प्राचीन काल में चित्रकला में प्रयुक्त सामग्री | Material Used in Ancient Art

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प्राचीन काल में चित्रकला में प्रयुक्त सामग्री

विभिन्न प्रकार के चित्रों में विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया जाता था। साहित्यिक स्रोतों में चित्रशालाओं (आर्ट गैलरी) और शिल्पशास्त्र (कला पर तकनीकी ग्रंथ) का उल्लेख किया गया है। 

हालांकि, चित्रकारी में इस्तेमाल किए जानेवाले प्रमुख रंग थे लाल गेरु (धतुरागा), ज्वलंत लाल (कुमकुम या सिंदूर), पीला गेरू (हरिताला), इंडिगो (नीला), लैपिस लाजुली (नीला) लैंप ब्लैक (कम्बल), चॉक सफेद, टेरा वर्ट (गेरु माटी) और हरा । लैपिस लाजुली (पाकिस्तान में पाया जाता है) को छोड़कर ये सभी रंग स्थानीय रूप से उपलब्ध थे। 

मिश्रित रंग, उदाहरण के लिए ये दुर्लभ अवसरों पर उपयोग किए जाते थे। रंगों का प्रयोग विषय और स्थानीय माहौल के अनुसार तय किया जाता था। बौद्ध चित्रों के अवशेष मध्य प्रदेश की बाघ गुफाओं तथा छठी और नौवीं शताब्दी के मध्य दक्कन के पठारी भागों और दक्षिणी स्थलों पर बौद्ध गुफाओं में भी पाए गए हैं। 

हालांकि इन चित्रों के विषय धार्मिक है, लेकिन उनके आंतरिक अर्थ और भावना से ज्यादा कुछ भी धर्मनिरपेक्ष, दरबारी और परिष्कृत नहीं हो सकता। हालाँकि इन चित्रों का केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही बचा है, परंतु ये चित्र किन्नरों, अप्सराओं और देवी-देवताओं, समृद्ध और विविध वनस्पतियों, जीवों, उल्लास, प्रेम, अनुग्रह और आकर्षण को दर्शाते हैं। 

ऐसे चित्रों के उदाहरण बादामी (कर्नाटक) में गुफा संख्या 3, काँचीपुरम के मंदिरों, सित्तनवासल (तमिलनाडु) को जैन गुफाओं और महाराष्ट्र में एलोरा (आदयों और नौवीं शताब्दी) की गुफाओं में देखे जा सकते हैं। कई अन्य दक्षिण भारतीय मंदिरों, जैसे तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर की दीवारों पर महाकाव्यों और पौराणिक कथाओं के विषयों पर चित्र उत्कीर्ण किये गए हैं।

बाघ, अजंता और बादामी की गुफाओं के चित्र उत्तर की शास्त्रीय परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं जबकि सित्तनवासल काँचीपुरम, मलयादिपट्टी और तिरुनलाईपुरम के चित्र दक्षिण की शास्त्रीय परंपरा को दिखाते हैं। सित्तनवासल (जैन सिद्धों का निवास) के चित्र जैन धर्म से संबंधित है जबकि कांचीपुरम, मलयादिपट्टी और तिरुनलाईपुरम के चित्र शैव एवं वैष्णव धर्म से संबंधित है।

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