मिथिला चित्रकला | मधुबनी कला  | Mithila Painting

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मिथिला चित्रकला

मिथिला चित्रकला, जिसे मधुबनी लोक कला के रूप में भी जाना जाता है. बिहार के मिथिला क्षेत्र की पारंपरिक कला है। यह गाँव की महिलाओं द्वारा निर्मित की जाती है जो मिट्टी के रंगो के साथ वनस्पति रंग का उपयोग करके त्रिआयामी चित्र बनाती है और उसे गाय के गोबर से बने कागज पर काली रेखाओं में उभारती है।

ये चित्र विशेष रूप से सीता के वनवास और राम-लक्ष्मण के वन जीवन के बारे में बताते हैं या हिंदू पौराणिक कथाओं से लक्ष्मी, गणेश, हनुमान और अन्य की छवियों को दर्शाते हैं। इनके अलावा, महिलाएं सूर्य और चंद्रमा जैसे खगोलीय विषयों को भी चित्रित करती हैं। 

इन चित्रों में तुलसी का पवित्र पौधा भी पाया जाता है, साथ ही वे अदालत के दृश्य, शादी और सामाजिक घटनाओं को भी दिखाती है। मधुबनी चित्र बनाना बहुत ही वैचारिक है। पहले चित्रकार सोचता है और फिर वह अपने विचार को चित्रित करता है। 

सामान्यतः ये वे चित्र हैं जो रेखाओं और रंगों में बोलते हैं और जीवन चक्र कीविशेष घटनाओं और मौसमी त्योहारों को चिह्नित करने के लिए घर और गाँव की दीवारों पर कुछ अनुष्ठानों या त्योहारों के लिए तैयार किए जाते हैं।

इन चित्रों में जटिल ज्यामितीय डिजाइनों के साथ वनस्पति, पशु और पक्षियों के रूपांकनों को भी देखा जा सकता है। कुछ स्थानों पर माताओं द्वारा इन कला वस्तुओं को अपनी बेटियों के लिए शादी के उपहार के रूप में बनाना एक विशेष प्रथा है। 

ये चित्र एक अच्छा वैवाहिक जीवन जीने के तरीकों के बारे में भी सलाह देते हैं। विषयों और रंगों के उपयोग में भी सामाजिक भिन्नता है। इन चित्रों में उपयोग किए गए रंगों से कोई भी उस समुदाय की पहचान कर सकता है। 

उच्च और अधिक संपन्न वर्गों द्वारा बनाए गए चित्र रंगीन होते हैं, जबकि निचली जाति के लोगों द्वारा बनाए गए चित्रों में लाल और काली रेखा का काम होता है। लेकिन चित्रों की तकनीक को गाँव की महिलाओं द्वारा उत्साह से संरक्षित किया जाता है ताकि माँ द्वारा बेटी को हस्तांतरित किया जा सके। 

आजकल मधुबनी कला का उपयोग सजावटी वस्तुओं, ग्रीटिंग कार्ड्स आदि बनाने में भी किया जा रहा है। यह स्थानीय महिलाओं के लिए आय का स्रोत बन गया है। मिथिला चित्रकारी के प्रमुख कलाकारों के नाम हैं- गंगा देवी, सीता देवी, गोदावरी दत्त, भारती दवाल तथा बउवा देवी

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