आगोश्तों शोफ्त | Agoston Schofft

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शोफ्त (1809-1880) हंगेरियन चित्रकार थे। उनके विषय में भारत में बहुत कम जानकारी है। शोफ्त के पितामह जर्मनी में पैदा हुए थे पर वे हंगरी में बस गये थे। वहाँ पेस्ट नामक नगर में वे जिस गली में रहते थे वह आज भी चित्रकारों की गली कहलाती है। उनका घर ‘सात उल्लुओं के घर” के नाम से मशहूर था। यहीं शोफ्त 1809 में जन्मे थे।

1828 ई० में उन्नीस वर्ष की आयु में ये कला की शिक्षा के लिए वियना गये। फिर इटली, फ्रांस तथा स्विटजरलैण्ड होते हुए म्यूनिख गये। 1835 में वे घर लौट आये किन्तु घर में रहने के बजाय उस होटल में रहने लगे जहाँ उनके चित्र बिक्री के लिए प्रदर्शित थे। 

वहाँ उनका एक लड़की से प्रेम हो गया किन्तु उनके माता-पिता ने इस विवाह की अनुमति नहीं दी। शोफ्त ने बुखारेस्ट जाकर विवाह कर लिया और उस प्रेमिका पत्नी के साथ 1836 में आजीविका की खोज में निकल पड़े। कुस्तुनतुनियाँ (वर्तमान इस्तम्बूल), तथा अरब देशों की यात्रा करते वे ईरान तथा अफगानिस्तान होते हुए भारत आ पहुँचे। 14 नवम्बर 1841 को वे लाहौर में रुके। 

वहाँ के तत्कालीन शासक महाराज शेर सिंह को उन्होंने एक सिख ग्रन्थी का व्यक्ति चित्र दिखाया जिससे वे उनकी यथार्थवादी कला से बहुत प्रभावित हुए। महाराजा शेरसिंह अत्यन्त उदार थे। उन्होंने शोफ्त से अनेक चित्र बनवाये और उन्हें बहुत सा पुरस्कार दिया। 

शोफ्त ने अपनी इस यात्रा के दौरान जो भी महत्वपूर्ण चित्र बनाये थे उनकी नकलें अपने पास रखली थीं जिनका उन्होंने स्वदेश लौटने पर प्रदर्शन किया। इनमें महाराजा शेर सिंह तथा लाहौर दरबार के चित्र भी थे। लाहौर दरबार का चित्र महाराजा शेर सिंह के उत्तराधिकारी महाराजा रंजीत सिंह के समय बनाया गया था। 

इस चित्र में सत्तर मुखाकृतियाँ पूर्ण सादृश्य लिये हुए चित्रित की गयी हैं। महाराजा कोहिनूर का मुकुट पहने हैं। 1841 में ही शोफ्त ने अमृतसर नगर का चित्रण किया। उन्होने दरबार साहब का भी चित्र बनाया था। इसे बनाते समय एक दिन उनके दाँतों के बीच बुश लगा हुआ था। सिख श्रद्धालुओं ने उसे सिगार समझ कर शोक्त को पीटना आरम्भ कर दिया। वे मरते-मरते बचे।

लाहौर से शोफ्त दिल्ली आये और मुगल शासक बहादुरशाह का चित्र बनाया। वे आगरा भी गये और वहाँ के भी चित्र बनाये। आगरा से वे बनारस तथा कलकत्ता पहुँचे। कलकत्ता में उन्हें अपने देश का एक विद्वान् मिल गया जिससे उनकी मित्रता हो गयी। 

1842 में शोफ्त बम्बई पहुँचे। वहाँ मलाबार पहाड़ियों से बनाया गया उनका बम्बई का दृश्य बहुत प्रसिद्ध है। शोफ्त भारत से अपार धन एकत्रित कर अपनी पत्नी के साथ बम्बई से एक जहाज पर सवार होकर मिस्र की ओर चले गये। उन्होंने भारत से अनेक बहुमूल्य वस्तुएँ भी एकत्रित कर ली थीं।

स्वदेश पहुँच कर शोफ्त विलासपूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे और अपव्यय करने लगे। धीरे-धीरे उन पर आर्थिक तंगी आने लगी। परवश होकर 1863 ई० में उन्हें अपना संग्रह बेचने को बाध्य होना पड़ा। हंगरी से वे लन्दन चले आये और अपना अन्तिम समय वहीं व्यतीत किया। 1880 ई० में 71 वर्ष की पागलखाने में उनकी मृत्यु हुई। आयु में लन्दन के एक

इस समय के अन्य चित्रकार प्रायः व्यक्ति-चित्रण में ही कुशल थे: दृश्य-चित्रण के क्षेत्र में टामस डेनियल तथा विलियम डेनियल चाचा-भतीजे ने ही अविस्मरणीय कार्य किया था। लिथोग्राफी के क्षेत्र में जार्ज चिन्नरी, विलियम सिम्पसन तथा एडवर्ड लीअर के नाम प्रमुख हैं। जन-जीवन का चित्रण 19 वीं शती में जेम्स एटकिन्सन ने भी पर्याप्त विवरणात्मकता से किया हैं।

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