मनीषी दे | Manishi De

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दे जन्मजात चित्रकार थे। एक कलात्मक परिवार में उनका जन्म हुआ था। मनीषी दे का पालन-पोषण रवीन्द्रनाथ ठाकुर की. देख-रेख में हुआ था। उनके बड़े भाई मुकुल दे और बहन रानी चन्दा बचपन के साथी थे और दोनों ही प्रतिभाशाली चित्रकार थे। 

चित्रकला के उनके प्रथम शिक्षक अवनीन्द्रनाथ ठाकुर थे। बाद में शान्ति निकेतन में उन्होंने नन्दलाल बसु से शिक्षा प्राप्त की फिर भी अपने विद्रोही तथा फक्कड़ स्वभाव के कारण वे उनके अन्धअनुयायी नहीं बन पाये। 

उन्होंने शिक्षा को कभी भी गम्भीरता से नहीं लिया। चित्रकला उनके लिये एक प्रकार का खिलवाड़ थी और केवल ‘मूड’ में आने पर ही चित्र बनाते थे। 

उनके विभिन्न चित्रों में विभिन्न शैलियों के दर्शन होते है। परिवार से अधिक उनको मित्र मंडली प्रिय थी। टाटा परिवार के उनके मित्रों ने उन्हें व्यापारिक कला की ओर प्रोत्साहित किया फलतः उन्होंने टाटा, रेलवे तथा कई कपड़ा मिलों के लिये अनेक सुन्दर विज्ञापन बनाये। 

विज्ञापन तथा डिजाइन के क्षेत्र में उन्होंने नये प्रतिमान स्थापित किये। उन्होंने विभिन्न प्रकार की नारियों के उत्फल्ल सुकोमल रूपों में अपार मोहकता भर दी है। कुछ समय तक वे बंगलौर में भी रहे थे।

व्यापारिक कला के क्षेत्र में सफल होने पर भी उनका मन उसमें पूरी तरह रम नहीं पाया अतः उन्होंने उस क्षेत्र को छोड़ दिया। 

ग्वालियर, बम्बई तथा दक्षिण भारत में रहकर उन्होंने अपनी सर्वश्रेष्ठ कलाकृतियों का सृजन किया और आकृतियों तथा टेम्परा एवं जल रंगों में अनेक प्रयोग किये। प्रकृति तथा नारी जीवन के बहुत से स्केच बनाने के पश्चात् उन्होंने भारतीय कुमारियों की एक चित्र-श्रृंखला की रचना की। 

इसमें उन्होंने कुमारियों की मनः स्थितियों तथा मुद्राओं की सूक्ष्मता को बड़ी कुशलता से पकड़ा है। 30 जनवरी 1966 को 60 वर्ष की आयु में कलकत्ते में उनका निधन हो गया।

आकृति-चित्रण के अतिरिक्त मनीषी दे ने आधुनिक प्रयोग भी किये हैं। गहरे गुलाबी रंगों का अनूठा प्रयोग उन्होंने किया है। उनकी शैली पर्याप्त ओज पूर्ण है। नेहरू जी भी उनके प्रशंसक थे।

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