के० वेंकटप्पा | K. Venkatappa

admin

आप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के आरम्भिक शिष्यों में से थे। आपके पूर्वज विजयनगर के दरबारी चित्रकार थे विजय नगर के पतन के पश्चात् आप मैसूर राज्य में आ बसे थे आरम्भ (1902-8) में आपने मैसूर कला विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की थी अतः आप पर पश्चिमी कला का प्रभाव भी पड़ा। 

(1909-16) के मध्य अवनी बाबू से शिक्षा प्राप्त कर आपने मैसूर में बंगाल शैली का प्रचार किया किन्तु आपकी आकृति रचना में नाजुकपन नहीं है। 

आपका रंग-विधान मधुर और चटकीला है, उस पर मुगल तथा राजस्थानी शैलियों का प्रभाव है। रेखाएँ बारीक और सशक्त हैं तथा आकृतियों में गढ़नशीलता का आभास भी है। 

प्रकृति के अंकन में परिप्रेक्ष्य आदि के नियमों का पुट है और यथार्थवादिता है। पशुओं के अंकन में सूक्ष्म विवरणों का आपने बहुत ध्यान रखा है। 

आपका अधिकाशं जीवन मैसूर में ही व्यतीत हुआ। 1910 में अजन्ता के भित्ति चित्रों की अनुकृतियाँ तैयार करने में लेडी हेरिंघम के दल में आप भी थे। 1962 में आप ललित कला अकादमी के फेलो निर्वाचित हुए ।

मैसूर के महाराजा कृष्णराज ओड्यार के महल में आपने पाँच रिलीफ चित्र बनाना आरम्भ किया था जिसमें से केवल तीन चित्र ही पूर्ण हो सके। 

ये अर्धचित्र वेंकटप्पा की शैली के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इनमें मिक्षा माँगते बुद्ध तथा राम द्वारा हनुमान को मुद्रिका अर्पण आदि विषय चित्रित किये गये हैं। 

कूचबिहार की महारानी ने भी अपने दिवंगत महाराज के दो चित्र हाथी दाँत पर वेंकटप्पा से बनवाये थे। जब ये बन कर तैयार हुए तो महारानी प्रसन्नता से गद्गद् हो उठी थीं। 

वेंकटप्पा आरम्भ से ही एक अच्छे व्यक्ति चित्रकार थे और आपने अवनीन्द्रनाथ ठाकुर, रामास्वामी मुदालियर तथा महाराजा मैसूर आदि के भी व्यक्तिचित्र बनाये थे।

आपने टेम्परा में भी कार्य किया है जिसमें फिनिश की उत्तमता है। शुद्ध तथा चमकदार रंग अत्यन्त समृद्ध योजनाओं के अनुसार लगाये गये हैं। 

श्री वेंकटप्पा मूलतः एक लघु चित्रकार रहे हैं। पर उन्होंने ऊटी के विभिन्न ऋतुओं के दृश्य-चित्र भी अंकित किये हैं। यथार्थात्मक होते हुए भी उनमें शाश्वत तथ्यों की खोज का प्रयत्न है जो उन्हें पश्चिमी कलाकारों से पृथक् करता है। 

आप प्रकृति की आत्मा का, उसके सार तत्व का चित्रण करते हैं आपके मृगतृष्णा तथा पक्षी का अध्ययन चित्र मुगल चित्रकार मंसूर के समकक्ष रखे जा सकते हैं। 

‘राम तथा स्वर्ण मृग’ में आकर्षण तथा सौम्यता है। चित्र में दूरी पर स्वर्ण मृग अंकित है, उसकी छाया निकट जलाशय में दिखाई दे रही है। 

राम के समीप बैठी सीता उसे लाने का आग्रह कर रही हैं, उनके मुख पर भय का किंचित् भाव भी है। ऊपर काले मेघों में रावण अंकित है। 

चित्र का संयोजन राजपूत शैली की व्यंजनात्मक भाषा लिये हुए है। 

“बुद्ध और शिष्य” आपका एक अन्य चित्र है। आपके आरम्भिक चित्र पश्चिमी शैली में ऊटी के दृश्य तथा मानवीय शैली में निर्मित “बीणा की मतवाली” “शिवरात्रि” तथा “राधा” आदि है ऊटी के अतिरिक्त आपने कोडाईकनाल के भी दृश्य चित्रित किये हैं।

Leave a Comment