गगनेन्द्रनाथ ठाकुर

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Gaganendranath Tagore

गगनेंद्रनाथ टैगोर कौन थे?

गगनेन्द्रनाथ भारतीय चित्रकला के आधुनिक काल के एक प्रमुख और अग्रणी चित्रकार थे,जो की अपनी कार्यशाली के लिए आज भी जाने जाते है.

गगनेंद्रनाथ टैगोर क्यों प्रसिद्ध है?

गगनेन्द्रनाथ उस समय के चित्रकारों से अलग चित्रण विधि से काम करने और पाश्चात्य विधियों में काम करने के लिए जाने जाते है,वो अपनी घनवादी शैली के लिए भी प्रसिद्द है.

  • गगनेंद्रनाथ टैगोर को भारतीय संस्कृति की आधुनिकतावादी पेंटिंग, कार्टून, लिथोग्राफ के लिए जाना जाता है।

गगनेंद्रनाथ टैगोर द्वारा बनाई गई दो प्रकार की कला कौन सी हैं?

  • गगनेन्द्रनाथ अपनी घनवादी कला के लिए भी प्रसिद्द है, लेकिन उन्होंने यथर्थवादी कला में भी चित्रण किया है.

गगनेन्द्रनाथ का जन्म

गगनेन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म कलकत्ता में सन् 1867 ई० में हुआ था। इनके पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ के भतीजे थे अतः रवीन्द्रनाथ ठाकुर इनके चाचा लगते थे । 

  • गगनेंद्रनाथ टैगोर का जन्म जोरासांको में हुआ था.
  • गगनेंद्रनाथ, गुणेंद्रनाथ टैगोर के सबसे बड़े पुत्र, गिरींद्रनाथ टैगोर के पोते और राजकुमार द्वारकानाथ टैगोर के परपोते थे।
  • उनके भाई अबनिंद्रनाथ बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट के अग्रणी और अग्रणी प्रतिपादक थे। वह कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के भतीजे और अभिनेत्री शर्मिला टैगोर के परदादा थे।

गगनेन्द्रनाथ की बचपन से ही विभिन्न कलाओं में रूचि थी। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के व्यक्तित्व का इन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। गगनेन्द्रनाथ ठाकुर प्रसिद्धि से दूर रहने वाले व्यक्ति थे अतः उन्होंने अपने जीवन का कोई वृतान्त नहीं छोड़ा है। 

गगन बाबू के पिता का देहान्त तभी हो गया था जब गगन चौदह वर्ष के थे रवीन्द्रनाथ ठाकुर के संरक्षण में इनका पालन-पोषण हुआ। आरम्भ में इन्होंने कला-विद्यालय की शिक्षण पद्धति पर आधारित जल-रंग चित्रण घर में ही सीखा। 

इसके अतिरिक्त आरम्भ में इन्होंने पेंसिल से चित्रांकन भी सीखा। 1902-3 में जापानी चित्रकारों के इनके परिवार में ठहरने के कारण गगन बाबू ने भी जापानी चित्रांकन विधि सीख ली। 

1910-15 में इन्होंने रवि बाबू की पुस्तक जीवन-स्मृति का चित्रण भी किया। इसके अतिरिक्त गगेन्द्रनाथ ने कुछ पर्वतीय दृश्य-चित्र भी बनाये आरम्भ में चौड़े तूलिकाघातों का प्रयोग किया किन्तु धीरे-धीरे ये तूलिकाघात छोटे होते गये हैं। 

भारत में मौलिक विधि से विशुद्ध दृश्य चित्रण के आरम्भिक चित्रकार अवनीन्द्रनाथ तथा गगनेन्द्रनाथ ही माने जाते हैं।

इसके पश्चात् वाश शैली में चैतन्य चरित माला का चित्रण किया। चैतन्य के जन्म से देह त्याग तक के ये इक्कीस चित्र हैं जिनमें भाव-विभोर चैतन्य का संकीर्तनचित्र बहुत सुन्दर बन पड़ा है। 

इनकी गतिपूर्ण आकृतियों तथा हल्के चमकदार रंग उस समय की पुनरुत्थान शैली से पर्याप्त भिन्न है। तीथों तथा रात्रि दृश्यों में काली स्याही अथवा गहरे रंगों द्वारा देवालयों के स्थापत्य, दर्शनार्थियों की भीड आदि का चित्रण किया है। 

इनचित्रों में देवालयों के गर्भगृह से आता हुआ प्रकाश आध्यात्मिक धार्मिक प्रतीकता लिये हुएहै। धीरे-धीरे ये रात्रि के अन्धकार में अलोकिक शक्ति के प्रकाश से चमकते हुए देवालय चित्रित करने लगे। 

यही पद्धति उन्होंने बाद में बनाये रहस्यमय भवनों के चित्रों में प्रयुक्त की है। 

इस प्रकार के कुछ चित्रों में स्टेज-सेटिंग का भी प्रभाव है और धनवादी, भविष्यवादी तथा निर्माणवादी कला-आन्दोलनों की कल्पनाओं का उपयोग भी काली स्याही से अंकित इस प्रकार के चित्रों पर श्वेत-श्याम फोटोग्राफी का भी प्रभाव है।

सन् 1914 में पेरिस में भारतीय चित्रों की एक प्रदर्शनी हुई जिसमें गगनेन्द्रनाथ ठाकुर के भी छः चित्र थे। 

इन चित्रों की पर्याप्त प्रशंसा हुई । 1921 से उन्होंने घनवादी शैली में प्रयोग आरम्भ किये और 1922 में डा० स्टैला क्रामरिश ने सर्व प्रथम उन्हें एक भारतीय घनवादी चित्रकार कहा। 

सन् 1923 में बर्लिन में भारतीय आधुनिक चित्रकला की एक प्रदर्शनी हुई जिसमें गगनेन्द्रनाथ की कृतियों को घनवादी कहा गया तथा यूरोपीय घनवादी कलाकारों से उनकी तुलना की गयी । 

उन्हें भारत का सबसे अधिक साहसी और आधुनिक चित्रकार माना गया। विनय कुमार सरकार ने उनका सम्बन्ध भविष्यवाद से जोड़ा। किन्तु वास्तव में गगनेन्द्रनाथ ठाकुर पूर्ण रूप से घनवादी अथवा भविष्यवादी चित्रकार नहीं हैं। 

उनके चित्रों में अँधेरे अथवा प्रकाश वाले पारदर्शी तल एक दूसरे को कहीं बेधते हैं, कहीं आच्छादित कर लेते हैं। उनमें त्रिआयामी घनवादी ठोस रूपों के संयोजन अथवा प्रभाव नहीं है। 

कोमल संवेदनाओं और छाया-प्रकाश के रहस्यात्मक प्रयोग के कारण वे रोमाण्टिक प्रतीत होते हैं उनके धनवाद में एक अतीन्द्रिय रहस्यात्मकता, समन्वयात्मक दृष्टि और आदर्शवादिता है जो उन्हें पश्चिमी धनवाद से पृथक करते हैं। 

घनवादी आकृतियों के छोटे-छोटे रूपों के सघन जाल में भी वे कोई न कोई विषय ढूंढ ही लेते हैं। 

जैसे हिमालय में वर्षा के दृश्य में अनेक समान्तर चतुर्भुजों की सृष्टि, बन्दिनी राजकुमारी के चित्र में अगणित त्रिभुज छाया-प्रकाश की क्रीडा करते अंकित हैं तथा नाचती लड़की के चित्र में सीढ़ियों, दालानों आदि के संयोजन में धुंधला प्रकाश इस तरह से अंकित है कि उससे आकृतियों, के एकदम अंधेरे वाले भाग स्पष्ट हो गये हैं। 

घनवाद तथा प्रभाववाद के सर्वोत्तम तत्वों का समन्वय करके वे प्रधानतः प्रकाश का ही चित्रण करते हैं, चाहे सूर्योदय एवं सूर्यास्त के जलते हुए लाल रंग बहुल चित्र हों चाहे अंधेरे में टिमटिमाती सड़क की रोशनी के ।

गगनेन्द्रनाथ ने रूपहले तथा सुनहरे धरातलों एवं रेशम पर काली स्याही से स्वच करके अनेक चित्र बनाये जिनमें कहीं-कहीं लाल तथा हरे रंगों के स्पर्श चित्रों को अपूर्व सौन्दर्य प्रदान करते हैं। 

उनके प्रभाववादी चित्रों में कांग्रेस को सम्बोधित करते कवि रवीन्द्र, जंगल की आग, रायल जेकरिण्डा, बसन्त, राँची में सूर्यास्त आदि विशेष प्रसिद्ध हैं। 

उन्होंने अनेक नये और साहसपूर्ण प्रयोग भी किये। पुरी की स्वर्णिम रेत, तीर्थाटन तथा इसी प्रकार के अन्य चित्र सुनहरी धरातल पर स्याही से अंकित हैं जिनमें युक्तियों का बड़ा ही प्रभावी उपयोग हुआ है। 

उन्होंने हिमालय के भी अनेक चित्र बनाये हैं। प्रकाश की प्रथम किरण इनमें सर्वश्रेष्ठ चित्र है जिसमें हिमालय के शिखर को हल्की गुलाबी तथा बैंगनी आभाओं से रंजित करती सूर्य की प्रथम रश्मियों का चित्रण किया गया है।

इसके पश्चात् उन्होंने जो चित्र बनाये उनमें प्रकाश का स्थान कम होने लगा और अंधेरे का भाग बढ़ने लगा। 

यह अंधेरा एक रहस्यमय छायाकृति के रूप में चित्रित किया जाने लगा जो देखने में नारी जैसी है पर कहीं-कहीं उसके दाढ़ी भी चित्रित है। कहीं वह नासिका तथा मुख विवर को नकाब से ढके हुए है ।

गगनेन्द्रनाथ ठाकुर ने अपने जीवन के अन्तिम चरण में काली स्याही से चौड़े तूलिकाघातों में पर्वतों तथा आकाश की ओर लपकते वृक्षों और उन पर उड़ते हुए मेघों का चित्रण किया। 

सम्भवतः यह सब उनके मन की बेचैनी की अभिव्यक्ति थी। अन्त में उन्हें पक्षाघात हो गया और 1938 में उनका देहावसान हो गया । उनकी कलात्मक प्रतिभा को भारतीय कला जगत् ही नहीं वरन् विदेशों में भी सराहा गया था। 

रवीन्द्रनाथ ठाकुर जब 1921 तथा 1926 में यूरोप गये थे तब कान्दिन्स्की, पाल क्ली तथा अन्य अभिव्यंजनावादी कलाकारों में उनकी लोकप्रियता देखकर आश्चर्य चकित रह गये थे।

गगनेन्द्रनाथ की कला को विषयानुसार निम्नप्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है-

  • 1. परीलोक के समान वातावरण में रोमाण्टिक विषयों का चित्रण
  • 2. काले तथा श्वेत रंगों में स्केच, व्यक्ति चित्र तथा सामाजिक व्यंग्य-विद्रूप
  • 3. प्राकृतिक दृश्य
  • 4. रहस्यपूर्ण प्रकाश सहित अमूर्त चित्र
  • 5. घनवादी चित्र

उनके व्यंग्यचित्र विकृतिपूर्ण नहीं है। वे सामाजिक स्थितियों पर व्यंग्य हैं। भारत में व्यंग्य चित्रण के आरम्भिक कलाकारों में से वे एक थे।

इस प्रकार गगनेन्द्रनाथ ठाकुर ने ठाकुर शैली तथा ठाकुर परिवार के मध्य रहकर भी स्वयं को उस तक सीमित नहीं रखा। 

उन्होंने सर्वप्रथम भारतीय विषयों के लिये धनवादी शैली का प्रयोग किया तथा अन्य विदेशी शैलियों के समन्वय से अपनी कला का एक नितान्त मौलिक स्वरूप विकसित किया । 

बड़े साहस के साथ वे अपने मार्ग पर चले किन्तु उनकी पर्याप्त आलोचना भी हुई। उन्हें अभारतीय समझा गया और यह कहा गया कि यद्यपि कला में आदान-प्रदान होता है पर वह राष्ट्रीय भी होनी चाहिये। 

उनके चित्रों में एक विचित्र माया-लोक के दर्शन होते हैं। उनकी कला को रोमाण्टिक यथार्थवादी कहा गया है। उनके कुछ चित्रों को स्वप्निल चित्रकला के अन्तर्गत भी रखा गया है । 

डिपार्चर आफ चैतन्य, द कमिंग आफ प्रिन्सेज, द फेयरी प्रिन्सेस, डेसोलेट हाउस, स्पिरिट आफ नाइट, सात भाई चम्पा, स्वप्न-जाल तथा द्वारका के मन्दिर आदि उनके कुछ प्रसिद्ध चित्र हैं।

गगनेन्द्रनाथ के चित्र

  1. Rising Sun-in-law of Bengal, a criticism to bride burning. Indian Museum, Kolkata By Gaganendranath Tagore
Rising Sun-in-law of Bengal, a criticism to bride burning. Indian Museum, Kolkata By Gaganendranath Tagore
Rising Sun-in-law of Bengal, a criticism to bride burning. Indian Museum, Kolkata By Gaganendranath Tagore
  • 2.Sat-Bhai Champa. Watercolour, 34 × 25 cm, Victoria Memorial, Kolkata
Sat-Bhai Champa. Watercolour, 34 × 25 cm, Victoria Memorial, Kolkata
Sat-Bhai Champa. Watercolour, 34 × 25 cm, Victoria Memorial, Kolkata
  • 3.Pratima Visarjan, watercolour, c. 1915
Pratima Visarjan, watercolour, c. 1915
Pratima Visarjan, watercolour, c. 1915
  • 4. Meeting at the Staircase by Gaganendranath Tagore
Meeting at the Staircase by Gaganendranath Tagore
Meeting at the Staircase by Gaganendranath Tagore

क्या टैगोर और ठाकुर एक ही हैं?

हाँ ठाकुर और टैगोर एक ही है,

अंग्रेज ठाकुर का उच्चारण नहीं कर पाते थे, वो टैगोर को तहकौर कहते थे।

इसलिए धीरे-धीरे ये ठाकुर से टैगोर हो गया।

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