गुलाम रसूल सन्तोष का जन्म श्रीनगर (कश्मीर) में 19 जून 1929 ई० को हुआ था। इनके पिता पुलिस विभाग में थे। इन्हें बचपन से ही चित्रकला में रूचि थी और ये स्थानीय प्रसिद्ध व्यक्तियों के चित्रों की नकल किया करते थे दस वर्ष की आयु में इन्होंने अपना पहला प्राकृतिक दृश्य-चित्र बनाया था जो एक कला शिक्षक के चित्र की अनुकृति था।
पन्द्रह वर्ष की आयु में मैट्रिक के उपरान्त गुलाम रसूल ने पढ़ाई छोड़ दी और साइनबोर्ड तथा दीवारें चित्रित करने लगे। इसके लगभग दो-ढाई वर्ष बाद वे 1947 में बम्बई के चित्रकार सैयद हैदर रजा के सम्पर्क में आये जो उन दिनों कश्मीर में थे।
जिस प्रकार बम्बई में 1948 में प्रगतिशील कलाकारों का ग्रुप बना था उसी प्रकार रजा तथा हरि अम्बादास गाडे ने 1950 में कश्मीरी कलाकारों का प्रगतिशील ग्रुप बनाया।
1953 में गुलाम रसूल का एक हिन्दू लड़की से प्रेम हो गया किन्तु उसका अन्यत्र विवाह हो जाने से इन्हें बहुत निराशा हुई इस घटना का इन्हें इतना गहरा आघात लगा कि वे दृश्य-चित्रण छोड़ कर आकृति-चित्रण करने लगे।
1954 ई० में इन्हें भारत सरकार की एक छात्रवृत्ति मिली और ये एन० एस० बेन्द्रे के निर्देशन में बड़ौदा में चित्रकला की शिक्षा प्राप्त करने चले गये। वहाँ इन्होंने पहले घनवादी प्रयोग किये तथा तैल माध्यम का गम्भीर अध्ययन किया।
साथ ही जल-रंगों में भी चित्रण करते रहे। 1957, 64 तथा 73 में इन्हें ललित कला अकादमी का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तथा 1975 में “पद्मश्री” से विभूषित किया गया।
1960 के आस-पास सन्तोष ने जो प्रदर्शनी की उसमें खड़ी अथवा लेटी हुई अनावृत्ताओं के तथा लगभग अमूर्त संयोजनों में ग्रामीण दृश्यों एवं जीवन के चित्र थे जिनमें घनवाद तथा अभिव्यंजनावाद का समन्वय तथा अर्द्ध-अमूर्तता की ओर कुछ झुकाव है।
आकृतियों में विकृति होते हुए भी उनके पैटर्न समझ में आ जाते हैं। चित्रों में रंगों की रंगत कम करके लगाई गयी है जिसका निश्चित उद्देश्य भी रहा है, रेखांकन अत्यन्त शुद्ध है। कुछ प्रतीकता होते हुए भी समस्त कृतियाँसम्प्रेषणीय हैं।
रंग-संगतियाँ संवेदनपूर्ण हैं। लयात्मक गति है। घनवाद के उपरान्त ये प्रवाहपूर्ण रेखाओं में चित्रांकन करने लगे। धीरे-धीरे इनकी कला में से रूप अदृष्य होने लगे और सम्पूर्ण चित्र का दृश्य महत्वपूर्ण हो गया।
धीरे-धीरे इन्होंने आकृति तथा पृष्ठ- भूमि के दृश्य को छोड़ दिया और उसके केवल तात्विक साररूप-चिन्हों को ही रहने दिया। इस प्रकार ये अमूर्त शैली की ओर प्रवृत्त हुए और उसी में प्रयोग करने लगे तथा इसी के सहारे मनकी गहराइयों में प्रवेश करने का प्रयत्न किया।
ये रेखा, रंग और अमूर्त रूप के द्वारा किसी मनः स्थिति (मूड) को प्रत्यक्ष करने का प्रयत्न करते हैं। चित्र का तल सपाट होते हुए भी एक प्रकार की तरलता का अनुभव होता है।
केनवास पर एक विस्तृत क्षेत्र की अनुभूति होती है जिसमें से अमूर्त जैसे कुछ रूप प्रकट होते हैं।
ये रूप प्रकाश अन्धकार की क्रीड़ा तथा रंगों के द्वारा सम्मोहक प्रभाव उत्पन्न करते हैं और चित्र में एक गम्भीर रहस्य की अनुभूति होती है जिसका विश्लेषण करना कठिन है मानों मन के किसी ज्वालामुखी में से वृत्त, त्रिभुज, आयत, अर्द्धवृत्त और अन्य अनेक ज्यामितीय रूप निकल कर बाहर आ रहे हों और किसी अज्ञात स्रोत से आने वाले प्रकाश में चमक रहे हों।
चित्र देखने से मनमें एक विचित्र अनजाना-सा आवेश उभरता है और फिर लीन हो जाता है मन की गहराइयों में इस कला का कोई विचार, कोई रूप बाहरी दुनियाँ के नित्य प्रति के अनुभवों से कहीं भी सम्बन्धित नहीं है।
फिर भी इन चित्रों में गुलाम रसूल के जन्म स्थान कश्मीर का प्रभाव हिमालय के नीले, भूरे बादामी तथा श्वेत रंगों में देखा जा सकता है।
पर्वतों, ऊँचे वृक्षों और विस्तृत आकाश आदि की अनुभूति इनके मन में निरन्तर बनी रही है और यह इनकी कला को किसी-न-किसी रूप में प्रभावित करती रही है।
हल्के नीले भूरे और श्वेत रंगों के सीमित प्रयोग के साथ ही उन्होंने पहले टेक्सचर का कोई खास ध्यान नहीं रखा था, पर बाद में इनके चित्रों में यह बहुत महत्वपूर्ण हो गया है।
ये चित्रों को अधिक-से-अधिक व्यंजक बनाने का प्रयत्न करने और तेल- रंगों में पिघला हुआ मोम मिलाकर लगाने लगे इससे चित्रों में बहुत चमक आ गयी है। चित्र में चारों ओर का विस्तार अन्धकारपूर्ण अन्तरिक्ष का आभास देता है।
उसी में गोलाई अथवा कोणीयता लिए अनेक आकार प्रकाशित होकर प्रकट होते हैं। गुलाम रसूल सन्तोष को तान्त्रिक कलाकारों में गिना जाता है क्योंकि इनके चित्रों में अंकित रूप प्राचीन तान्त्रिक ज्यामितीय रूपों और संयोजनों से मिलते-जुलते हैं।
ये चित्रों में कुछ प्रकट तथा कुछ रहस्य में लीन होते-से आभासित होते हैं। 10 मार्च 1997 की 68 वर्ष की आयु में इनका दिल्ली में निधन हो गया।
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- कम्पनी शैली | पटना शैली | Compony School Paintingsअठारहवी शती के मुगल शैली के चित्रकारों पर उपरोक्त ब्रिटिश चित्रकारों की कला का बहुत प्रभाव पड़ा। उनकी कला में यूरोपीय तत्वों का बहुत अधिक मिश्रण … Read more
- पट चित्रकला | पटुआ कला क्या हैलोककला के दो रूप है, एक प्रतिदिन के प्रयोग से सम्बन्धित और दूसरा उत्सवों से सम्बन्धित पहले में सरलता है; दूसरे में आलंकारिकता दिखाया तथा शास्त्रीय नियमों के अनुकरण की प्रवृति है। पटुआ कला प्रथम प्रकार की है।
- काँच पर चित्रण | Glass Paintingअठारहवीं शती उत्तरार्द्ध में पूर्वी देशों की कला में अनेक पश्चिमी प्रभाव आये। यूरोपवासी समुद्री मार्गों से खूब व्यापार कर रहे थे। डचों, पुर्तगालियों, फ्रांसीसियों … Read more
- आधुनिक भारतीय चित्रकला की पृष्ठभूमि | Aadhunik Bharatiya Chitrakala Ki Prshthabhoomiआधुनिक भारतीय चित्रकला का इतिहास एक उलझनपूर्ण किन्तु विकासशील कला का इतिहास है। इसके आरम्भिक सूत्र इस देश के इतिहास तथा भौगोलिक परिस्थितियों से जुड़े हुए हैं। विस्तारवादी, … Read more
- Gopal Ghosh Biography | गोपाल घोष (1913-1980)आधुनिक भारतीय कलाकारों में रोमाण्टिक के रूप में प्रतिष्ठित कलाकार गोपाल घोष का जन्म 1913 में कलकत्ता में हुआ था। उनके पिता स्वयं एक अच्छे … Read more
- कलकत्ता ग्रुप1940 के लगभग से कलकत्ता में भी पश्चिम से प्रभावित नवीन प्रवृत्तियों का उद्भव हुआ । 1943 में प्रदोष दास गुप्ता के प्रयत्नों से कलाकारों … Read more
- पटना शैलीउथल-पुथल के इस अनिश्चित वातावरण में दिल्ली से कुछ मुगल शैली के चित्रकारों के परिवार आश्रय की खोज में भटकते हुए पटना (बिहार) तथा कलकत्ता … Read more
- मैसूर शैलीदक्षिण के एक दूसरे हिन्दू राज्य मैसूर में एक मित्र प्रकार की कला शैली का विकास हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मैसूर की चित्रकला … Read more
- तंजौर शैलीतंजोर के चित्रकारों की शाखा के विषय में ऐसा अनुमान किया जाता है कि यहाँ चित्रकार राजस्थानी राज्यों से आये इन चित्रकारों को राजा सारभोजी … Read more
- अभिव्यंजनावाद | भारतीय अभिव्यंजनावाद | Indian Expressionismयूरोप में बीसवीं शती का एक प्रमुख कला आन्दोलन “अभिव्यंजनावाद” के रूप में 1905-06 के लगभग उदय हुआ । इसका प्रधान प्रयोक्ता जर्मन कलाकार एडवर्ड … Read more
- बसोहली की चित्रकलाबसोहली की स्थिति बसोहली राज्य के अन्तर्गत ७४ ग्राम थे जो आज जसरौटा जिले की बसोहली तहसील के अन्तर्गत आते हैं। जसरीटा जिला जम्मू की … Read more
- रेखा क्या है | रेखा की परिभाषारखा वो बिन्दुओं या दो सीमाओं के बीच की दूरी है, जो बहुत सूक्ष्म होती है और गति की दिशा निर्देश करती है लेकिन कलापक्ष के अन्तर्गत रेखा का प्रतीकात्मक महत्व है और यह रूप की अभिव्यक्ति व प्रवाह को अंकित करती है।
- टीजीटी / पीजीटी कला से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न | Important questions related to TGT/PGT Artsसांझी कला किस पर की जाती है ? उत्तर: (B) भूमि पर ‘चाँद को देखकर भौंकता हुआ कुत्ता’ किस चित्रकार की कृति है ? उत्तर: … Read more
- राजस्थानी चित्र शैली की विशेषतायें | Rajasthani Painting Styleराजस्थान एक वृहद क्षेत्र है जो “अवोड ऑफ प्रिंसेज” माना जाता है इसके पश्चिम में बीकानेर, दक्षिण में बूँदी, कोटा तथा उदयपुर उत्तर में जयपुर तथा मध्य … Read more