भारत में विदेशी चित्रकार | Foreign Painters in India

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आधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास के आरम्भ में उन विदेशी चित्रकारों का महत्वपूर्ण योग रहा है जिन्होंने यूरोपीय प्रधानतः ब्रिटिश, कला शैली के प्रति भारतीय मानस में अधिकाधिक रुचि उत्पन्न कर दी थी। 

भारत में विदेशी कलाकार प्राचीन युगों में भी आते रहे थे। इनके प्राचीनतम उदाहरण गान्धार शैली में मिलते हैं ईसाई धर्म के प्रचारकों के रूप में ईसा के शिष्य सन्त लूका द्वारा रचित एक चित्र को उनके दूसरे शिष्य सन्त टामस भारत लाये थे। 

मध्य युग में सीरियाई चर्च का भारत आगमन हुआ और उसके साथ पश्चिमी एशिया में प्रचलित ईसाई कला-शैली का भारत में प्रवेश हुआ मुगल युग में पुर्तगाल ने गोवा में अपना केन्द्र स्थापित किया और तभी से मुगल कला पर पुर्तगाली एवं डच प्रभाव पड़ना आरम्भ हुआ। 

किन्तु कुछ समय पश्चात् इंग्लैण्ड के राजदूत सर टामस रो के साथ जो ब्रिटिश प्रभाव भारत में आया वह निरन्तर बढ़ता ही गया। मुगल तथा राजपूत शैलियों के समस्त क्षेत्रीय रूपों में इसे देखा जा सकता है।

मुगल साम्राज्य के पतन के समय ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में व्यापार के साथ-साथ अपना राजनीतिक प्रभुत्व भी बढ़ाती जा रही थी। कम्पनी की आज्ञा लेकर अवथा स्वतंत्र रूप से इंग्लैण्ड से आने वाले ब्रिटिश चित्रकार भारत में अपना समृद्ध बाजार देख रहे थे। 

कुछ तो भारत के मुगल अथवा हिन्दू शासकों के दरबारों में पहुँचे जहाँ उनके चित्र बहुत अच्छे मूल्य पर खरीदे जाने लगे। कुछ चित्रकार भारत के विभिन्न स्थानों पर घूम-घूम कर प्रसिद्ध स्मारकों, तीथों, जन-जीवन तथा विशिष्ट व्यक्तियों के चित्र बनाने लगे। इन्हें उस समय के सम्पन्न व्यक्ति खरीद लेते थे। 

सबसे अधिक चित्र कम्पनी के अधिकारियों ने खरीदे। यही नहीं, कम्पनी के अधिकारियों ने कुछ चित्रकारों से अपनी इच्छानुसार भारत के चित्र बनवाये। इनमें दृश्य चित्रों, लोक-जीवन के चित्रों तथा व्यक्ति-चित्रों की प्रमुखता थी।

ब्रिटिश चित्रकारों का बड़ी संख्या में भारत में आगमन मध्य अठारहवीं शती से आरम्भ हुआ जबकि कम्पनी का व्यापार पर्याप्त उन्नत था। इस समय ब्रिटिश चित्रकारों ने भारत से खूब धन बटोरा । इन समस्त चित्रकारों का युग 1760 ई० से 1900 ई० तक रहा है। 

इनमें कुशल चित्रकार, शौकिया कलाकार, नारी चित्रकार तथा व्यावसायिक कार्य करने वाले कलाकार, सभी थे। 1769 ई० में भारत में दिल्ली केटिल आये। अकेले ही मद्रास, कलकत्ता तथा लखनऊ का भ्रमण करके अन्त में अवध के दरवार में उन्होंने बहुत धन अर्जित किया। 

उनकी सफलता का समाचार इंग्लैण्ड पहुँचा तो 1774 में जार्ज विलीसन (George Willison), 1976 में सेटोन (Seton), 1777 में कैथेरीन रीड (Catherine Reed) तथा 1778 में मिस आइजक (Miss Issacc) भी भारत की ओर दौड़े। जब ये कलाकार धनवान होकर इंग्लैण्ड पहुँचे तो वहाँ से अनेक श्रेष्ठ चित्रकारों की भीड़ भारत में अपना भाग्य आजमाने आ पहुँची। 

1780 में विलियम होजेज (William Hodges) 1782 में जार्ज फेरिंगटन (George Farington), 1783 में जोफेनी (Zoffany), 1784 में थोम्स हिकी (Thomes Hickey) तथा 1785 में हम्फ्रे अलफाउण्डर, आर्थर विलियम डेविस तथा जोन स्मार्ट भारत आये। होजेज को भारत के वायरसराय वारेन हेस्टिंग्ज का संरक्षण मिला। 

फेरिगंटन ने मुर्शिदाबाद को अपना केन्द्र बनाया। भारत के विभिन्न स्थानों के चित्रों की दृष्टि से जोफेनी सर्वाधिक लोकप्रिय हुए आर्थर विलियम डेविस के चित्र भी बहुत प्रसिद्ध हुए। लार्ड कार्नवालिस के एक व्यक्ति चित्र से उनको इक्कीस हजार रूपये मिले। फिर भी उनका अन्तिम समय निर्धनता में व्यतीत हुआ

ब्रिटिश चित्रकारों में से एमिली ईडन जी० टी० दिग्ने, आगस्तों शोफ्त ने पंजाब में भी चित्रांकन किया और यह लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में भी पहुँचे। मिस एमिली इंडन को रणजीत सिंह की शबीह बनाने का सर्वप्रथम अवसर भी प्राप्त हुआ। बाद में विण्टर हाल्टर, हार्डिन्ज, रिचमन्ड तथा प्रिंस सए० सोल्टीकौफ भी पंजाब में सिख शासकों का चित्रण करते रहे।

  • डेनियल चित्रकार ( टामस डेनियल तथा विलियम डेनियल )
  • आगोश्तों शोफ्त | Agoston Schofft

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