गणेश पाइन का जन्म 19 जून 1937 को कलकत्ता में हुआ था। उन्होंने कलकत्ता कला महाविद्यालय से 1959 में ड्राइंग एण्ड पेण्टिंग में डिप्लोमा परीक्षा उत्तीर्ण की।
1957 से ही वे प्रदर्शनियाँ आयोजित करने लगे थे और तब से उन्होंने देश-विदेश की अनेक महत्वपूर्ण प्रदर्शनियों में भाग लिया है।
विभिन्न माध्यमों में प्रयोग करते हुए उन्होंने अन्त में 1967 में अपनी अभिव्यंजना-पद्धति के अनुकूल केनवास पर टेम्परा के एक तकनीक का विकास किया।
गणेश पाइन स्वातंत्र्योत्तर आधुनिक भारतीय कलाकारों की दूसरी पीढ़ी में सबसे अलग ढंग का कार्य करते हैं। उनके चित्रों की संख्या बहुत कम है तथा वे आकार में भी ज्यादा बड़े नहीं होते ।
वे सुलझी हुई चित्र-भाषा का सहारा लेकर दर्शक को फन्तासी में ले जाती हैं स्त्रियाँ, स्वप्न, रात के सौदागर, रथ, राजा-रानी, राजकुमार, नाव, परीलोक, स्वप्न लोक, हड्डियाँ, आग, प्रकाश, अन्धकार आदि ।
किन्तु इनकी सभी कल्पनाओं की जड़ें भारतीयता में खोजी जा सकती है। उनके चित्रों का संसार परीलोक अथवा जादुई दुनियाँ के समान सर्जित रहता है। उसमें बाल-कला का भी प्रभाव हैं।
माँ और बालिका, एक स्वप्न की मृत्यु, एक प्राचीन उनके प्रमुख 1 पुरुष की ‘चित्रों में से हैं। ‘हत्यारा’ शीर्षक चित्र 1979 में बनाया गया था।
इसमें मृत्यु तथा हत्यारा पशु की भाँति झुका एक व्यक्ति (जो दानव, योद्धा, पेशेवर हत्यारा, कुछ भी हो सकता है) एक बहुत बडी तलवार म्यान से बाहर निकाल रहा है। यह तलवार प्राचीन किस्म की है।
पाइन की कला में रोमाण्टिक प्रवृत्ति भी है जिसे वे कलाकार को जीवित रखने अथवा विद्रोह के लिये प्रेरित करने में आवश्यक मानते हैं। उनके अनुसार रोमाण्टिक कलाकार जीवन और प्रकृति को अपने दृष्टिकोण से देखता है।
जब वह खुश होता है तो उसे दुनियाँ खुश दिखायी देती है; जब वह उदास होता है तो उसे पहाड़ भी रोते हुए दिखायी देते हैं किन्तु इसे ये भावुकता नहीं मानते और भावुकता से वे मृणा करते हैं।