शान्ति दवे | Shanti Dave

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शान्ति दवे का जन्म अहमदाबाद में 1931 में हुआ था। वे बड़ौदा विश्वविद्यालय के 1956 के प्रथम बैच के छात्र हैं। उनका आरम्भिक कार्य लघु चित्रों पर आधारित रहा है जिसमें घनवादी विकृति का भी कुछ अंश है। 

सम्पूर्ण रचनाएं आलंकारिक अधिक रही हैं। सम्भवतः बचपन के ग्रामीण परिवेश के प्रभाव के कारण उन्होंने अपने चित्रों में वैसा ही वातावरण अंकित करने का प्रयत्न किया है। किन्तु इनमें रोमाण्टिक भावना नहीं दिखाई देती। 

ग्रामीण विषयों जैसे पनघट, बैलगाड़ी, मछुए, किसान आदि की आकृतियों तथा झोंपड़ी, खेत आदि की पृष्ठभूमि, अलंकृत रंग-बिरंगे परिधान आदि सपाट रंगों में गहरी सीमा रेखा के साथ अत्यन्त संवेदनशील रूप में अंकित किये गये हैं। 

लम्बी आकृतियों और धनवादी तकनीक से प्रभावित विकृतियों में एक सहज सौन्दर्य उभर कर आया है जिसमें कृत्रिमता का आभास नहीं होता। चित्रों का प्रभाव मणिकुट्टिम जैसा लगता है।

1959 से दवे ने अपने चित्रों में विभिन्न सामग्री एवं तकनीक का प्रयोग आरम्भ किया पारदर्शी रंगतों, गाढ़े लेप के समान लगाये गये रंगों, चित्रित धरातल को कहीं कहीं किसी नुकीली वस्तु से खुरचने के अतिरिक्त उन्होंने बालू तथा घिसे हुए चिपटे पत्थरों के टुकड़ों (Pebbles) को भी धरातलीय प्रभावों की भिन्नता तथा प्रचुरता की दृष्टि से लगाना आरम्भ कर दिया। 

पर जब उन्होंने यह अनुभव किया कि केनवास पर केवल रंगों से ही कार्य करना चाहिए, उन्होंने इस बाहरी सामग्री का प्रयोग छोड़ दिया। गाड़े रंग के लिये उन्होंने मोम का प्रयोग आरम्भ कर दिया। इससे वे चित्र को उभरी हुई नक्काशी की भाँति बनाने में सफल हुए ।

दवे ने चित्रों में से कहानी को बिल्कुल निकाल दिया और चित्र के डिजाइन को केही प्रमुख महत्व दिया। 

अतः चित्र के धरातल का अत्यन्त कुशलतापूर्ण विभाजन और आकृतियों के अनुपातों तथा रंगों का संयोजन आदि बहुत विचारपूर्वक किया जाने लगा। 

चित्र के धरातल पर रंग कहीं-कहीं एक इंच तक उभरा हुआ या आगे को निकला हुआ है। इसके सन्तुलन तथा विरोध में चित्र के बड़े-बड़े क्षेत्र पारदर्शी रंगों में बनाये गये हैं। 

इससे उन्होंने एक विशेष प्रकार के भ्रम उत्पन्न कर दिये हैं। कहीं-कहीं उभरे हुए धरातल सामान्य प्रतीत होते हैं और उनके निकट के तल गहरे या गड्डेदार होने का अभास देते हैं। 

चित्र में रंगों के द्वारा दिया गया विस्तार या दूरी का प्रभाव इस भ्रम को और भी बढा देता है। रंगों के द्वारा धरातलीय प्रभाव पहले की ही भाँति उत्पन्न करते हैं, यद्यपि अब उनके रंगों के बलों में अधिक सूक्ष्मता आ गयी है। 

उनके कुछ नये चित्रों में सपाट रंग के धरातल शान्त सागर जैसे तथा गाढ़े रंग के धब्बे भवनों के समूह जैसे प्रतीत होते हैं। यह गाढ़ा रंग इकसार न लगाया जाकर कुछ खुरदरापन लिये लगाया गया है जो भवनों के भग्नावशेषों जैसा लगता है और चित्रों में एक रहस्यमय तथा कालातीत अनुभूति कराता है।

शान्ति दवे अपने निजी तकनीक और रंग-व्यवहार के कारण अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। उनकी रचना-प्रक्रिया एवं तकनीक श्रम-साध्य हैं। अमूर्त भाषा से जुड़े उनके चित्र नये प्रयोगों के कारण प्रभावित करते हैं। 

नये कलाकारों में वे सबसे अधिक सफल हुए हैं। उन्होंने ललित कला अकादमी के तीन तथा तोक्यो द्विवार्षिकी के अतिरिक्त अनेक पुरस्कार तथा सम्मान प्राप्त किये हैं। एयर इण्डिया तथा अन्य कई प्रमुख संस्थाओं के लिये उन्होंने सुन्दर भित्ति चित्र भी अंकित किये हैं। 

1985 में शान्ति दवे को भारत सरकार द्वारा “पद्मश्री” से विभूषित किया गया है। श्री दवे बड़ौदा ग्रुप आफ आर्टिस्ट्स के संस्थापक सदस्य हैं। 

उन्होंने भारत के अतिरिक्त मनीला, स्विटज़रलैण्ड, जर्मनी, मिस्र, इटली, पेरिस, न्यूयार्क, लन्दन, ब्राजील, जापान, काबुल, वाशिंगटन, ओहियो तथा लास एंजिल्स आदि में प्रदर्शनियाँ की हैं।

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    1857 की असफल क्रान्ति के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत में हर प्रकार से अपने शासन को दृढ़ बनाने का प्रयत्न किया, किन्तु बीसवीं शती के आरम्भ … Read more
  • अवनीन्द्रनाथ ठाकुर
    आधुनिक भारतीय चित्रकला आन्दोलन के प्रथम वैतालिक श्री अवनीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म जोडासको नामक स्थान पर सन् 1871 में जन्माष्टमी के दिन हुआ था। आपका पूरा … Read more
  • कला के क्षेत्र में किये जाने वाले सरकारी प्रयास | Government efforts made by the British in the field of art
    सन् 1857 की क्रान्ति के असफल हो जाने से अंग्रेजों की शक्ति बढ़ गयी और भारत के अधिकांश भागों पर ब्रिटिश शासन थोप दिया गया। भारत … Read more
  • बंगाल का आरम्भिक तैल चित्रण | Early Oil Painting in Bengal
    अठारहवीं शती में बंगाल में जो तैल चित्रण हुआ उसे “डच बंगाल शैली” कहा जाता है। इससे स्पष्ट है कि यह माध् यम डच कलाकारों से … Read more
  • कम्पनी शैली | पटना शैली | Compony School Paintings
    अठारहवी शती के मुगल शैली के चित्रकारों पर उपरोक्त ब्रिटिश चित्रकारों की कला का बहुत प्रभाव पड़ा। उनकी कला में यूरोपीय तत्वों का बहुत अधिक मिश्रण हो … Read more
  • पट चित्रकला | पटुआ कला क्या है
    लोककला के दो रूप है, एक प्रतिदिन के प्रयोग से सम्बन्धित और दूसरा उत्सवों से सम्बन्धित पहले में सरलता है; दूसरे में आलंकारिकता दिखाया तथा शास्त्रीय नियमों के अनुकरण की प्रवृति है। पटुआ कला प्रथम प्रकार की है।
  • काँच पर चित्रण | Glass Painting
    अठारहवीं शती उत्तरार्द्ध में पूर्वी देशों की कला में अनेक पश्चिमी प्रभाव आये। यूरोपवासी समुद्री मार्गों से खूब व्यापार कर रहे थे। डचों, पुर्तगालियों, फ्रांसीसियों तथा … Read more
  • आधुनिक भारतीय चित्रकला की पृष्ठभूमि | Aadhunik Bharatiya Chitrakala Ki Prshthabhoomi
    आधुनिक भारतीय चित्रकला का इतिहास एक उलझनपूर्ण किन्तु विकासशील कला का इतिहास है। इसके आरम्भिक सूत्र इस देश के इतिहास तथा भौगोलिक परिस्थितियों से जुड़े हुए हैं। विस्तारवादी, साम्राज्यवादी, … Read more
  • Gopal Ghosh Biography | गोपाल घोष (1913-1980)
    आधुनिक भारतीय कलाकारों में रोमाण्टिक के रूप में प्रतिष्ठित कलाकार गोपाल घोष का जन्म 1913 में कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता स्वयं एक अच्छे कलाकार … Read more
  • कलकत्ता ग्रुप
    1940 के लगभग से कलकत्ता में भी पश्चिम से प्रभावित नवीन प्रवृत्तियों का उद्भव हुआ । 1943 में प्रदोष दास गुप्ता के प्रयत्नों से कलाकारों के … Read more
  • पटना शैली
    उथल-पुथल के इस अनिश्चित वातावरण में दिल्ली से कुछ मुगल शैली के चित्रकारों के परिवार आश्रय की खोज में भटकते हुए पटना (बिहार) तथा कलकत्ता (बंगाल) … Read more
  • मैसूर शैली
    दक्षिण के एक दूसरे हिन्दू राज्य मैसूर में एक मित्र प्रकार की कला शैली का विकास हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मैसूर की चित्रकला राजा … Read more
  • तंजौर शैली
    तंजोर के चित्रकारों की शाखा के विषय में ऐसा अनुमान किया जाता है कि यहाँ चित्रकार राजस्थानी राज्यों से आये इन चित्रकारों को राजा सारभोजी ने … Read more
  • अभिव्यंजनावाद | भारतीय अभिव्यंजनावाद | Indian Expressionism
    यूरोप में बीसवीं शती का एक प्रमुख कला आन्दोलन “अभिव्यंजनावाद” के रूप में 1905-06 के लगभग उदय हुआ । इसका प्रधान प्रयोक्ता जर्मन कलाकार एडवर्ड मुंक … Read more
  • बसोहली की चित्रकला
    बसोहली की स्थिति बसोहली राज्य के अन्तर्गत ७४ ग्राम थे जो आज जसरौटा जिले की बसोहली तहसील के अन्तर्गत आते हैं। जसरीटा जिला जम्मू की सीमा … Read more
  • रेखा क्या है | रेखा की परिभाषा
    रखा वो बिन्दुओं या दो सीमाओं के बीच की दूरी है, जो बहुत सूक्ष्म होती है और गति की दिशा निर्देश करती है लेकिन कलापक्ष के अन्तर्गत रेखा का प्रतीकात्मक महत्व है और यह रूप की अभिव्यक्ति व प्रवाह को अंकित करती है।
  • टीजीटी / पीजीटी कला से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न | Important questions related to TGT/PGT Arts
    सांझी कला किस पर की जाती है ? उत्तर: (B) भूमि पर ‘चाँद को देखकर भौंकता हुआ कुत्ता’ किस चित्रकार की कृति है ? उत्तर: (C) … Read more
  • राजस्थानी चित्र शैली की विशेषतायें  | Rajasthani Painting Style
    राजस्थान एक वृहद क्षेत्र है जो “अवोड ऑफ प्रिंसेज” माना जाता है इसके पश्चिम में बीकानेर, दक्षिण में बूँदी, कोटा तथा उदयपुर उत्तर में जयपुर तथा मध्य में … Read more

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