तैयब मेहता का जन्म 1926 में गुजरात में कपाडवंज नामक गाँव में हुआ था। कला की उच्च शिक्षा उन्होंने 1947 से 1952 तक सर जे० जे० स्कूल आफ आर्ट बम्बई में ली।
1959 में वे लन्दन चले गये और वहाँ कला के अध्ययन के साथ-साथ प्रदर्शनियाँ भी करते रहे। 1965 में वे भारत वापिस आये और यहाँ कई प्रदर्शनियों का आयोजन किया।
1965 में ही उन्हें ललित कला अकादमी का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। 1968 में भारत में आयोजित त्रिनाले प्रदर्शनी में उन्हें पुरस्कार मिला और राकफैलर फैलोशिप पर वे पुनः यूरोप चले गये। वहाँ से आने के पश्चात् वे निरन्तर प्रदर्शनियाँ आयोजित करते रहे हैं।
वे फिल्मों में भी सक्रिय हैं और अपनी एक फिल्म ‘कुणाल’ पर 1969-70 में ‘फिल्म फेयर’ पुरस्कार भी प्राप्त कर चुके हैं। वे अमूर्त कला में रुचि न रखते हुए स्वयं को अभिव्यंजनावादी कलाकार मानते हैं। वे प्रायः बम्बई में रहते हैं।
तैयब मेहता जब यूरोप से आये थे उससे पहले वे प्रोग्रेसिव कलाकारों की भाँति तूलिकाघातों तथा पैलेट नाइफ का प्रयोग चित्र की केन्द्रीय आकृति बनाने में करते थे।
भारत लौटकर उन्होंने इस विधि को त्याग दिया और सपाट रंग भरने लगे। तैयब मेहता के चित्रों के लोग इसी दुनियाँ के हैं। आकृतियों की मुद्रायें अत्यन्त व्यंजक और प्रभावपूर्ण हैं।
उनकी ठोस आकृतियाँ इतनी व्यंजक नहीं हैं जितनी पानी में तैरती और हिलती-डुलती सी सपाट आकृतियाँ आकर्षित करती हैं। मानों वे हमारे मन के आलोड़न की ही प्रतिरूप हैं।
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