कला अध्ययन के स्रोत से अभिप्राय उन साधनों से है जो प्राचीन कला इतिहास के जानने में सहायता देते हैं। भारत की चित्रकला के अध्ययन के स्रोत निम्न श्रेणियों में विभक्त किये जा सकते हैं
Table of Contents
धार्मिक ग्रन्थ ( Religious Books)
धार्मिक ग्रन्थ जैसे वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत आदि तथा जैनियों तथा बौद्धों के ग्रन्थ उस प्राचीन समय की कला पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं रामायण, महाभारत तथा बौद्ध धेराधेरी की कथाओं आदि में कला की पर्याप्त चर्चा की गई है।
ऐतिहासिक ग्रन्थ (Historical Books)
प्राचीन काल के राजा अपने राजकाल की घटनाओं को लिखवाया करते थे। बहुत सी प्राचीन पुस्तकें तथा लेख नष्ट हो चुके हैं परन्तु फिर भी अनेक ऐसे प्रमाण मिलते हैं जिनसे कला विषयक ज्ञान प्राप्त होता है।
शिलालेख (Inscriptions)
शिलाओं पर अंकित कई प्राचीन शिलालेख लेख बादामी, अजन्ता तथा बाघ आदि गुफाओं से प्राप्त हैं जिनसे इनकी कला-शैलियों का ज्ञान होता है। महाराज अशोक के खुदवाये अनेक शिलालेख प्राप्त हैं तथा समुद्रगुप्त के समय का एक लेख भी इलाहाबाद के दुर्ग में प्राप्त है जिससे मौर्यकालीन मूर्तिकला आदि के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है।
मोहरें तथा मुद्राएँ (Seals and Coins)
मुद्राएँ ऐतिहासिक समय की कला का ज्ञान देने में सहायक सिद्ध होती हैं। मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा से प्राप्त मोहरों पर अंकित पशु-आकृतियों से उस समय की उन्नत मूर्तिकला का अनुमान लगाया जा सकता है।
इसी प्रकार मौर्य काल की समुद्रगुप्त की मुद्राओं या मुगलकालीन जहाँगीर की मुद्राओं से भी उन्नत कला- शैलियों का परिचय प्राप्त होता है।
प्राचीन खण्डहर (Old Ruins)
प्राचीन समय के ऐतिहासिक भवनों, धार्मिक स्मारकों, मंदिरों तथा मकानों की खुदाई या सफाई के उपरान्त कई स्थानों पर चित्र तथा मूर्तियाँ प्राप्त होती हैं जैसे बादामी तथा अजन्ता के गुफा मंदिरों में सफाई के उपरान्त तथा खुदाई के उपरान्त कई कलाकृतियों का ज्ञान प्राप्त हुआ।
एलोरा के गुफा मंदिरों के चित्रों का ज्ञान सफाई के उपरान्त प्राप्त हो रहा है।
यात्रियों के वृत्तान्त (Accounts of Travellers)
समय-समय पर अनेक विदेशी यात्री भारत आये उन्होंने भारत में जो कलाकृतियों देखीं उनका विवरण भी दिया है। उदाहरण के लिये चन्द्रगुप्त मौर्य के समय की कलाकृतियों का वृत्तान्त मेगस्थनीज़ ने तथा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय की कृतियों का वृत्तान्त फाह्यान ने दिया है।
सोलहवीं शताब्दी के तिब्बत के बौद्ध इतिहासकार लामा तारनाथ ने भारत के बौद्ध स्थलों का भ्रमण किया और उसने भारत की कला तथा कला शैलियों का पर्याप्त विवरण अपने लेखों में दिया है।
आत्म-कथायें या राजाओं का इतिहास (Autobiography or History of Kings)
मुगल बादशाह बड़े कला प्रेमी थे उन्होंने अपनी आत्म कथायें स्वयं लिखी हैं। इन आत्म-कथाओं में बाबर की ‘बाकयात-ए-बाबरी’ तथा जहाँगीर की आत्मकथा ‘तुज़के जहाँगीरी’ में उस समय के कलाकारों तथा कलाकृतियों आदि का पर्याप्त वर्णन है।
मुगल काल में ही अकबर के समय में अब्बुल फजल ने ‘आइने अकबरी’ की रचना की जिसमें अकबर का इतिहास लिखा गया। इस ग्रन्थ से अकबरकालीन चित्रकला-सम्बन्धी सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
उपरोक्त स्रोतों के आधार पर भारतीय कला का ज्ञान एकत्र किया गया है। इन स्रोतों के अतिरिक्त प्रत्यक्ष सुरक्षित कलाकृतियों कला विशेष की कला के विषय में सुनिश्चित एवं प्रामाणिक ज्ञान प्रदान करने में सबसे अधिक सहायक सिद्ध होती है।