हेमन्त मिश्र (1917)

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हेमन्त मिश्र

असम के चित्रकार हेमन्त मिश्र एक मौन साधक हैं। वे कम बोलते हैं। वेश-भूषा से क्रान्तिकारी लगते है अपने रेखा-चित्रों में वे अपने मन की बेचैनी को प्रकट करना चाहते हैं, अपनी कृतियों को विद्रोही, हिंसक रूप देना चाहते हैं। किन्तु अपने रंगीन चित्रों में ये शान्त स्वभाव के दिखाई देते हैं। 1950 के लगभग वे कलकत्ता ग्रुप के सदस्य चुन लिये गये थे।

आरम्भ में उन्हें कला की शिक्षा के लिये असम में कोई सुविधा नहीं मिलीं। उन्होंने पत्राचार पाठ्‌यक्रम द्वारा इंग्लैण्ड से कला-शिक्षा में प्रगति की। इग्लैण्ड की शिक्षा-पद्धति से उन्हें ब्रिटेन की एक-एक पग आगे बढ़ने की अकादमी-पद्धति का संस्कार मिला। उनके रेखाचित्रों में यह स्पष्ट है।

उनके रंग-चित्र प्रायः प्राकृतिक दृश्य थे अथवा कार्य करते व्यक्तियों को वातावरण के साथ मिला कर अंकित करने वाले चित्र ये जिनमें दृश्य के वृक्षों या पत्थरों आदि के समान ही मानवाकृतियों को सामंजस्य पूर्ण विधि से संयोजित किया जाता था।

कुछ कारणों से हेमन्त को व्यावसायिक कलाकार बनना पड़ा। इससे उनकी आकृतियों में अधिक निखार आ गया। चित्र अब अधिक नपे-तुले और वस्तुएँ अपने स्वभाव के अनुसार बनने लगीं; पत्थर कठोर, बादल हल्के, पानी घोल जैसा।

1952 से हेमन्त की कला में दूसरा युग आरम्भ हुआ जिसे घनवादी कहा जा सकता है पर इन रूपों में कोई आन्तरिक गढ़न नहीं दिखायी गयी थी। मिश्र ने वस्तुओं की केवल बाहरी गढन को ही अंकित किया। उन्होंने घनवादी रूपों को लयात्मक विधि से संयोजित किया।

1959 के लगभग उन्होंने इन रूपों के साथ पृष्ठभूमि को रहस्यात्मक बनाना आरम्भ किया। वे विकृति किये अथवा तोड़े-मरोड़े गये रूपों को बारीक विवरणों सहित अंकित करने लगे। ये रूप सार्थक प्रतीक बनते चले गये। यहीं से हेमन्त की कला में ‘अतियथार्थवाद’ आरम्भ हुआ।

उन पर यूरोपीय अतियथार्थवादी चित्रकारों डाली तथा अर्न्स्ट का भी प्रभाव पड़ा। उन्होनें पर्वतों, चट्टानों अथवा भवनों के ढाँचों को नष्ट होते हुए समय का प्रतीक माना है। वस्तुओं को शनैः शनै क्षरणशील अवस्था में चित्रित किया गया है। हेमन्त मिश्र के चित्रों में कल्पना के अनन्त रूप दिखाई देते हैं।

चमकदार रंगों में पास-पास चित्रित वस्तुएँ विचित्र तथा कल्पनात्मक होते हुए भी अपना रूपात्मक अर्थ रखती हैं। मिश्र के रंग भी अपने अलग अस्तित्व का प्रयत्न न करके वातावरण में लीन होना चाहते हैं। वे अपनी ही संगति बनाते हैं और चित्र से एक रहस्यात्मक संदेश देते हैं।

वस्तुओं की गहरी छाया और अति प्रकाशित किनारे भी इस रहस्यात्मकता में वृद्धि करते हैं। इससे उनकी आकृतियाँ प्रेतों की भाँति भी लगती है। इस तकनीक पर साल्वाडर डाली का प्रभाव है। जिस प्रकार डाली आदि यूरोपीय कलाकारों की उग्र विद्रोही प्रवृत्ति दादावाद में प्रकट हुई थी किन्तु दादावादी आन्दोलन के असफल हो जाने पर एक संयत रूप में अतियथार्थवाद में आ गई थी उसी प्रकार हेमन्त मिश्र की विद्रोही प्रवृत्ति भी पहले रेखा-चित्रों में उम्र रूप में प्रकट हुई और बाद में रंगीन चित्रों में संयत हो गयी। हेमन्त मिश्र के कुछ प्रसिद्ध चित्र हैं; प्रिमिटिव एअर, वर्स ऑन फायर, ईको ऑफ ए सौंग तथा परस्यूरिंग द फेडिंग गॉड आदि ।

हेमन्त मिश्र कलकत्ता ग्रुप से जुड़े रहे हैं और 1943 से ही इस ग्रुप के साथ अपनी प्रदर्शनियाँ लगाते रहे हैं। वे 1947 में कलकत्ता की अखिल भारतीय प्रदर्शनी के सलाहकार भी रहे थे।

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