क्या आप जानते है ?
जहाँगीर कालीन चित्रों की ये विशेषतायें...
इस समय की चित्रकारी ईरानी प्रभाव से मुक्त हो चुकी थी। वास्तु व पहाड़ियों, वृक्षों के तने व पत्तों तथा बादलों के अंकन में ईरानी प्रभाव पूरी तरह समाप्त हो चुका था।
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चित्रों में यथार्थता अधिक आ गयी थी।
पक्षियों का इतना स्वाभाविक चित्रण हुआ कि वह आधुनिक तकनीक से खींची रंगीन फोटो सद्रश लगते है।
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रेखायें अधिक महीन व कोमल है।
इस काल में हाशियों की सुन्दरता बढ़ गयी थी।
जहाँगीर के काल में चेहरे प्रायः एक चश्म बनने लगे थे जबकि अकबर काल में डेढ़ चश्मी चेहरे भी बने हैं।
वस्त्रों में अब जामा कुछ लम्बा, पायजामा भी नीचे को जाता हुआ व खिड़कीदार पगड़ी की वेषभूषा बनने लगी थी।
आकारों को वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य के सिद्धान्तानुसार बनाने का प्रयास किया है।
स्त्रियों को राजस्थानी एवं सूथन व ओढ़नी वाली वेषभूषा में चित्रित किया गया है।
रंगों में सूफियानापन व परस्पर मिश्रित रंग तथा एक ही रंग की तानों का प्रयोग होने लगा था।
हाशियों में जन-जीवन के दृश्य, व्यक्ति विशेष का अंकन, पशु-पक्षी व पेड़-पौधों को अलंकरण रूप में बनाया गया है।
चित्रों के विषय भिक्षुक, साधारण जन-जीवन, सन्त-सूफी, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, शिकार, दरबार की तड़क-भड़क वाले चित्र, शबीह एवं उत्सव आदि रहे हैं।
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जहाँगीर को शान्ति के प्रसंगों से सम्बन्धित चित्र बनवाने में अधिक रुचि थी।