भारतीय चित्रकला | Indian Art

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भारतीय चित्रकला

परिचय

टेराकोटा पर या इमारतों, घरों, बाजारों और संग्रहालयों की दीवारों पर आपको कई पेंटिंग, बॉल हैंगिंग या चित्रकारी दिख जाएँगी। ये चित्र हमारे प्राचीन अतीत और संस्कृति से जुड़े हैं और उस समय के लोगों के जीवन और रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं। 

चित्रों से यह भी पता चलता है कि प्राचीन समय में राजा और रानियाँ कैसे कपड़े पहनते थे या शाही सभा में दरबारी कैसे बैठते थे। चित्रकला पर प्रत्यक्ष प्रकाश डालने वाले अभिलेखों से पता चलता है कि प्रारंभिक काल से ही चित्रकला को धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक दोनों विषयों की कलात्मक अभिव्यक्ति का महत्त्वपूर्ण रूप माना जाता था। 

अभिव्यक्ति की यह सुविधा मानव अस्तित्व के लिए एक बुनियादी आवश्यकता है। प्रागैतिहासिक काल में इसने विभिन्न रूप धारण किए। प्राचीन काल में लोग शांतिपूर्ण समाज में रहते थे. इसलिए उन्होंने अपनी आंतरिक भावनाओं को संतुष्ट करने और अपने देवताओं, प्रचारकों या नायकों के प्रति सम्मान व्यक्त करने और कभी-कभी शाही संरक्षण के तहत जीवन और समाज को व्यक्त करने के लिए कला और चित्रों का सहारा लिया। 

भारतीय चित्रकला विभिन्न परंपराओं के संकलन का परिणाम है और इसका विकास एक सतत प्रक्रिया है। हालांकि नई शैलियों को अपनाते हुए भारतीय चित्रकला ने अपने विशिष्ट चरित्र को बनाए रखा है। इस प्रकार आधुनिक भारतीय चित्रकला आधुनिक प्रवृत्तियों और विचारों के साथ एक समृद्ध पारंपरिक विरासत के परस्पर मेल का प्रतिबिंब है।

प्राचीन काल में चित्रकला एवं संस्कृति

एक कला के रूप में चित्रकला भारत में बहुत प्रारंभिक काल से ही फली फूली है, जैसा कि गुफाओं और साहित्यिक स्रोतों से प्राप्त अवशेषों से स्पष्ट है। भारत में कला और चित्रकला का इतिहास भीमबेटका गुफाओं (मध्य प्रदेश) में पूर्व ऐतिहासिक रॉक पेंटिंग से शुरू होता है, इन गुफाओं में जानवरों एवं मानव के चित्र उकेरे गए है।

नरसिंहगढ़ (महाराष्ट्र) की गुफा चित्रकारी में चित्तीदार हिरणों की खाल को सूखते हुए दिखाया गया है। हजारों साल पहले, हड़प्पा सभ्यता की मुहरों पर भी विभिन्न प्रकार के चित्र देखने को मिलते हैं। हिंदू और बौद्ध दोनों साहित्य विभिन्न प्रकार के चित्रों का उल्लेख करते हैं। 

उदाहरण के लिए भित्तिचित्र, लोक कथाओं का प्रतिनिधित्व करते थे। लेखाचित्र कपड़े पर रेखांकन करके बनाए जाते थे, जबकि धूलिचित्र फर्श पर बनाए जाते थे। बौद्ध ग्रंथ ‘विनयपिटक’ (चौथी से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व) कई शाही इमारतों में चित्रित आकृतियों के अस्तित्व का वर्णन करता है। 

‘मुद्राराक्षस’ नाटक (पांचवी शताब्दी) में कई चित्रों या पाटों का उल्लेख है। सौंदर्यशास्त्र पर छठी शताब्दी ईस्वी के वात्स्यायन द्वारा रचित ग्रंथ ‘कामसूत्र’ में 64 प्रकार की कलाओं में चित्रकला का भी उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि यह वैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित थी। 

‘विष्णुधर्मोत्तर पुराण’ (सातवीं शताब्दी) में ‘चित्रसूत्र’ नामक पेंटिंग पर एक खंड है, जिसमें चित्रकला के छह अंगों का वर्णन किया गया है जैसे कि रूप, अनुपात, चमक, रंग आदि। इस प्रकार, पुरातत्व और साहित्य प्रागैतिहासिक काल से ही भारत में चित्रकला की समृद्धि की गवाही देते हैं।

गुप्त कालीन चित्रकला का सबसे अच्छा नमूना महाराष्ट्र में अजता के चित्र है। उनके विषय पशु, पक्षी, पेड़, फूल, मानव आकृतियाँ और जातक कथाएँ हैं। भित्ति चित्र दीवारों और चट्टानों की सतहों जैसे छतों और किनारों पर चित्रित किए गए थे। गुफा संख्या 9 में बौद्ध भिक्षुओं को एक स्तूप की ओर जाते हुए दिखाया गया है। गुफा संख्या 10 में जातक कथाओं का चित्रण किया गया है।

बाघ गुफाएँ मध्य प्रदेश के धार जिले से 97 किमी. दूर विंध्य पर्वत के दक्षिणी ढलान पर हैं। ये इंदौर और बड़ोदरा के बीच में बाघिनी नदी के किनारे स्थित हैं। बाघ गुफाओं का संबंध बौद्ध धर्म से है। यहाँ अनेक बौद्ध मठ और मंदिर देखे जा सकते हैं। 

इन गुफाओं में चैत्य हॉल में स्तूप हैं और रहने की कोठरी भी बनी हैं जहाँ बौद्ध भिक्षु रहा करते थे। कुछ इतिहासकार इन्हें चौथी और पाँचवीं सदी में निर्मित मानते हैं। अजंता और एलोरा गुफाओं की तर्ज पर ही बाघ गुफाएँ बनी हैं। इन गुफाओं की चित्रकारी उत्कृष्ट है। 

इन गुफाओं की खोज 1818 में डेजरफील्ड ने की थी। भित्ति चित्र न केवल बुद्ध के जीवन और बौद्ध जातक कथाओं के धार्मिक दृश्यों को दर्शाते हैं, बल्कि धर्मनिरपेक्ष दृश्यों को भी दर्शात हैं। इन चित्रों में हमें भारतीय जीवन के सभी पहलुओं का चित्रण दिखाई देता है।

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