प्राप्त किया।
अगले जन्म में रानी बनने पर उसने सोनुत्तर नाम के शिकारी को छदन्त के दांत लाने के लिए जंगल में भेजा लेकिन सोनुसर के सात वर्षों के निरन्तर प्रयत्नों के बाद भी दाँत प्राप्त नहीं हो सके तब सोनुत्तर का मन्तव्य जानकर तथा अपने दुःख-दर्द की चिन्ता न करके छदन्त ने स्वयं अपने दाँत निकाल कर सोनुत्तर को दे दिये।
दांत लेकर सोनुत्तर जब रानी के समक्ष उपस्थित हुआ तो पूर्वजन्म के पति छदन्त के प्रति रानी का मोह उमड आया और विलाप करते हुए उसने अपने प्राण त्याग दिये।
छदन्त की यह कहानी गुफा सं० १७ में पुनः सफलता के साथ चित्रित की गई है और कहानी के विभिन्न अंशों को एक ही क्रम में अनेक चित्र संयोजनों में दर्शाया गया है। अजन्ता चित्रों में विभिन्न विषय-वस्तु तथा घटनाओं वाली पृथक्-पृथक् चित्रावली में कोई फ्रेम (चोखटा) नहीं बनाया जाता था।
अतः सम्पूर्ण पटना विवरण मित्ति के एक बड़े भाग पर चित्रांकित है। हाथियों के अंकन में अजन्ता के कलाकार सिद्धहस्त मे क्षुद्र सुभद्रा का विलाप वाला चित्रांश संयोजन की परिपक्वता का प्रमाण है। भाव, रेखांकन, रंग लालित्य तथा चित्रोपम-तत्वों के मेल का यह चित्र अनूठा उदाहरण है।
इसी गुफा के स्तम्भों पर बाद वाले काल की बुद्ध की समभंगी आकृतियाँ बनी है। यहाँ दाई ओर के पंचम स्तम्भ पर बुद्ध के चित्र के नीचे एक पाँचवी शती का लेख मिलता है, जिसके आधार पर इन महायानी बुद्ध आकृतियों का समय पांचवी शती भी स्थिर किया जा सकता है।
गुफा संख्या 16 के चित्र
यह गुफा विहार चित्रों से भरपूर है। इसका निर्माण 475 ई० से 500 ई० के मध्य वाकाटक राजा हरिषेण के मन्त्री
यह बिहार चित्रों से भरपूर है। यहाँ प्राप्त लेख के अनुसार इसका निर्माण 475 ई० से 500 ई० के मध्य बाकाटक राजा हरिषेण के मन्त्री वाराह देव ने तपोधन तापसों के निवास हेतु दानस्वरूप किया था। इस काल में भगवान बुद्ध की प्रतिमा का पूर्ण विकास हो चुका था।
इसी से यहाँ एक विशाल प्रलम्बपाद मुद्रा में बुद्ध- मूर्ति बनी है। इस बिहार में बुद्ध के जीवन और जातक कथाओं से सम्बन्धित चौदह चित्र अभी भी सामान्य स्थिति में है।
बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित पटनाओं में मायादेवी का स्वप्न, असित मुनि से वार्तालाप, गौतम का विद्याभ्यास, वैराग्य के निमित्तों का दर्शन, सुजाता की खीर धर्मोपदेश, नन्द की दीक्षा आदि प्रमुखता के साथ चित्रित है। जातकों में मात्र सुतसोम, महा उम्म तथा हस्ति जातक ही चित्रित हैं।
बुद्ध के तुषित स्वर्ग में उपदेश वाले चित्र में बुद्ध को तुषित स्वर्ग से अपने अन्तिम जन्म हेतु अवतरित होते चित्रांकित किया गया है।
हस्तिजातक चित्र
हस्तिजातक वाला चित्र यहाँ बड़ा मनोहारी बना है। अपने किसी पूर्व जन्म में बोधिसत्व ने शक्तिशाली हाथी के रूप में जन्म लिया। वे बियाबान जंगल में अकेले रहते थे। एक दिन जंगल में दर्द भरी आवाज सुनकर हस्ति रुपी बोधिसत्व उस आवाज की दिशा में चल दिया। भूखे-प्यासे यात्रियों को देख उनमें दया उमड़ आई। अतः यात्रियों की भूख मिटाने के लिये उन्होंने स्वयं झील के समीप स्थित एक पहाड़ी से कूद कर मृत्यु का वरण किया इस प्रकार उन यात्रियों ने इनके मांस व झील के पानी से अपनी भूख ध्यास शान्त की।
लेकिन जब यात्रियों ने उस मृत हाथी को पहचाना तो उसके त्याग से अभिभूत हो गए। चित्र में भूखे यात्री दिखाये हैं जो पहाड़ी पर खड़े सफेद हाथी की ओर इंगित कर रहे हैं इसी दृश्य के दूसरे भाग में वह हाथी मरा पड़ा है तथा दो यात्री तेज छुरियों से मांस निकाल रहे हैं तथा कुछ उसे भूनते व खाते दिखाये हैं। कुछ यात्री झील से पानी ला रहे हैं।
इस समय तक धीरे-धीरे बिहारों के निर्माण की विकास योजनाओं में पूजा-अर्चना का भी प्रयोजन जोड़ दिया गया। पुराने विहारों में पृष्ठ-भित्ति में एक गर्भ-गृह खोदकर स्तूप का निर्माण कर दिया जाता था। अब स्तूप की जगह विशाल बुद्ध प्रतिमा का निर्माण किया जाने लगा इसे “चंत्यमन्दिरम्” कहा जाता था।
महाउम्मग्ग जातक चित्र
महाउम्मग्ग जातक चित्र में देवी शक्ति से युक्त महासंघ नाम के बालक द्वारा गम्भीर विवादों का बुद्धिमत्तापूर्वक समाधान करते हुए प्रदर्शित किया गया है। बच्चे की असली माता कौन-सी है? इसके समाधान के लिए जब बच्चे के दो टुकड़े करने का प्रस्ताव रखा गया तब असली माँ बच्चे पर अपना अधिकार छोड़ने के लिए तैयार हो गई।
इसी प्रकार रथ के स्वामित्व का प्रश्न हल किया गया। अपनी बुद्धि का परिचय उन्होंने पुनः दिया जब स्नान करती हुई स्त्री का सूत का गोला एक दूसरी स्त्री द्वारा चुरा लिए जाने पर चोरी का सही पता लगाया गया। यह उन्होंने मात्र यह पूछकर लगाया कि गोला वस्तु पर लपेटा गया था।
नन्द की दीक्षा
नन्द की दीक्षा वाले चित्र करुणभाव का एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। एक बार बुद्ध कपिलवस्तु आये। यशोधरा व राहुल से भेंट करने के बाद अपने मौसेरे भाई नन्द के घर गये बुद्ध नन्द को भी बिहार में से गये तथा उसकी इच्छा के विपरीत मुण्डन करवाकर उसे प्रव्रज्या दे दी।
पुलकित नन्द पत्नी के मोह में ही लीन रहा लेकिन जब भिक्षुओं ने उनकी खिल्ली उड़ाई तो उन्हें सच्चा वैराग्य हो गया तथा नन्द की पत्नी सुन्दरी ने जब नन्द द्वारा परित्यक्तमुकुट देखा तो वह मूर्छित हो अपनी परिचारिकाओं के हाथों में गिर पड़ी।
इस कहानी को एक विस्तृत भिति-खण्ड पर कई टुकड़ों में तैयार किया है। इसी चित्र में अभिव्यक्त नन्दकुमार की मूर्छित पत्नी की मुख मुद्रा को चित्रकार ने कैमरे की भाँति पकड़ लिया है। एक ही चित्र विस्तार में कहानी के सभी अशों का रंग-रेखा में अनुवाद करना एवं रूप-अन्तराल की प्रभावी योजना प्रस्तुत करना अजन्ता कलाकार का यह अनुपम उदाहरण है।
अजातशत्रु व बुद्ध की भेंट
इसी गुफा में अजातशत्रु व बुद्ध की भेंट का भव्य दृश्य अंकित है। अजातशत्रु अपने पिता का वध करने पर बड़ा पीड़ित व अशान्त था। उसके शमनार्थ उसके हृदय में किसी महापुरुष का उपदेश सुनने की इच्छा हुई। राजवैद्य जीवक ने उन्हें अपने आम्रवन (आम का बगीचा) में ठहरे भगवान बुद्ध के दर्शनों के लिये प्रेरित किया चित्र में राजा को जलूस के साथ दिखाया है। जलूस में सुसज्जित हाथी, सिपाही, बाँसुरी व तुरही बादक दिखाये गये हैं। इसी गुफा-मन्दिर में बुद्ध के जीवन की अन्य कई घटनायें भी बड़े ही मार्मिक ढंग से चित्रकार ने संयोजित की हैं।
गुफा संख्या 17 के चित्र
इस गुफा का निर्माण वाकाटक वंश के राजा हरिषेण के एक श्रद्धालु मण्डलाधीश ने करवाया था। इस गुफा में १६वीं गुफा की अपेक्षा कहीं अधिक चित्र बने हैं और सभी चित्र अंकन की उच्चता के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस गुफा में बुद्ध जीवन से सम्बन्धित चित्रों की अपेक्षा जातक कथाओं के चित्र कहीं अधिक है और उनका अधिकांश भाग सुरक्षित है।
इस गुफा में विलासी का पैराग्य, पागल हाथी पर अंकुश, महाकपि का त्याग, हंसों की घबराहट, बेस्सन्तर का दान, कृतघ्न पर करुणा, नरभक्षी सोदास, सरभमिग जातक, मच्छ जातक, मातृ भक्त हस्ति, बन्दर और भैंसा, राक्षसियों का रूप जाल, मांसाहारी की शिक्षा, हंस जातक यशोधरा को भिक्षा (माता-पुत्र) शिकारियों का अंग-भंग, मृग जातक, सिंहलावदान, भगवान बुद जीवन के अनेक चित्र, युगल प्रेमियों के स्फुट-चित्र तथा अलंकरण बने हैं।
मृग जातक चित्र
मृग जातक चित्र में चित्रकार ने चरित्र के एक सर्वोच्च उदाहरण को दर्शकों के सम्मुख प्रस्तुत किया है। एक सुनहरी मृग ने एक कर्जदार व्यापारी को गंगा में आत्महत्या करने से बचाया और व्यापारी से यह भी प्रार्थना की कि इसकी चर्चा वह नगर में न करे।
जब व्यापारी बनारस आया तो उसे पता चला कि सुनहरे मृग का पता बताने पर वहाँ का राजा बहुत धन दे रहा है। लालची व कृतघ्न व्यापारी ने राजा को सुनहरे मृग के निवास स्थल के विषय में बता दिया। जब बनारस के राजा उस मृग का वध करने जंगल में पहुंचे तो मृग ने राजा से कहा कि व्यापारी ने विश्वासघात किया है।
इस पर राजा व्यापारी को दण्ड देने के लिये तैयार हो गया। मृग ने राजा से व्यापारी के लिये दया की याचना की। वह सुनहरी-मूग बोधिसत्व थे।
सिहलावदान
इसी गुफा में सिहलावदान की कथा भी चित्रित हैं। इतालवी चित्र सुरक्षा विशेषज्ञ सिसोनी ने इस चित्र की बहुत प्रशंसा की है। सिंहल सिहक व्यापारी का पुत्र था और वह अपने 500 साथियों के साथ व्यापार हेतु निकला लेकिन मार्ग में समुद्री तूफान में उनका सब कुछ नष्ट हो गया और वे ताम्र द्वीप पर पहुँचे।
वहाँ पर नरभक्षी राक्षसियों ने उन्हें खा डाला सिंहल। बोधिसत्व रूपी सफेद घोड़े के ले जाने के कारण बच गये। अन्त में सिहल ने उस प्रेतिनी को भगा दिया तथा तभी से उस द्वीप का नाम सिंहल द्वीप हो गया।
महाकपि जातक
महाकपि जातक वाले चित्र में बन्दरों की उछल-कूद का सुन्दर चित्रण हुआ है। गंगा के किनारे आम्र-वृक्ष पर बहुत से बन्दर रहते थे। बोधिसत्व रूपी बन्दर के मना करने पर भी एक बन्दर साथी ने आम नदी में गिरा दिया।
वह आम मछुवे के माध्यम से बनारस के राजा को प्राप्त हुआ। आम के सुगन्धित स्वाद से राजा का मन बढ़ा प्रसन्न हुआ। राजा दलबल के साथ आम प्राप्त करने के लिए उस आम्र-वृक्ष के पास आ पहुँचा। बोधिसत्व बन्दर ने सबकी जान बचाने का एक उपाय ढूंढा। वे वृक्ष की अन्तिम टहनी पकड़कर दूसरे वृक्ष की ओर लपके तथा साथी बन्दरों से अपनी पीठ द्वारा बने पुल से उतर के लिए कहा।
इन बन्दरों में पूर्वजन्म का चचेरा भाई (देवदत्त) भी था। उसकी बोधिसत्व से कभी नहीं पटती थी । अतः वह उचित अवसर समझकर बोधिसत्व की पीठ पर कूद पड़ा।
इससे महाकपि बोधिसत्व को गहरे चोट आई। राजा ने दया से वशीभूत होकर उसका उपचार किया। बोधिसत्व राजा को धर्मोपदेश देकर मोक्ष को प्राप्त हो गए।
माता व पुत्र
यशोधरा से भगवान बुद्ध का भिक्षा मांगने वाला चित्र माता व पुत्र नाम से प्रसिद्ध है। चित्र की विषय-वस्तु बड़ी गम्भीर है। बुद्ध आये है यशोधरा के द्वार पर पति या राजा के रूप में नहीं, बल्कि एक भिक्षुक के रूप में।
यशोधरा क्या दे जब उसका स्वामी स्वयं भिखारी बनकर आया है! क्या न दे ! लेकिन क्या शेष है उसके पास उसके अपने मुकुटमणि पति सिद्धार्थ (भगवान बुद्ध) के खो जाने के बाद ! सोना-चाँदी मणि-मानिक, हीरा मोती तो उस जगत्राता के लिये मिट्टी के समान भी मूल्यवान नहीं।
पर हां, है कुछ उसके पास-उसका एक मात्र पुत्र राहुल ! उसे ही वह अपने सर्वस्व की तरह बुद्ध को दे डालती है। चित्रकार ने भगवान बुद्ध के मुख पर व्याप्त आध्यात्मिकता, राहुल के मुख पर अबोधता और यशोधरा के नेत्रों में आत्मा का भाव सही ढंग से उतार दिया है।
विश्व कल्याणकारी भगवान बुद्ध के रूप को बृहद आकार में बनाया गया है। यहाँ कलाकार मे विशाल व लघु रूपों में अद्भुत रग-रेखा का समन्वय किया है। इस गुफा की छत में बहुत ही सुन्दर अलंकरण है।
गुफा संख्या 1 के चित्र
यह गुहा मन्दिर 475-500 के मध्य बना। इस गुफा की एक पाषाण उकेरी में एक मृग मुख से चार मृग-धड़ों को विशेषता के साथ संयोजित किया है। यहां बोधसत्वों के अनेक चित्र मिलते हैं।
इस गुफा के प्रसिद्ध चित्रों में पद्मपाणि बोधिसत्व, मारविजय, शिवि जातक, नागराजा शंखपाल, श्रावस्ती का चमत्कार, महाजनक का वैराग्य, चीटियों के पहाड़ पर साँप की तपस्या, चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय के दरबार में ईरानी राजदूत, बैलों की लड़ाई तथा छतों में कमल व हंसों के अलंकरण व प्रेमी युगलों के अप्रतिम चित्र हैं।
पदमपाणि बोधिसत्व
पदमपाणि बोधिसत्व वाला चित्र बड़ा ही मर्मस्पर्शी और कलात्मक है, चित्र संयोजन में केन्द्रीयता नियम (Law of Centrality) का पालन किया है। बोधिसत्व की विशाल आकृति के चारों ओर आकृतियां बनी है। यशोधरा, बन्दर व वृक्ष आदि का बड़ा सुन्दर अंकन किया है।
प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ राय कृष्णदास जी ने इस चित्र के विषय में लिखा है।
उनकी भावमग्न आँखें जैसे किसी ऊंचाई से देखने के कारण नीचे की ओर झुकी हैं, मानो सारे संसार की व्यथा को देख उसे दूर करने के लिये वे उत्सुक हैं। उनका आकार दूसरीआकृतियों से बड़ा है, जिससे उनकी विशिष्टता का ज्ञान होता है। सर्वोपरि है उनका किंचित भंग जिसको भटूट रेखायें द्रष्टव्य है।
चित्र मार विजय
इस गुफा का एक अन्य संसार प्रसिद्ध चित्र मार विजय है। भगवान बुद्ध सांसारिक दुःखों को दूर कर के लिये भूमि को साक्षी बनाकर (भूमि-स्पर्श मुद्रा)वज्रासन में लीन बैठे थे, लेकिन कामदेव (मार) अपने दलबल के प्रभाव से बुद्ध का मार्ग विचलित करना चाहता था यथार्थ में इस चित्र में भगवान बुद्ध की मनोवैज्ञानिक छवि का दृश्य प्रस्तुत किया गया है।
तथागत (बुद्ध) के चेहरे पर अभय व शान्ति के भाव को, डरावनी आकृतियों तथा सुन्दरियों के चंचल आकर्षण को चित्रकारों ने बड़े ही सहज ढंग से अजन्ता की इस भित्ति पर उतारा है। चित्र संयोजन में केन्द्रीयता के नियम का पालन किया है।
महाजनक का वैराग्य
इसी गुफा में महाजनक को कथा भी चित्रित है। मिथिला राजा महाजनक के अर्थजनक व पोलजनक नाम के दो पुत्र थे। महाजनक की मृत्यु होने पर अर्थजनक राजा हो गया और पोलजनक को सहायक राजा का पद दे दिया गया।
किसी ने अर्थजनक के कान भर दिये कि पोलजनक आपको मारकर राज्य हड़पना चाहता है। दोनों भाइयों में लड़ाई हुई, जिसमें अर्थजनक मारा गया और उसकी पत्नी राज्य छोड़कर नगर में आ गई।
वहीं उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम उसके दादा के नाम पर महाजनक रखा गया। महाजनक ने स्वर्ण भूमि की व्यापार-यात्रा में भारी क्षति उठाई लेकिन यह किसी प्रकार मिथिला वापिस आ गया।
पोलजनक के एक सिवाली नाम की पुत्री थी। पोलजनक ने यह निश्चय किया कि जो व्यक्ति मेरे प्रश्नों का समाधान कर देगा, वही मेरी पुत्री का स्वामी बनेगा। प्रश्न थे—
वर्गाकार पलंग का सिराहना कौन-सा है ?
धनुष की प्रत्यंचा कहाँ है ?
सोलह धनागार कहाँ है ?
महाजनक ने प्रश्नों का समाधान कर दिया और उनका सिवाली से विवाह हो गया। लेकिन महाजनक का मन इस संसार में नहीं रमा और उन्होंने वैराग्य ले लिया। महाजनक पूर्वजन्म के बोधिसत्व थे। इस कथा को अनेक टुकड़ों में बनाया गया है। संयोजन अनूठा बना है।
गुफा संख्या 2 के प्रसिद्ध चित्र
इस गुफा का निर्माण 500-550 ई० के मध्य हुआ। इस गुफा के प्रमुख चित्रों में हंस जातक, विदुर पंडित की कथा, सुनहरे मृग का धर्मोपदेश, दया याचना व बुद्ध जन्म है। इस गुफा में हंस जातक वाले चित्र में इस के रूप में बोधिसत्व बनारस के राजा व रानी को उपदेश दे रहे हैं।
इस गुफा का दया याचना वाला चित्र सर्वोत्कृष्ट रहा है यह चित्र क्षाँतिवादी जातक का ही एक भाग है। क्षाँतिवादी का अर्थ होता है क्षमा का उपेदश देने वाला, इस गुफा के एक अन्य चित्र में एक वृद्ध भिक्षु डंडे के सहारे खड़ा दिखाया गया है जिसकी आँखों में अथाह असहाता अभिव्यक्त हो रही है।
हंस जातक
हंस जातक वाले चित्र में हंस के रूप में बोधिसत्व बनारस के राजा व रानी को धर्मोपदेश दे रहा है। हंस-रूप बोधिसत्व को बनारस की रानी खेमा ने पकड़वा कर मंगवाया था लेकिन बाद में हंस को मुक्त कर दिया। अंतराल-विभक्ति बढ़ी मधुर बनी है।
दया-याचना
इस गुफा का दया-याचना वाला चित्र सर्वोत्कृष्ट कहा जाता है। यह चित्र क्षांतिवादी जातक का ही एक भाग लगता है। क्षांतिवादी का अर्थ होता है क्षमा का उपदेश देने वाला। जातक की कथा के अनुसार एक बार बोधिसत्व ने शांतिवादी नामक संन्यासी के रूप में जन्म लिया।
एक बार इस देश का राजा, रानियों व नर्तकियों के साथ उपवन क्रीड़ा के लिये उस बन में गया जहां क्षांतिवादी का निवास था। राजा के निद्राभूत होने पर सभी सुन्दरियां क्षांतिवादी का उपदेश सुनने चली गई। निद्रा खुलने पर स्वयं को अकेला पाकर राजा ने क्षांतिवादी और नर्तकी के वध की आज्ञा दे दी। चित्र में राजा तलवार लिए नर्तकी को सजा देने जा रहा है। नर्तकी उनके पैरों में पड़ी क्षमा की भीख मांग रही है।
नर्तकी की देह यष्टि में मृत्यु की पदचाप स्पष्ट सुनाई देती है, सम्पूर्ण शरीर की आकृति व रेखा प्रवाह ऐसा बना है जैसे वह स्वयं अपने को भूमि में आत्मसात कर देना चाहती है। आसपास बैठे राज-दरबारी भी राजा के क्रोध से भयभीत है।
लगता है यह राजा और कोई नहीं, अजातशत्रु है जो उस नर्तकी को मृत्यु-दण्ड देने को आतुर तलवार लिये बैठा है। यह नर्तकी भी कोई और नहीं बल्कि यह नतंकी है जो क्षांतिवादी बोधिसत्व का उपदेश सुनने चली गई थी।
विधि की कैसी विडम्बना है कि राजा चित्र में नर्तकी का सिर तो कलम (काट) नहीं कर सका लेकिन समय ने उसका सिर अवश्य उड़ा दिया (चित्र में अजातशत्रु के मुख मण्डल वाले स्थान से भित्ति झड़ गई है)। चित्र में रेखाओं का प्रवाह एक आकृति को दूसरे से जोड़ता है या यूँ कहिये कि दृष्टि क्रम कहीं टूटता नहीं है। धन्य है अजन्ता के कलाकार।
सर्वनाश
एक अन्य चित्र में एक वृद्ध-भिक्षु दंडे के सहारे खड़ा दिखाया गया है, जिसकी आँखों में अग्राह अनुभव-अवसाद असह्यता अभिव्यक्त हो रही है। उसका खुला दाहिना हाथ रिक्तता के भाव को प्रदर्शित कर रहा है। कुछ विद्वानों ने इसे सर्वनाश की सूचना देने वाले किसी राज दूत का चित्र माना है। लेकिन यह मान्यता निराधार है वह तो एक भिक्षुक है और जीवन की निस्सारिता की ओर वहां उपस्थित जनों का ध्यान आकृष्ट करने की चेष्टा कर रहा है।
गुफा सं० १६. व १७ के चित्र जिस प्रकार गुफा १ वं १० से भिन्न है, उसी प्रकार १ व २ के १६ व १७ से भिन्न है। यथार्थ में अजन्ता के कलाकारों ने ज़िंदगी की संजीदगी को सहृदय होकर समझा और परखा है तभी तो वह ऐसे चित्रों की रचना करने में सफल हुए है ।
अजन्ता के विषय में विद्वानों के विचार
“मेरा विचार है कि कला के इतिहास में दुःख एवं भावनाओं तथा कथा के शुद्ध वाचन से परिपूर्ण इस चित्र से बढ़ कर कोई चित्र नहीं हो सकता है। फ्लोरेन्स के कलाकार इससे श्रेष्ठ रेखांकन और वेनिस वाले श्रेष्ठ रंग तो प्रस्तुत कर सकते थे, लेकिन इनमें से कोई भी बेहतर भावाभिव्यक्ति प्रस्तुत नहीं कर सकता था।” –जॉन ग्रिफिघस, केव टेम्पल्स ऑफ अजन्ता
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- मुगल शैली | मुग़ल काल में चित्रकला और वास्तुकला का विकास | Development of painting and architecture during the Mughal periodमुगल चित्रकला को भारत की ही नहीं वरन् एशिया की कला में स्वतन्त्र और महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह शैली ईरान की कला परम्परा से उत्पन्न होकर भी ईरानी शैली नहीं रही। इस पर यूरोपीय तथा चीनी प्रभाव भी पड़े हैं। इस शैली पर भारतीय रंग योजनाओं तथा वातावरण का प्रभाव पड़ा है।
- मौर्य काल में मूर्तिकला और वास्तुकला का विकास ( 325 ई.पू. से 185 ई.पू.) | Development of sculpture and architecture in Maurya periodमौर्यकालीन कला को उच्च स्तर पर ले जाने का श्रेय चन्द्रगुप्त के पौत्र सम्राट अशोक को जाता है। अशोक के समय से भारत में मूर्तिकला का स्वतन्त्र कला के रूप में विकास होता दिखाई देता है।
- पाल शैली | पाल चित्रकला शैली क्या है?नेपाल की चित्रकला में पहले तो पश्चिम भारत की शैली का प्रभाव बना रहा और बाद में उसका स्थान इस नव-निर्मित पूर्वीय शैली ने ले लिया नवम् शताब्दी में जिस नयी शैली का आविर्भाव हुआ था उसके प्रायः सभी चित्रों का सम्बन्ध पाल वंशीय राजाओं से था। अतः इसको पाल शैली के नाम से अभिहित करना अधिक उपयुक्त समझा गया।”
- दक्षिणात्य शैली | दक्षिणी शैली | दक्खिनी चित्र शैली | दक्कन चित्रकला | Deccan Painting Styleदक्खिनी चित्र शैली: परिचय भारतीय चित्रकला के इतिहास की सुदीर्घ …
- संस्कृति तथा कलाकिसी भी देश की संस्कृति उसकी आध्यात्मिक, वैज्ञानिक तथा कलात्मक …
- भारतीय कला संस्कृति एवं सभ्यताकला संस्कृति का यह महत्त्वपूर्ण अंग है जो मानव मन …
- भारतीय चित्रकला की विशेषताएँभारतीय चित्रकला तथा अन्य कलाएँ अन्य देशों की कलाओं से …
- कला अध्ययन के स्रोतकला अध्ययन के स्रोत से अभिप्राय उन साधनों से है …
- आनन्द केण्टिश कुमारस्वामीपुनरुत्थान काल में भारतीय कला के प्रमुख प्रशंसक एवं लेखक …
- भारतीय चित्रकला में नई दिशाएँलगभग 1905 से 1920 तक बंगाल शैली बड़े जोरों से …
- सोमालाल शाह | Somalal Shahआप भी गुजरात के एक प्रसिद्ध चित्रकार हैं आरम्भ में …
- बंगाल स्कूल | भारतीय पुनरुत्थान कालीन कला और उसके प्रमुख चित्रकार | Indian Renaissance Art and its Main Paintersबंगाल में पुनरुत्थान 19 वीं शती के अन्त में अंग्रजों …
- तैयब मेहतातैयब मेहता का जन्म 1926 में गुजरात में कपाडवंज नामक …
- कृष्ण रेड्डी ग्राफिक चित्रकार कृष्ण रेड्डी का जन्म (1925 ) दक्षिण भारत …
- लक्ष्मण पैलक्ष्मण पै का जन्म (1926 ) गोवा के एक सारस्वत …
- आदिकाल की चित्रकला | Primitive Painting(गुहाओं, कंदराओं, शिलाश्रयों की चित्रकला) (३०,००० ई० पू० से ५० …
- राजस्थानी चित्र शैली की विशेषतायें | Rajasthani Painting Styleराजस्थान एक वृहद क्षेत्र है जो “अवोड ऑफ प्रिंसेज” माना जाता है …
- टीजीटी / पीजीटी कला से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न | Important questions related to TGT/PGT Artsसांझी कला किस पर की जाती है ? उत्तर: (B) …
- रेखा क्या है | रेखा की परिभाषारखा वो बिन्दुओं या दो सीमाओं के बीच की दूरी है, जो बहुत सूक्ष्म होती है और गति की दिशा निर्देश करती है लेकिन कलापक्ष के अन्तर्गत रेखा का प्रतीकात्मक महत्व है और यह रूप की अभिव्यक्ति व प्रवाह को अंकित करती है।
- बसोहली की चित्रकलाबसोहली की स्थिति बसोहली राज्य के अन्तर्गत ७४ ग्राम थे …
- अभिव्यंजनावाद | भारतीय अभिव्यंजनावाद | Indian Expressionismयूरोप में बीसवीं शती का एक प्रमुख कला आन्दोलन “अभिव्यंजनावाद” …
- तंजौर शैलीतंजोर के चित्रकारों की शाखा के विषय में ऐसा अनुमान …
- मैसूर शैलीदक्षिण के एक दूसरे हिन्दू राज्य मैसूर में एक मित्र …
- पटना शैलीउथल-पुथल के इस अनिश्चित वातावरण में दिल्ली से कुछ मुगल …
- कलकत्ता ग्रुप1940 के लगभग से कलकत्ता में भी पश्चिम से प्रभावित …
- Gopal Ghosh Biography | गोपाल घोष (1913-1980)आधुनिक भारतीय कलाकारों में रोमाण्टिक के रूप में प्रतिष्ठित कलाकार …
- आधुनिक भारतीय चित्रकला की पृष्ठभूमि | Aadhunik Bharatiya Chitrakala Ki Prshthabhoomiआधुनिक भारतीय चित्रकला का इतिहास एक उलझनपूर्ण किन्तु विकासशील कला का इतिहास है। …
- काँच पर चित्रण | Glass Paintingअठारहवीं शती उत्तरार्द्ध में पूर्वी देशों की कला में अनेक …
- पट चित्रकला | पटुआ कला क्या हैलोककला के दो रूप है, एक प्रतिदिन के प्रयोग से सम्बन्धित और दूसरा उत्सवों से सम्बन्धित पहले में सरलता है; दूसरे में आलंकारिकता दिखाया तथा शास्त्रीय नियमों के अनुकरण की प्रवृति है। पटुआ कला प्रथम प्रकार की है।
- कम्पनी शैली | पटना शैली | Compony School Paintingsअठारहवी शती के मुगल शैली के चित्रकारों पर उपरोक्त ब्रिटिश …
- बंगाल का आरम्भिक तैल चित्रण | Early Oil Painting in Bengalअठारहवीं शती में बंगाल में जो तैल चित्रण हुआ उसे …
- कला के क्षेत्र में किये जाने वाले सरकारी प्रयास | Government efforts made by the British in the field of artसन् 1857 की क्रान्ति के असफल हो जाने से अंग्रेजों …
- अवनीन्द्रनाथ ठाकुरआधुनिक भारतीय चित्रकला आन्दोलन के प्रथम वैतालिक श्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर …
- ठाकुर परिवार | ठाकुर शैली1857 की असफल क्रान्ति के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत में …
- असित कुमार हाल्दार | Asit Kumar Haldarश्री असित कुमार हाल्दार में काव्य तथा चित्रकारी दोनों ललित …
- क्षितीन्द्रनाथ मजुमदार के चित्र | Paintings of Kshitindranath Majumdar1. गंगा का जन्म (शिव)- (कागज, 12 x 18 इंच …
- क्षितीन्द्रनाथ मजुमदार | Kshitindranath Majumdarक्षितीन्द्रनाथ मजूमदार का जन्म 1891 ई० में पश्चिम बंगाल के …
- देवी प्रसाद राय चौधरी | Devi Prasad Raychaudhariदेवी प्रसाद रायचौधुरी का जन्म 1899 ई० में पू० बंगाल …
- अब्दुर्रहमान चुगताई (1897-1975) वंश परम्परा से ईरानी और जन्म से भारतीय श्री मुहम्मद …
- हेमन्त मिश्र (1917)असम के चित्रकार हेमन्त मिश्र एक मौन साधक हैं। वे …
- विनोद बिहारी मुखर्जी | Vinod Bihari Mukherjee Biographyमुखर्जी महाशय (1904-1980) का जन्म बंगाल में बहेला नामक स्थान …
- के० वेंकटप्पा | K. Venkatappaआप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के आरम्भिक शिष्यों में से थे। आपके …
- शारदाचरण उकील | Sharadacharan Ukilश्री उकील का जन्म बिक्रमपुर (अब बांगला देश) में हुआ …
- मिश्रित यूरोपीय पद्धति के राजस्थानी चित्रकार | Rajasthani Painters of Mixed European Styleइस समय यूरोपीय कला से राजस्थान भी प्रभावित हुआ। 1851 में विलियम …
- रामकिंकर वैज | Ramkinkar Vaijशान्तिनिकेतन में “किकर दा” के नाम से प्रसिद्ध रामकिंकर का …
- कनु देसाई | Kanu Desai(1907) गुजरात के विख्यात कलाकार कनु देसाई का जन्म – …
- नीरद मजूमदार | Nirad Majumdaarनीरद (अथवा बंगला उच्चारण में नीरोद) को नीरद (1916-1982) चौधरी …
- मनीषी दे | Manishi Deदे जन्मजात चित्रकार थे। एक कलात्मक परिवार में उनका जन्म …
- सुधीर रंजन खास्तगीर | Sudhir Ranjan Khastgirसुधीर रंजन खास्तगीर का जन्म 24 सितम्बर 1907 को कलकत्ता …
- ललित मोहन सेन | Lalit Mohan Senललित मोहन सेन का जन्म 1898 में पश्चिमी बंगाल के …
- नन्दलाल बसु | Nandlal Basuश्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर की शिष्य मण्डली के प्रमुख साधक नन्दलाल …
- रणबीर सिंह बिष्ट | Ranbir Singh Bishtरणबीर सिंह बिष्ट का जन्म लैंसडाउन (गढ़बाल, उ० प्र०) में …
- रामगोपाल विजयवर्गीय | Ramgopal Vijayvargiyaपदमश्री रामगोपाल विजयवर्गीय जी का जन्म बालेर ( जिला सवाई …
- रथीन मित्रा (1926)रथीन मित्रा का जन्म हावड़ा में 26 जुलाई को 1926 …
- मध्यकालीन भारत में चित्रकला | Painting in Medieval Indiaदिल्ली में सल्तनत काल की अवधि के दौरान शाही महलों, …
- रमेश बाबू कन्नेकांति की पेंटिंग | Eternal Love By Ramesh Babu Kannekantiशिव के चार हाथ शिव की कई शक्तियों को दर्शाते …
- प्रगतिशील कलाकार दल | Progressive Artist Groupकलकत्ता की तुलना में बम्बई नया शहर है किन्तु उसका …
- आधुनिक काल में चित्रकला18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में, …
- रमेश बाबू कनेकांति | Painting – A stroke of luck By Ramesh Babu Kannekantiगणेश के हाथी के सिर ने उन्हें पहचानने में आसान …
- सतीश गुजराल | Satish Gujral Biographyसतीश गुजराल का जन्म पंजाब में झेलम नामक स्थान पर …
- पटना चित्रकला | पटना या कम्पनी शैली | Patna School of Paintingऔरंगजेब द्वारा राजदरबार से कला के विस्थापन तथा मुगलों के पतन …
- रमेश बाबू कन्नेकांति | Painting – Tranquility & harmony By Ramesh Babu Kannekantiयह कला पहाड़ी कलाकृतियों की 18वीं शताब्दी की शैली से …
- आगोश्तों शोफ्त | Agoston Schofftशोफ्त (1809-1880) हंगेरियन चित्रकार थे। उनके विषय में भारत में बहुत …
- कालीघाट चित्रकारी | Kalighat Paintingकालीघाट चित्रकला का नाम इसके मूल स्थान कोलकाता में कालीघाट के …
- प्राचीन काल में चित्रकला में प्रयुक्त सामग्री | Material Used in Ancient Artविभिन्न प्रकार के चित्रों में विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया …
- डेनियल चित्रकार | टामस डेनियल तथा विलियम डेनियल | Thomas Daniels and William Danielsटामस तथा विलियम डेनियल भारत में 1785 से 1794 के …
- मिथिला चित्रकला | मधुबनी कला | Mithila Paintingमिथिला चित्रकला, जिसे मधुबनी लोक कला के रूप में भी जाना जाता है. …
- भारतीय चित्रकला | Indian Artपरिचय टेराकोटा पर या इमारतों, घरों, बाजारों और संग्रहालयों की …
- भारत में विदेशी चित्रकार | Foreign Painters in Indiaआधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास के आरम्भ में उन विदेशी …
- सजावटी चित्रकला | Decorative Artsभारतीयों की कलात्मक अभिव्यक्ति केवल कैनवास या कागज पर चित्रकारी …
- बी. प्रभानागपुर में जन्मी बी० प्रभा (1933 ) को बचपन से ही …
- दत्तात्रेय दामोदर देवलालीकर | Dattatreya Damodar Devlalikar Biographyअपने आरम्भिक जीवन में “दत्तू भैया” के नाम से लोकप्रिय …
- शैलोज मुखर्जीशैलोज मुखर्जी का जन्म 2 नवम्बर 1907 दन को कलकत्ता …
- नारायण श्रीधर बेन्द्रे | Narayan Shridhar Bendreबेन्द्रे का जन्म 21 अगस्त 1910 को एक महाराष्ट्रीय मध्यवर्गीय …
- रवि वर्मा | Ravi Verma Biographyरवि वर्मा का जन्म केरल के किलिमन्नूर ग्राम में अप्रैल …
- के०सी० एस० पणिक्कर | K.C.S.Panikkarतमिलनाडु प्रदेश की कला काफी पिछड़ी हुई है। मन्दिरों से …
- भूपेन खक्खर | Bhupen Khakharभूपेन खक्खर का जन्म 10 मार्च 1934 को बम्बई में …
- बम्बई आर्ट सोसाइटी | Bombay Art Societyभारत में पश्चिमी कला के प्रोत्साहन के लिए अंग्रेजों ने …
- परमजीत सिंह | Paramjit Singhपरमजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1935 अमृतसर में हुआ …
- अनुपम सूद | Anupam Soodअनुपम सूद का जन्म होशियारपुर में 1944 में हुआ था। …
- देवकी नन्दन शर्मा | Devki Nandan Sharmaप्राचीन जयपुर रियासत के राज-कवि के पुत्र श्री देवकी नन्दन …
- ए० रामचन्द्रन | A. Ramachandranरामचन्द्रन का जन्म केरल में हुआ था। वे आकाशवाणी पर …