संस्कृति तथा कला

admin

Updated on:

संस्कृति तथा कला

किसी भी देश की संस्कृति उसकी आध्यात्मिक, वैज्ञानिक तथा कलात्मक उपलब्धियों की प्रतीक होती है। यह संस्कृति उस सम्पूर्ण देश के मानसिक विकास को सूचित करती है।

किसी देश का सम्मान तथा उसका अमर गान उस देश की संस्कृति पर ही निर्भर करता है। संस्कृति का विकास किसी देश के व्यक्ति की आत्मा तथा शारीरिक क्रियाओं के समन्वय एवं संगठन से होता है।

संस्कृति का रूप देश तथा काल की परिस्थितियों के अनुसार ढलता है। भारतीय संस्कृति का इतिहास बहुत विस्तृत है। भारतीय संस्कृति का विकास लगभग पांच सहस्र वर्षों में हुआ और इस संस्कृति ने विविध क्षेत्रों में इतना उच्च विकास किया कि संसार आज भी भारतीय संस्कृति से अनेक क्षेत्रों में प्रेरणा ग्रहण करता है।

संस्कृति का रचना क्रम भूत, वर्तमान तथा भविष्य में निरन्तर संचरित होता रहता है।

मानव संस्कृति में कलात्मक तथा आध्यात्मिक विकास का उतना ही महत्त्व है जितना वैज्ञानिक उपलब्धियों का । कलात्मक विकास में मुख्यतया साहित्य, कला अथवा शिल्प, स्थापत्य, संगीत, मूर्ति, नृत्य एवं नाटक का विशेष महत्त्व है। अतः किसी देश की संस्कृति का अध्ययन करने के लिये उस देश की कलाओं का ज्ञान परम आवश्यक है।

कला के द्वारा देश के, समाज दर्शन तथा विज्ञान की यथोचित छवि प्रतिबिम्बित हो जाती है। दर्शन यदि मन की क्रिया है तो विज्ञान शरीर की क्रिया है।

परन्तु कला मानव-आत्मा की वह क्रिया है जिसमें मन तथा शरीर दोनों की अनुभूति निहित है। अतः कला मानव संस्कृति का प्राण है जिसमें देश तथा काल की आत्मा मुखरित होती है।

Books: How to Draw ( Drawing Guide for Teachers and Students)

Leave a Comment